इलाहाबाद हाईकोर्ट की लिव-इन रिलेशन पर टिपप्णी, लिव-इन सामाजिक स्वीकृति नहीं, नैतिकता की आवश्यकता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में लिव-इन रिलेशन को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि इन संबंधों को समाज में कोई विशेष स्वीकृति नहीं मिलती, लेकिन फिर भी युवा इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।;

Newstrack :  Network
Update:2025-01-24 16:03 IST

Allahabad High Court- Rule decision of Wife drinking alcohol is not cruelty ( Pic- Social- Media)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में लिव-इन रिलेशन को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि इन संबंधों को समाज में कोई विशेष स्वीकृति नहीं मिलती, लेकिन फिर भी युवा इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि हम समाज में नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए एक रूपरेखा और समाधान पर विचार करें।

जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हम एक बदलते हुए समाज में रह रहे हैं, जहां परिवार, समाज और कार्यस्थल पर युवा पीढ़ी के नैतिक मूल्य और सामान्य आचरण तेजी से बदल रहे हैं। कोर्ट ने कहा, “जहां तक ​​लिव-इन रिलेशन का सवाल है तो इसे कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, लेकिन चूंकि युवा ऐसे संबंधों की ओर आकर्षित होते हैं, क्योंकि कोई भी युवा, चाहे वह पुरुष हो या महिला, अपने साथी के प्रति अपने दायित्व से आसानी से बच सकता है, इसलिए ऐसे संबंधों के प्रति उनका आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है। अब समय आ गया है कि हम सभी को इस पर विचार करना चाहिए और समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए कोई रूपरेखा और समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए।”

इस टिप्पणी के बाद कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह भी कहा कि समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए कोई ठोस रूपरेखा और समाधान खोजने की आवश्यकता है। यह टिप्पणी एक जमानत याचिका के सिलसिले में की गई, जिसमें आरोपी पर पीड़िता के साथ शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने और बाद में शादी करने से इंकार करने का आरोप था। इसके अलावा, आरोपी पर पीड़िता का गर्भपात कराना, जातिवाद संबंधी टिप्पणी करना और मारपीट करने के आरोप भी थे।

अदालत ने आरोपी के वकील की ओर से प्रस्तुत किए गए तर्कों पर विचार करते हुए जमानत मंजूर की। आरोपी के वकील ने दावा किया कि पीड़िता एक वयस्क महिला थी और दोनों के बीच सभी संबंध सहमति से बने थे। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि पीड़िता और आरोपी के बीच लगभग 6 वर्षों तक लिव-इन रिलेशनशिप रहा और गर्भपात का आरोप बेबुनियाद था। कोर्ट ने यह भी माना कि दोनों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बने थे।

इस मामले में जमानत देते हुए अदालत ने कहा, "मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, यह साबित होता है कि आरोपी ने जमानत के लिए मामला बनाया है।" इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि समाज में नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक ठोस रूपरेखा की आवश्यकता है, ताकि युवा पीढ़ी को सही दिशा में मार्गदर्शन मिल सके।

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