Shibu Soren: झारखंड के पूर्व सीएम शिबू सोरेन की सेहत में हो रहा सुधार, जानें उनका सियासी सफर
Shibu Soren: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की तबियत अचानक बिगड़ गई। जिसके बाद आनन फानन में उन्हें दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में एडमिट कराया गया है। कई घंटे के इलाज के बाद अब उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है।
Shibu Soren: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की तबियत अचानक बिगड़ गई। जिसके बाद आनन फानन में उन्हें दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में एडमिट कराया गया है। कई घंटे के इलाज के बाद अब उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है। 80 वर्षीय सोरेन की सेहत को लेकर डॉक्टर ने बताया कि फिलहाल उनमें सुधार हो रहा है। अभी कुछ दिन उन्हें निगरानी में रखा जाएगा, इसके बाद डिस्चार्ज उन्हें डिस्चार्ज किया जा सकता है।
दरअसल, राज्यसभा सांसद और जेएमएम के मुखिया शिबू सोरेन अपने मुख्यमंत्री पुत्र हेमंत सोरेन के साथ 9 सितंबर को दिल्ली गए थे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के द्वारा आयोजित जी20 के डिनर में उन्हें भी आमंत्रित किया गया था। वापसी के बाद अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई। जिसके बाद झारखंड सीएम ने अपने पिता को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टर ने जब हेमंत को भरोसा दिलाया कि उनकी तबियत अब ठीक है और घबराने की जरूरत नहीं है तो वे वापस राजधानी रांची लौट गए।
कौन हैं शिबू सोरेन ?
शिबू सोरेन की गिनती देश के कद्दावर आदिवासी राजनेताओं में होती है, जिन्होंने एकदम जीरो से संघर्ष शुरू करते हुए सत्ता के शीर्ष तक का सफर तय किया है। बिहार से अलग कर पृथक झारखंड राज्य बनाने में उनके आंदोलन की भूमिका सर्व विदित है। सोरेन अपने दशकों के सियासी सफर में मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बने। आदिवासी समाज में वर्तमान में भी वह पूजनीय हैं। आदिवासी समाज में पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उन्होंने कई आंदोलन चलाए। आदिवासी समुदाय के लोग संथाली भाषा में उन्हें ‘दिशोम गुरू’ के नाम से पुकारते हैं, जिसका मतलब होता है देश का गुरू।
जब वो बच्चे थे, तभी उनके पिता की महाजनों ने हत्या कर दी थी। इस घटना का उनका जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा और उन्होंने सूदखोरी के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। शिबू सोरेन ने आदिवासी समाज के लोगों के बीच फरमान जारी किया कि अगर कोई शख्स किस सूदखोर के चक्कर में आया तो उसे सजा के तौर पर घुटनों के बल चलाया जाएगा। उन्होंने ये ऐलान लोगों के अंदर डर पैदा करने के लिए किया था ताकि वे महाजनों के जाल में न फंसे। इसी प्रकार उन्होंने शराब के सेवन और अशिक्षा के खिलाफ आंदोलन चलाया। उनके इस सामाजिक रूप ने आदिवासियों के बीच उन्हें ‘गुरूजी’के नाम से लोकप्रिय बना दिया।
शिबू सोरेन का सियासी सफर
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को अविभाजित बिहार के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था। एक आम आदिवासी परिवार की तरह उन्होंने भी अपना बचपन संघर्षों में बिताया। बताया जाता है कि उनके पिता की महाजनों द्वारा हत्या की घटना ने उन्हें राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र की ओर खींचा। उन्होंने सार्वजनिक जीवन की शुरूआत करते हुए सूदखोरों, महाजनों और जमींदारों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी, जो वहां के गरीब और अनपढ़ आदिवासियों के शोषण में लिप्त थे।
1970 के दशक में उनकी मुलाकात सीपीएम नेताओं एके राय और विनोद बिहार महतो से आई। तीनों ने वामपंथी पार्टी से अलग हटकर 1974 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया। जिसका उद्देश्य आदिवास, किसान और मजदूरों के हक में आवाज उठाने के साथ झारखंड को बिहार से अलग करना था। कहते हैं उस समय वे वियतनाम में चल रहे युद्ध से काफी प्रभावित थे। वियतनाम लिबरेशन आर्मी के नाम से प्रभावित होकर उन्होंने अपने संगठन का नाम झारखंड मुक्ति मोर्चा रखा था।
शिबू सोरेन ने 1997 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। तीन साल बाद 1980 में एकबार फिर वो चुनावी मैदान में उतरे मगर अबकी बाजी उनके हाथ लगी। इसके बाद वे 1989, 1991, 1996,2002 और 2014 में जीते। सोरेन को उस वक्त तगड़ा झटका लगा, जब मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए साल 2009 के उपचुनाव में तमाड़ विधानसभा सीट से झारखंड पार्टी के उम्मीदवार राजा पीटर के हाथों 9 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। जिसके कारण उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी।
वह मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री भी रह चुके हैं। उनपर घपले – घोटाले में शामिल होने के भी आरोप लगते रहे हैं। 2014 में मोदी लहर होने के बावजूद दुमका लोकसभा सीट से जीतने वाले शिबू सोरेन 2019 में अपनी सीट बचा नहीं पाए और हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद अगले साल यानी 2020 में उन्हेंने राज्यसभा में एंट्री ली और मौजूदा वक्त में भी बने हुए हैं।
बेटा संभाल रहा सियासी विरासत
जेएमएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन की सियासी विरासत अब उनका छोटा बेटा हेमंत सोरेन संभाल रहा है। बड़े बेटे की दुर्गा सोरेन की मौत के बाद हेमंत सोरेन ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में बीच में ही छोड़कर राजनीति में पिता का हाथ बंटाने आ गए और तब से वे इसे बखूबी संभाल रहे हैं। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हीं के नेतृत्व में जेएमएम, कांग्रेस और राजद गठबंधन ने बीजेपी की अगुवाई में चल रही एनडीए को जोरदार शिकस्त दी थी। उम्र के आठवें दशक में चल रहे शिबू सोरेन की तबियत अक्सर खराब रहने लगी है लेकिन फिर भी वे राजनीति से पूरी तरह दूर नहीं हुए हैं। आज भी वे कई सरकारी कार्यक्रमों का हिस्सा बनते हैं। सोरेन अब अधिक सभाएं नहीं करते लेकिन लोगों के संपर्क में बने रहते हैं।