वकील क्यों पहनते हैं काला कोट और गाउन? जानिए कहाँ से पड़ी ये परम्परा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से वकीलों ने आग्रह किया है कि प्रचंड गर्मी के इस मौसम में उन्हें काला कोट काला गाउन के ड्रेस कोड से छूट दी जाए। लेकिन आखिर ये काले रंग की ड्रेस की परम्परा आखिर पड़ी क्यों और इसका क्या तात्पर्य है, ये भी जानना जरूरी है।

Report :  Neel Mani Lal
Update:2024-05-28 20:12 IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से वकीलों ने आग्रह किया है कि प्रचंड गर्मी के इस मौसम में उन्हें काला कोट काला गाउन के ड्रेस कोड से छूट दी जाए। लेकिन आखिर ये काले रंग की ड्रेस की परम्परा आखिर पड़ी क्यों और इसका क्या तात्पर्य है, ये भी जानना जरूरी है।

सबसे पहली बात ये कि वकीलों – न्यायाधीशों के काले कोट, सफ़ेद शर्ट, सफ़ेद नेक बैंड और काले गाउन की परम्परा प्राचीन ब्रिटिशकाल में पड़ी और तभी से चली आ रही है। ये भी अद्भुत बात है कि इस परम्परा का प्रचलन और पालन पूरी दुनिया में कमोबेश सामान रूप से आज तक किया जा रहा है। इस रंगों और पहनावे के स्थापना भी सोच समझ कर और किन्हीं ख़ास सिद्धांतों की वजह से की गयी।

ड्रेस कोड

पहले ये जानते हैं कि ड्रेस कोड का क्या मतलब होता है। दरअसल, ड्रेस कोड किसी पेशेवर के लिए आत्मविश्वास, अनुशासन और पेशे का प्रतीक तथा व्यक्तित्व का गौरवपूर्ण हिस्सा होता है। पेशेवर माहौल आमतौर पर पहनावे के लिए एक कोड द्वारा चिह्नित होता है खासकर रंग और स्टाइल के संदर्भ में। ड्रेस कोड गरिमा और व्यावसायिकता का हिस्सा होता है।

न्यायायिक माहौल

ड्रेस कोड न्यायिक माहौल में बहुत मायने रखती है क्योंकि यह कानून, न्याय और निष्पक्षता से जुड़ा व्यवसाय होता है। न्यायाधीशों और वकीलों की पोशाक न्यायालय और न्याय के प्रति गरिमा और वफादारी का प्रतीक प्रतीत होती है।

रंगों का प्रदर्शन

कुछ अपवादों को छोड़कर पूरी दुनिया में काला और सफेद कानूनी पेशे का प्रतीक है। काले रंग में आम तौर पर कई अलग-अलग अर्थ होते हैं। हर रंग की तरह इसमें भी सकारात्मक और नकारात्मक दोनों अर्थ होते हैं। तो, एक ओर, यह मृत्यु, बुराई और रहस्य का प्रतीक है जबकि दूसरी ओर, यह शक्ति और अधिकार का प्रतीक है। संभवतः शुरुआत में काला रंग दो कारणों से चुना गया - उस समय रंग और रंगरेज़ यानी रंग करने वाले आसानी से उपलब्ध नहीं होते थे। दूसरे, बैंगनी रंग रॉयल्टी का प्रतीक था सो उसके बाद एकमात्र प्रचुर रंग काला ही बचा था।

जहाँ तक काले कोट की बात है तो उसे पहनने के पीछे मुख्य कारण यह है कि काला अधिकार और शक्ति का रंग है। काला स्वयं को प्रस्तुत करने का प्रतिनिधित्व करता है। वकील न्याय के प्रति अपनी अधीनता दिखाने के लिए काला पहनते हैं।

काले कोट के भीतर सफ़ेद शर्ट पहनने की भी ख़ास वजह है। सफ़ेद रंग प्रकाश, अच्छाई, मासूमियत और पवित्रता का प्रतीक है। चूंकि कानूनी व्यवस्था ही आम आदमी के लिए न्याय की एकमात्र उम्मीद है, सो उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए सफेद रंग को चुना गया है। याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों पक्षों के वकील एक समान ड्रेस कोड पहनते हैं। रंग का महत्व यह भी उजागर करता है कि कानून अंधा है। वह सिर्फ साक्ष्य के वजन पर आधारित होता है।

काला गाउन

- ब्लैक गाउन एडवोकेट की पहचान को गंभीरता प्रदान करता है और उनकी पेशेवर छवि को एक अलग चरित्र प्रदान करता है।

- काला गाउन पहनने से वकीलों के बीच अनुशासन, शक्ति और न्याय के समर्थक होने की भावना मिलती है।

- चूँकि काला रंग गरिमा, सम्मान, बुद्धि और न्याय का प्रतीक है और ये वे वैल्यूज हैं जिनका पालन हर वकील और न्यायाधीश को करना चाहिए। सो ब्लैक गाउन अधिकार, ज्ञान, सावधानी और स्थिरता का संदेश देता है।

सफेद नेकबैंड

- वकील गले में सफ़ेद रंग का नेक बैंड पहनते हैं जो मासूमियत का प्रतीक है।

- सफेद कपड़े के दो टुकड़े एक साथ जुड़कर जो एडवोकेट बैंड बनता है वह ‘कानून की शिला’ या ‘शिला लेख’ का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये वे शिलालेख हैं, जिनका इस्तेमाल ईसाई मान्यता के अनुसार, मूसा ने उन दस आज्ञाओं को लिखने के लिए किया था, जो उन्हें माउंट सिनाई पर प्राप्त हुई थीं। माना जाता है कि दस आज्ञाएँ एक समान लिखित कानून का पहला उदाहरण हैं। बैंड का आकार भी आयताकार शिला के समान होता है। सो सफ़ेद बैंड ईश्वर और मनुष्यों के नियमों को कायम रखने का प्रतिनिधित्व करते हैं।

क्या है इतिहास?

ब्लैक कोट का इतिहास 1327 से मिलता है जब ब्रिटेन के एडवर्ड तृतीय ने "शाही दरबार" में भाग लेने के लिए ड्रेस कोड के आधार पर न्यायाधीशों के लिए वेशभूषा तैयार कराई थी। मध्यकालीन युग के दौरान न्यायाधीश सर्दियों में बैंगनी वस्त्र और गर्मियों में हरे वस्त्र पहनते थे। हरे ग्रीष्मकालीन वस्त्र 1534 तक ख़त्म हो गए और 1534 के बाद आमतौर पर केवल काले और बैंगनी वस्त्र ही पहने जाने लगे।

भारत में क्या है व्यवस्था?

भारतीय न्यायिक व्यवस्था ब्रिटिश शासकों के शासनकाल के कारण उनसे प्रभावित है। 1961 का अधिवक्ता अधिनियम एक वकील के लिए काला रोब (लबादा) या काला कोट और उसके ऊपर एक सफेद नेकबैंड पहनना अनिवार्य बनाता है। अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 49(1)(जीजी) के तहत बनाए गए नियम सभी अधिवक्ताओं के लिए समान पोशाक निर्धारित करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को छोड़कर गर्मियों के दौरान काला कोट पहनना अनिवार्य नहीं है। इन संशोधनों को भारत के मुख्य न्यायाधीश के 2001 के एक पत्र द्वारा अनुमोदित किया गया है। इसके अनुसार, गर्मियों के दौरान सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को छोड़कर काला कोट पहनना अनिवार्य नहीं है। इसे अब बार काउंसिल नियमों के नियम चार के रूप में जोड़ा गया है। यह संशोधन तमिलनाडु के वकीलों के प्रतिनिधित्व के बाद किया गया था।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 2002 की अपनी बैठक में ड्रेस नियमों से संबंधित उठाए गए संदेहों पर विचार किया और निर्णय लिया कि - पोशाक नियमों में किए गए बदलाव के बारे में किसी भी संदेह को दूर करने के लिए यह स्पष्ट किया जाता है कि जहां तक गर्मियों के दौरान सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के अलावा अन्य अदालतों का सवाल है वहां काला कोट पहनना अनिवार्य नहीं है। वकील काली टाई या बैंड और कॉलर के साथ काले या धारीदार या ग्रे पैंट के साथ सफेद शर्ट में कोर्ट में उपस्थित हो सकते हैं।

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