लखनऊ: सावन की षष्ठी का सूरज चमका तो , पर बहुत काम क्षणों के लिए। काले घने बादलों ने उसे यम की साया बन ढक लिया। लखनऊ में गोमती की धारा ठहर गयी। क्या गांव , क्या गिराव , क्या नगर ,क्या महा नगर , क्या लखनऊ और क्या दिल्ली। हर कही एक ही धुन। एक ही राग। एक ही चर्चा। एक ही बात। काल के कपाल पर
लिखते ,मिटाते और कभी रार ठानते महामानव अटल जी की अनंत यात्रा शुरू हो गयी। युग पुरुष के महाप्रस्थान ने भारत के हर गहरा को आभास कराया कि यह प्रयाण केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि अभिभावक का है। करोडो आँखों में यदि आर्द्रता भर गयी तो यह उनकी लोकसंप्रेषणीय वाणी और छवि के कारण था।
70 वर्षो की महान विरासत
भारत मे संसदीय इतिहास का एक युग बीत गया। राजनीति की 70 वर्षो की एक महान विरासत अब दसतावेज हो गयी।भारत के लोकतंत्र की समृद्धि की नींव का एक बड़ा संबल नही रहा। मा भारती के आंचल को बेदाग देख कर खुद की नींद लेने वाला सपूत चिरनिद्रा में माँ की गोद मे सम गया। युग ही नही विश्व विरासत की महायात्रा का एक पड़ाव ।अटल जी का न होना , भारत ही नही , दुनिया भी बहुत दिनों तक खुद को तैयार करेगी यह स्वीकार करने को कि अटल जी नही है।
धुर विरोधी भी रहते थे नतमस्तक
वैसे विगत कुछ ही दिनों के अंतराल में कई विभूतियों ने धरती से विदा ली है। दक्षिण में करुणानिधि से लेकर सोमनाथ चटर्जी तक। ये सभी कही न कही अटल जी के आसपास ही चहलकदमी करने वाले लोग रहे हैं। सोमनाथ दा तो उन्ही के कार्यकाल में लोकसभा के अध्यक्ष भी रहे। इन मनीषियों से अटल जी किसी न किसी रूप में जुड़े तो थे ही। करूणानिधि भले ही वैरिक रूप से उनके धुर विरोधी रहे लेकिन अटल जी के सामने वह भी जाते थे।
महाकवि नीरज और अटल
यह बरबस नही बल्कि बड़ी शिद्दत से एक नाम उभरता है पंडित गोपालदास नीरज का। इस महाकवि और अटल विहारी बाजपेयी की कुंडली के सभी ग्रह एक ही जैसे रहे हैं ।सिर्फ चंद्रमा का अंतर रहा है। नीरज जी इस को लेकर कई बार चर्चा किया करते थे। यह इत्तफाक ही है कि नीरज जी ने भी अपनी अनंत की यात्रा अभी अभी शुरू की है। कुछ ही दिन बीते हैं । आज अटल जी उसी अनंत यात्रा पर निकल पड़े। ये दोनों ही ऐसे यात्री है जिनकी संवेदना और रचना शक्ति बराबर की कही जाती रही। राजनीति में होकर भी अटल जी और नीरज जी एक साथ मंचो पर कविताएं पढ़ा किये, गया किये और खूब फाका मस्ती भी की। दोनो के संघर्ष के दिन एक जैसे रहे। लेकिन जब समय आया तो दोनो की स्वरलहरी लालकिले से भी गूंजी।
भारत और माँ भारती के गीत गाते अटल बने थे नायक
अटल जी केवल कवि तो नही बन सके लेकिन भारत और भारती के गीत गाते ही भारत ने उन्हें अपना नायक बना दिया। ऐसा नायक जो अजातशत्रु है। जिसके घोर विरोधी भी उसका सम्मान करते । अटल जी का सन्सद का वह भाषण याद है सभी को जब उन्होंने कहा था- सब कह रहे , अटल अच्छा है , लेकिन समथन नही करेंगे, क्योकि पार्टी खराब है, क्या खराबी है? क्या करोगे इस अच्छे अटल का?अत्यंत तनाव के समय मे विश्वास मत पर चर्चा की घटना है यह। इसी चर्चा में उनकी सरकार महज एक वोट से गिरी थी। लेकिन इतने तनाव के माहौल को भी उन्होंने ऐसा बना दिया कि संसद में ठहाके गूंज उठे।
भारत के पर्याय
अटल जी यकीनन भारत के पर्याय बन गए। तभी तो विपक्ष में होकर भी केंद्र की कांग्रेस की सरकार उनको भारत का प्रतिनिधि बनाकर संयुक्त राष्ट्र में भेजती थी। यह सामान्य बात नही है। विश्व मे शायद ही ऐसा कोई उदाहरण कही और देखने को मिलता हो। ऐसे अजातशत्रु नायक का फिर मिलाना इतना आसान तो नहीं है।
लगभग 70 वर्षो के राजनीतिक सफर में अटल बिहारी बाजपेयी विश्व मे भारत की पहचान जैसे ही रहे ।वह जिस भी पद पर ,जिस भी रूप में रहे भारत ही सर्वोपरि रहा। उनके लेखन , चिंतन और सृजन में भी माँ भारती ही होती हैं। अटल बिहारी बाजपेयी के चिंतन में भारत सर्वोपरि रहा है। भारत को विश्वगुरु के कमतर आंकने वालो को वहुत कड़ा जवाब देते है-
अखिल विश्व का गुरू महान,
देता विद्या का अमर दान,
मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग
मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर,
मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार
क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर-घहर,
सागर के जल में छहर-छहर
इस कोने से उस कोने तक
कर सकता जगती सौरभ भय।
अपने इतिहास पर उनको गर्व है। यह इतिहास सनातन है। वह सनातन संस्कृति और सनातन भारत के लिए बेचैन होकर गाते है-
दुनिया का इतिहास पूछता,
रोम कहाँ, यूनान कहाँ?
घर-घर में शुभ अग्नि जलाता।
वह उन्नत ईरान कहाँ है?
दीप बुझे पश्चिमी गगन के,
व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती,
चमका हिन्दुस्तान हमारा।
शत-शत आघातों को सहकर,
जीवित हिन्दुस्तान हमारा।
जग के मस्तक पर रोली सा,
शोभित हिन्दुस्तान हमारा।
भारत पर उन्हें कितना अभिमान है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उनकी इस रचना में दिखता है-
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
भारत के संसदीय इतिहास में ऐसे अनेक अवसर आये जब अटल जी को कठिन चुनौतियों से जूझना पड़ा। चाहे वह आजादी के तत्काल बाद कि राजनीति हो या आपातकालीन भारत की दुर्दशा। मंडल सिफारिशों के बाद जलता हुआ भारत और मंदिर आंदोलन का प्रज्जवलन भी बहुत ठीक से देखा उन्होंने। लेकिन ये अटल शक्ति की कही जाएगी कि वह न तो झुके और न ही टूटे। यहां तक कि पोखरण के बाद जब भारत को प्रतिबंधित करने की कोशिशें हुई तब भी चट्टान बने रहे। उन्हों खुद ही लिखा भी-
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते
सत्य का संघर्ष सत्ता से
न्याय लड़ता निरंकुशता से
अंधेरे ने दी चुनौती है
किरण अंतिम अस्त होती है
दीप निष्ठा का लिये निष्कंप
वज्र टूटे या उठे भूकंप
यह बराबर का नहीं है युद्ध
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज
किन्तु फिर भी जूझने का प्रण
अंगद ने बढ़ाया चरण
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार
समर्पण की माँग अस्वीकार
दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।