लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी-पार्ट 2 के दौरान जब 75 की उम्र पार कर चुके नेताओं को मंत्रिमंडल से बाहर करके मार्गदर्शक बनाया गया था, तब इस दल के नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरलीमनोहर जोशी दोनों को आशा और निराशा दोनों हाथ लगी। निराशा इस बात की कि वे टीम मोदी में काम के नहीं रहे पर उम्मीद यह भी कायम थी कि राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान उनकी उम्मीदों को पंख लग सकते हैं।
आज राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव सिर पर हैं, तब नरेंद्र मोदी की ओर से ओढ़ी गयी खामोशी उनकी उन दिनों की उम्मीदों पर तुषारापात करने के हालात पैदा कर रही है। इन दो नेताओं के अलावा इन दोनों पदों की दौड़ में करीब एक दर्जन छोटे-बड़े नाम हैं पर इनके बारे में यह चर्चा आम है, कि सीबीआई ने अयोध्या का मामला फिर से खुलवा लिया है। नतीजतन इनके रास्ते बंद से हो गये हैं।
हालांकि इसे लेकर विधि विशेषज्ञों में अलग-अलग राय है। राष्ट्रपति के पद पर अकेले अपने बूते जीतने की स्थिति में राजग नहीं है। ऐसे में रणनीति यह है, कि उपराष्ट्रपति का पद विपक्ष को दे दिया जाए और दोनों पदों पर निविर्रोध निर्वाचन का रास्ता खोल दिया जाए। राष्ट्रपति पद पर जीत के लिये राजग को 549442 वोट चाहिये। अभी उसके पास बीस हजार वोटों की कमी है मगर माना जा रहा है कि इतने वोटों के इंतजाम में भाजपा को दिक्कत नहीं होगी।
हालांकि पार्टी में बढ़ रहे अंतर्विरोध के चलते भाजपा की उम्मीदें जयललिता की अन्नाद्रमुक से कुछ ज्यादा ही हैं। अपना उम्मीदवार जिताने की बाजीगरी भाजपा के लिये मुश्किल नहीं है। इन दोनों पदों के लिये आडवाणी और जोशी के अलावा प्रणव मुखर्जी, थावर चंद्र गहलौत, झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी, लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, शीर्ष उद्योगपति रतन टाटा, योग गुरु बाबा रामदेव, संघ प्रमुख मोहन भागवत, यूपी के राज्यपाल राम नाईक, अमिताभ बच्चन, मणिपुर की गवर्नर नजमा हेपतुल्ला, महाराष्ट्र के गवर्नर सी.विद्यासागर राव, अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल, गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन के नाम जेरे बहस हैं।
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार का नाम भी चर्चाओं में है। वैसे जिन्ना प्रकरण के बाद लालकृष्ण आडवाणी कमजोर स्थिति में दिखते हैं। संघ की चली तो डॉ.मुरली मनोहर जोशी और नजमा हेपतुल्ला को कहीं न कहीं लगाया जा सकता है। बाबा रामदेव की खुद की इच्छा हिलोरे मार रही है। उनके समर्थकों का तर्क है कि बाबा का कारोबार उनके रास्ते में रोड़ा नहीं बनेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति भी कारोबारी हैं।
केसरीनाथ त्रिपाठी की उम्मीदें उनके कानून की सलाहियत पर निर्भर कर रही हैं। संघ की ओर से मोहन भागवत के नाम पर इनकार किया जा चुका है। संघ और भाजपा की दिक्कत यह है कि वह इस पद पर अपनी विचारधारा के किसी खास को बैठाए या जातीय संतुलन साधने का एक और प्रयास करे। इसी पर इन दोनों पदों के उम्मीदवारों के नाम निर्भर करते हैं।
लालकृष्ण आडवाणी : लालकृष्ण आडवाणी का नाम भी देश के अगले राष्ट्रपति की चर्चा में शामिल है। भारतीय जनता पार्टी को जमीन से आसमान तक ले जाने का श्रेय अगर किसी नेता को दिया जा सकता है तो वो पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ही हैं। आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। वह पार्टी के आज तक के इतिहास का अहम अध्याय हैं। उनके प्रशंसक उनकी तुलना सरदार पटेल से करते हैं। पंद्रह वर्षों के अंदर ही उन्होंने 1984 में लोकसभा में दो सीट जीतने वाली भाजपा को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बना दिया।
कहा जा सकता है कि भाजपा पीएम न बन पाने वाले आडवाणी को राष्ट्रपति बनाकर उन्हें सम्मानित कर सकती है। लेकिन 2014 चुनावों के दौरान संघ और भाजपा की ओर से मोदी के लिए लगभग दरकिनार से कर दिए आडवाणी को शायद ही संघ और मोदी का समर्थन मिल पाए। इसके अलावा आडवाणी के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी गलती यानी पाकिस्तान में जिन्ना की मजार पर जाना और जिन्ना की प्रशंसा वाला बयान उनकी राह का सबसे बड़ा कांटा बना हुआ है। संघ ने भी उसी वाकये के बाद से आडवाणी को दरकिनार कर दिया था।
मुरली मनोहर जोशी : भाजपा के वरिष्ठ नेता और कानपुर के सांसद मुरली मनोहर जोशी आरएसएस की पसंद हैं। पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य जोशी को संघ सर्वोच्च पद पर इसलिये बैठाना चाहता है ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर थोड़ा ‘अंकुश’ बना रहे। संघ नेतृत्व का मानना है कि राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए जरूरी मतों के आंकड़े से एनडीए के पास अभी करीब 70 हजार मत मूल्य की कमी है।
जरूरी बहुमत जुटाने के लिए भाजपा को एनडीए के बाहर के कुछ दलों के समर्थन की भी जरूरत होगी। अत: राष्ट्रपति पद के लिए ऐसे नाम को आगे किया जाए जिसकी योग्यता, अनुभव और वरिष्ठता निॢववाद हो और आसानी से अन्य दलों का समर्थन जुटाया जा सके। जोशी का जन्म 5 जनवरी 1934 को दिल्ली में हुआ था। उनका पैतृक निवास स्थान उत्तराखण्ड में है। जोशी को बीजेपी के उन नेताओं में से माना जाता है जोकि हमेशा से संघ के करीबी रहे हैं।
जब 2014 के चुनावों में उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को नरेंद्र मोदी के लिए छोडऩे को कहा गया तो भी वे बिना किसी हंगामे के चुपचाप कानपुर चले गए, जहां से वह वर्तमान में सांसद हैं। पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं की तुलना में जोशी के पीएम मोदी से रिश्ते भी काफी मधुर हैं।
सुषमा स्वराज : विदेश मंत्री व पार्टी की वरिष्ठï नेता 65 वर्षीय सुषमा स्वराज राष्ट्रपति पद की दौड़ में तगड़ी दावेदार मानी जा रही हैं। इसके कई कारण है, जिनमें अन्य दलों में भी उनकी स्वीकार्यता प्रमुख है। एक कुशल राजनेता-वक्ता के रूप में तो वो काफी पहले ही लोहा मनवा चुकी हैं। पिछले वर्ष सुषमा स्वराज को विश्व का सर्वश्रेष्ठ विदेश मंत्री भी चुना गया था। आरएसएस के दो दिगग्ज नेता भैयाजी जोशी और दत्तात्रेय होसबोले सुषमा का समर्थन कर रहे हैं। इसके साथ ही संघ प्रमुख मोहन भागवत की भी उनके नाम पर सहमति बताई जा रही है। विदेशमंत्री के तौर सुषमा स्वराज की छवि बहुत ही सक्रिय नेता की रही है।
द्रौपदी मुर्मू : 55वर्षीय मुर्मू 2015 से झारखंड की गवर्नर हैं। वह उड़ीसा सरकार में दो बार मंत्री रह चुकी हैं। 1997 से राजनीति में आयीं मुर्मू भाजपा का प्रमुख आदिवासी चेहरा हैं। वह बीए पास हैं और सरकारी क्लर्क व टीचर रह चुकी हैं। मूर्मू ओडिशा से हैं और वहां होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा बड़ी उपलब्धि हासिल करने की आस लगाए है। मुर्मू के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि देश में दलित और अल्पसंख्यक राष्ट्रपति पद तक पहुंचे हैं, लेकिन कोई आदिवासी वहां तक नहीं पहुंच पाया।
थावर चंद्र गहलौत : मध्य प्रदेश के शाजापुर से दो बार सांसद रह चुके गहलौत केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री हैं। 69 वर्षीय गहलौत भाजपा का प्रमुख चेहरा माने जाते हैं। कहा जाता है कि मोदी उन्हें पसंद भी करते हैं। मौजूदा समय में गहलौत राज्यसभा सदस्य हैं।
सुमित्रा महाजन : इंदौर से 8 बार भाजपा के टिकट पर सांसद रहीं सुमित्रा महाजन लोकसभा की 16वीं स्पीकर हैं। उनका मोदी और अमित शाह से अच्छा तालमेल है। इनके खिलाफ यह बात जाती है कि स्पीकर बनने के बाद भी ‘ताई’ ने इंदौर में भाजपा की राजनीति में दखलअंदाजी देना छोड़ा नहीं है। महाराष्ट्र के रत्नागिरि में जन्मी 74 वर्षीय सुमित्रा महाजन भाजपा का प्रमुख महिला चेहरा हैं।
रतन टाटा : टाटा संस के मानद चेरयमैन रतन टाटा का नाम भी राष्ट्रपति पद के लिए आगे है। रतन टाटा की एक बेहतरीन बिजनेसमैन के रूप में साफ-सुथरी छवि उन्हें इस पद का दावेदार बनाती है। 80 वर्षीय रतन टाटा पूरी तरह निर्विवाद रहे हैं। उन्हें 2000 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
रामदेव : हरियाणा के महेन्द्रगढ़ में जन्मे 51वर्षीय रामदेव (रामकृष्ण यादव) विहिप की पसंद हैं। बताया जाता है कि योग गुरु का नाम आगे बढ़ाने के लिये काफी प्रयास किया जा रहा है। तर्क यह दिया जा रहा है कि जब डोनाल्ड ट्रंप एक उद्योगपति होते हुए राष्ट्रपति बन सकते हैं तो रामदेव क्यों नहीं बनाये जा सकते।
मोहन भागवत : संघ प्रमुख के नाम को शिवसेना ने सुॢखयों में ला दिया है। संजय राउत ने मोहन भागवत को राष्ट्रपति के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार बताया था, लेकिन मोहन भागवत ने इसके लिए मना कर दिया है। उनका कहना है कि उनके लिए पहले संघ है।
राम नाईक: यूपी के राज्यपाल और वाजपेयी सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे राम नाईक की पृष्ठभूमि और हार्डकोर हिंदुत्व सोच उन्हें भाजपा की उन उम्मीदों पर खरा उतारती है जो हिंदुत्व को बढ़ावा देती हैं। नाईक खुलकर संघ के साथ अपनी नजदीकियों और ङ्क्षहदुत्व का समर्थन कर चुके हैं। वैसे भी अखिलेश सरकार के दौरान राम नाईक की कार्यप्रणाली की प्रधानमंत्री मोदी के साथ ही संघ भी सराहना करता रहा है।
अमिताभ बच्चन : सपा नेता अमर सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था, कि पीएम मोदी अमिताभ बच्चन को अगला राष्ट्रपति बनाने जा रहे हैं। इसके बाद ही सुपरस्टार का नाम भी चर्चा में आ गया था। लेकिन पनामा पेपर लीक्स विवाद में नाम जुडऩे के बाद इनकी उम्मीदवारी फिलहाल ठंडी पड़ती दिख रही है। वैसे भी मोदी और संघ किसी ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर बैठाना चाहेंगे जो राजनीतिक पृष्ठभूमि का हो।
बचाव की मुद्रा में कांग्रेस
राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के अलावा देश के सभी विधानमंडलों के सदस्य वोट करने के लिए अधिकृत होते हैं जबकि उपराष्ट्रपति पद के लिए केवल संसद के दोनों सदस्यों के लगभग 785 सांसद ही मतदाता होते हैं।
कांग्रेस आजादी के बाद से 2012 तक विपक्षी पार्टीयों के भरोसे में लेने के बजाय अपने पसंदीदा व्यक्ति को राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में उतारती रही है, लेकिन अब सितारे गर्दिश में होने की वजह से वह पूरी तरह बचाव की मुद्रा में है। कांग्रेस ने होमवर्क तैयार करना शुरू कर दिया है। जो भी नाम तय होगा उस पर सभी विपक्षी दल मिलकर ही सर्वसम्मत फैसला करेंगे। एनसीपी प्रमुख शरद पवार को संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनाने के बारे में मन टटोला गया है, लेकिन उन्होंने अभी इस मामले को यह कहकर टाल दिया कि वे अपनी पार्टी के भीतर सलाह मशविरे के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचेंगे।
बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु में सत्तारूढ़ क्षेत्रीय दलों के अलावा वाम दलों व सपा-बसपा की भी इस चुनाव में अहम भूमिका है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस दिशा में अन्य दलों के नेताओं से चर्चा कर रही हैं, ताकि विपक्ष की ओर से एक मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा जा सके। समझा जाता है कि विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार तब घोषित करेगा जब राजग उम्मीदवार के नाम का ऐलान हो जाएगा।