विशेष: ओजोन दिवस, जानिए क्या है धरती के लिए इसका महत्व?

पहली बार विश्व ओजोन दिवस साल 1995 में मनाया गया था। यह दिवस जनता के बारे में पर्यावरण के महत्व तथा इसे सुरक्षित रखने के अहम साधनों के बारे में शिक्षित करता है। इसे मनाने का उद्देश्य धरती पर ओजोन की परत का संरक्षण करना है।

Update:2023-05-03 12:30 IST

लखनऊ: धरती पर जीवन के प्रमुख कारकों में हवा, पानी की तरह सूर्य की किरणें भी शामिल हैं। लेकिन, यह अगर उसी रूप में धरती पर आए, जिस रूप में सूर्य से निकलती है, तो वरदान के बदले अभिशाप हो जाएगी, क्योंकि इनमें मौजूद पराबैंगनी किरणें काफी घातक होती हैं।

जिस तरह भगवान शिव ने खुद विष का पान कर अमृत को जगत कल्याण के लिए अलग कर दिया, वैसे ही वायुमंडल का ओजोन परत, सभी घातक किरणों को सोख कर मानव के लिए उपयोगी किरणें धरती पर भेजता है।

यह जीवन रक्षक छाते की तरह है, लेकिन बढ़ते कल-कारखाने और वाहनों से निकलने वाले धुएं ने इस परत को नुकसान पहुंचाया है। इसमें दिनोंदिन छेद हो रहे हैं। इस गंभीर संकट को देखते हुए दुनियाभर में इसके संरक्षण को लेकर जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। हर साल 16 सितम्बर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है।

ये भी पढ़ें...दुनिया का पहला फ्लोटिंग न्‍यूक्‍लियर रिएक्‍टर लांच, पर्यावरणविदों ने दिया बड़ा बयान

पहली बार विश्व ओजोन दिवस कब मनाया गया था

पहली बार विश्व ओजोन दिवस साल 1995 में मनाया गया था। यह दिवस जनता के बारे में पर्यावरण के महत्व तथा इसे सुरक्षित रखने के अहम साधनों के बारे में शिक्षित करता है। इसे मनाने का उद्देश्य धरती पर ओजोन की परत का संरक्षण करना है।

यहां जानें ओजोन परत के बारे में

ओजोन परत की खोज साल 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। ओजोन परत गैस की एक परत है जो पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती है।

यह गैस की परत सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर (छानकर शुद्ध करना) का काम करती है। यह परत इस ग्रह के जीवों के जीवन की रक्षा करने में सहायता करती है।

यह पृथ्वी पर हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पहुंचने से रोक कर मनुष्यों के स्वास्थ्य तथा पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करता है।

ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है। ओजोन परत में वायुमंडल के अन्य हिस्सों के मुकाबले ओजोन (O3) की उच्च सांद्रता होती है।

यह परत मुख्य रूप से समताप मंडल के निचले हिस्से में पृथ्वी से 20 से 30 किलोमीटर की उंचाई पर पाई जाती है। परत की मोटाई मौसम एवं भूगोल के हिसाब से अलग– अलग होती है।

ये भी पढ़ें...‘महात्मा गांधी ने पर्यावरण की समस्या को तभी समझ लिया था जब किसी को इसकी चिंता नहीं थी’

पराबैगनी किरणों से होने वाले नुकसान

पराबैगनी किरण सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली एक किरण है जिसमें ऊर्जा बहुत ज्यादा होती है। यह ऊर्जा ओजोन की परत को धीरे-धीरे पतला कर रही है। पराबैगनी किरणों की बढ़ती मात्रा से चर्म कैंसर, मोतियाबिंद के अतिरिक्त शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है।

इसका असर जैविक विविधता पर भी पड़ता है तथा कई फसलें नष्ट हो सकती हैं। यह किरण समुद्र में छोटे-छोटे पौधों को भी प्रभावित करती है, जिससे मछलियों और अन्य प्राणियों की मात्रा कम हो सकती है।

विश्व ओजोन दिवस का इतिहास

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 1994 में 16 सितंबर को ‘ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय ओज़ दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की। इस दिन ओजोन परत के संरक्षण के लिए साल 1987 में बनाए गए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया गया था।

ये भी पढ़ें...प्रकृति का सबसे बड़ा उत्सव ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ जाने क्या है इसका इतिहास

Tags:    

Similar News