विनोद कपूर
लखनऊ: गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने धर्मनिरपेक्ष नीति को छोड़ 'नरम हिंदुत्व' का चोला पार्टी को पहना दिया था, तो अब बारी तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बीरभूम में अगले महीने ब्राह्मण सम्मेलन को संबोधित करने जा रही हैं। इसे ममता सरकार के नरम हिंदुत्व कार्ड खेलने की तरफ देखा जा रहा है।
ममता बनर्जी पर लगातार तुष्टिकरण के आरोप लगते रहे हैं। उन्होंने दो बार अपने फैसले से ऐसा दिखाया भी है। लगातार दो साल तक दुर्गा विसर्जन की तारीख मुहर्रम के साथ पड़ गई। इस साल और पिछले साल 2016 में भी। लेकिन ममता बनर्जी ने दुर्गापूजा से बंगालियों की भावनाओं का ख्याल नहीं रखते हुए विसर्जन को तय सीमा के करवा दिया ताकि मुहर्रम के जुलूस में कोई परेशानी या रुकावट नहीं आए। हालांकि, उन्हें इसके लिए कोलकाता हाईकोर्ट की फटकार भी झेलनी पड़ी।
वाम का साथ छोड़ मुस्लिम जुड़े थे ममता से
बता दें, कि बंगालियों के लिए दुर्गापूजा ठीक उसी तरह है जैसे मुसलमानों के लिए ईद। बंगाली देश के किसी भी हिस्से में रहें, लेकिन वो दुर्गापूजा के वक्त अपने घर बंगाल जरूर आते हैं। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम पहले वाम दलों के साथ थे लेकिन ममता बनर्जी के राज्य की राजनीति में आने के बाद मुस्लिम उनकी ओर मुड़ गए। उन्होंने कई तरह की राहत देकर मुसलमानों का दिल जीत लिया। चुनाव-दर-चुनाव तृणमूल कांग्रेस को मिलने वाला मुस्लिम वोट बढ़ता गया।
विशेष समुदाय का 'खास' ख्याल
यहां तक कि कुछ इलाकों में इस साल की शुरुआत में हुए साम्प्रदायिक दंगे में भी सरकार किसी एक समुदाय के खिलाफ ही खड़ी दिखाई दी, जिससे ममता बनर्जी को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। नतीजा ये हुआ, कि बीजेपी का राज्य में जनाधार लगातार बढ़ता गया। ये और बात है कि चुनाव में उसकी सीटों में कोई ज्यादा इजाफा नहीं हुआ, लेकिन उसके वोट प्रतिशत तेजी से बढ़े। इसके बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बंगाल में डेरा डाल दिया। बीजेपी की बढ़ती ताकत, ममता बनर्जी के लिए मुसीबत का सबब बनती दिखाई दी। बीजेपी की ताकत को देखते हुए ममता ने अपने राज्य में उन्हें कई रैली करने की इजाजत भी नहीं दी।
बीरभूम में हनुमान जयंती पर चली थी लाठियां
गौरतलब है, कि पिछले अप्रैल में बीरभूम में ही हिंदू जागरण मंच ने हनुमान जयंती पर जुलूस निकाला था। इसमें लाठीचार्ज भी हुआ था और बड़ा बवाल भी। हिंदू जागरण मंच के सैकड़ों कार्यकर्ता 'जय श्री राम' के नारों के साथ सड़कों पर उतर आए। हालांकि, पुलिस ने उन्हें जुलूस की इजाजत नहीं दी थी, जिससे नाराज लोग पुलिस से भीड़ गए थे।
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...तो क्या नरम हिंदुत्व ही एकमात्र उपाय
जिस तरह बीजेपी का जनाधार लगातार राज्य में बढ़ रहा है, उसकी काट निकालते हुए ममता बनर्जी ने ये फैसला लिया कि वो नरम हिंदुत्व की ओर मुड़ें। बीरभूम जिले के तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख अनुब्रतो मंडल कहते हैं, कि 'ब्राहम्ण सम्मेलन (6 जनवरी) में बूथ सम्मेलन होगा। 8 जनवरी को पुरोहित सम्मेलन होगा। इस सम्मेलन में करीब 15,000 ब्राह्मण हिस्सा लेंगे और पूजा-पाठ करेंगे। हर ब्राह्मण को गीता की एक कॉपी दी जाएगी। इसके अलावा साथ में शॉल और रामकृष्ण परमहंस-शारदा मां की तस्वीर भी होगी।' इस प्रकार का सम्मेलन इससे पहले महाराष्ट्र, यूपी और कर्नाटक में हो चुके हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में ये पहली बार हो रहा है।
'ममता सरकार तुष्टीकरण ही करती है'
केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो कहते हैं, कि 'ममता सरकार हमेशा तुष्टीकरण की राजनीति करती है, कभी वो इमाम भत्ता देती है तो इस बार उसे बैलेंस करने के लिए इस प्रकार का कार्यक्रम कर रही है। लेकिन राज्य की जनता सरकार की मंशा को समझ रही है।'
कांग्रेस, सॉफ्ट हिंदुत्व और अहमद की दूरी
दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव में नरम हिंदुत्व का रुख कर पीएम मोदी को उनके गढ़ में कड़ी चुनौती दी थी। ऐन वक्त पर यदि कांग्रेस से निलंबित किए गए मणिशंकर अय्यर की जुबान नहीं फिसलती और वो मोदी के खिलाफ गंदी और भद्दी भाषा का इस्तेमाल नहीं करते, तो गुजरात की बाजी कांग्रेस के पक्ष में पलट भी सकती थी। गुजरात के चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदिर-मंदिर माथा टेका था, जिसे कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड माना गया। कांग्रेस को चुनाव में फायदा भी मिला और पार्टी की राज्य में सीटें बढ़ गई। पूरे चुनाव में मुसलमान और उसकी समस्याओं पर कोई चर्चा नहीं हुई। यहां तक कि राहुल गांधी ने कांग्रेस के बड़े नेता और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को भी अपने मंच से दूर रखा। गुजरात में अहमद पटेल मुसलमानों के नेता माने जाते हैं।