बहनजी ने कहा था- दलित कुटेंगे-पिटेंगे तभी जिंदाबाद बोलेंगे : दद्दू

Update: 2016-07-23 12:31 GMT

अनुराग शुक्ला

लखनऊ: कांशीराम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बसपा के साथ चलने वाले दद्दू प्रसाद पार्टी को करीब से जानते हैं। इस समय पार्टी में नहीं है पर पार्टी के मिजाज को लेकर चिंतित हैं। उनका सबसे बड़ा दुख है कि कांशीराम जी को मायावती ने दलित नेता तक सीमित कर दिया जबकि वह बहुजन के नेता थे। newztrack से खास बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि मायावती ने टिकट बेचकर समाज को बेच दिया है। उनका दावा है कि पिछले एक महीने में तो पार्टी के 10 प्रत्याशी अपना पैसा वापस मांग ले गएं हैं। पेश है newztrack.com से दद्दू प्रसाद की खास बातचीत

सवाल-आप कांशीराम जी के साथ रहे हैं उनके बारे में बताइए?

जवाब-बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम जी ने समता, स्वतंत्रता, संप्रभुता, न्याय और बराबरी पर आधारित समाज बनाने के ध्येय से पार्टी और समाज की स्थापन की थी। इसके जरिए दलितों के साथ ही पिछड़े, अल्पसंख्यक, आदिवासी यानी भारत के मूलनिवासियों को एक कर लोकतंत्र की ताकत से सत्ता हासिल करने का मंत्र था। इसी के जरिए कांशीराम जी ने सांसद, विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बनाए। उनकी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं थी।

सवाल-पर बसपा सुप्रीमो मायावती खुद को देवी बताती हैं। आपकी क्या राय है ?

जवाब-उन्होंने वोट की शक्ति को इकट्ठा किया और उसको सीट की शक्ति में बदला। कांशीराम जी कहते थे कि टिकट, वोट और बेटी बेची नहीं जाती। उसे लायक आदमी को दिया जाता है। मायावती ने टिकट बेच दिया। यानी सीट बेच दी और समाज का वोट बेच दिया। मायावती ने समाज को बेच दिया। बेचने वाली अपराधी हो सकती है देवी नहीं।

सवाल-मायावती क्या दलितों को लेकर संजीदा हैं?

जवाब-मैं साक्षी हूं कि 11 मार्च 2012 को चुनाव हारने के बाद बहन मायावती ने ढाई तीन हजार कार्यकर्ताओं की एक बैठक बुलाई थी। उसे संबोधित भी किया। और खुल कर कहा “दलित कुटेंगे पिटेंगे तभी तो मायावती जिंदाबाद बोलेंगे”

सवाल-यानी आपका आरोप है कि मायावती दलितों पर अत्याचार को लेकर संजीदा ही नहीं है।

जवाब-संजीदा? बहन मायावती ने उसी मीटिंग में कहा था कि दलितों पर अत्याचार को लेकर बीएसपी नेता कोई आंदोलन नहीं करें। कोई एससी एक्ट में मुकदमा दर्ज नहीं कराएगा। अपने नेताओं को हिदायत दी कि दलितों पर कोई अत्य़ाचार हो तो भी बसपा का कोई नेता थाने न जाय।

सवाल-मायावती ने क्या दलित समाज का नुकसान किया है?

जवाब-सबसे बड़ा नुकसान यह किया कि कांशीराम जी को दलित नेता बता दिया। कांशीराम जी दलित नेता नहीं बहुजन के नेता थे। उन्होंने पीडितों यानी पिछडों दलितों और अल्पसंख्यकों की नुमाइंदगी की। अब मायावती ने पिछडों को छिन्न भिन्न कर दिया है। कांशीराम जी बहुजन के मसीहा थे, भारत के मूल निवासियों के महीसा। पिछडों और दलितों की एकता पर काम किया। मायावती ने इसे छिन्न भिन्न कर दिया।

सवाल-मायावती तो सोशल इंजीनियरिंग का चमत्कार कही जाती हैं?

जवाब-बहन मायावती वो कर रही हैं जो संभव नहीं। जो संभव है उसे करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। मायावती शोषक और शोषित में दोस्ती करना चाहती हैं। शेर और बकरी को एक पिंजडे में बंद कर रही हैं। शोषित और शोषित की दोस्ती हो सकती है यानी पिछडों और दलितों की पर वो मायावती ने तार तार कर दिया। मायावती ने तो मनुस्मृति जलाने के खिलाफ बोलकर दलित समाज की आत्मा को भी दुख पहुंचाया है। मनुस्मृति तो बाबा साहब ने भी जलाई थी पर मायावती को दलित समाज की दासता की इस किताब से प्यार है।

सवाल-इस सबका आपके हिसाब से असर क्या है।

जवाब-दरअसल इसका असर यह है कि दलित-पिछडों की एकता विखंडित होने से एक भी सीट अब बसपा जीतने की स्थिति में नहीं है। बसपा के 403 सीट पर टिकट पाने वाले NEO CAPITALIST हैं। इनकी न तो कोई राजनैतिक समझ है, न ही राजनीतिक अनुभव है और न ही कोई राजनैतिक वजूद। जो राजनीत के पुराने खिलाड़ी हैं वह अपना इनवेस्टमेंट बसपा मे नहीं लगा रहे हैं। मेरे पास पक्की जानकारी है कि बसपा से लोग पैसे वापस मांग रहे हैं। पिछले एक महीने में 10 लोगों ने पैसे वापस मांग लिए। कुछ जौनपुर के हैं कुछ आजमगढ के हैं। अब तो सिटिंग विधायक से भी पैसे मांगे जा रहे हैं।

सवाल-आप लोगों ने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया?

जवाब-पार्टी से निकलने से पहले 18 महीने तक हम लोगों ने पैर पकड़ पकड़ कर बहन मायावती को इस बदलते स्वरुप को रोकने की मिन्नत की। अपील की। पर कोई असर नहीं। मायावती योजनाबद्ध तरीके से दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यकों की एकता को तोड़ रही हैं। यह काम कोई उनसे ब्लैकमेल कर नहीं करा रहा है। वो खुद कर रही हैं।

सवाल-मायावती जी पर जिस तरह के अपशब्द बोले गए उस पर क्या कहेंगे?

जवाब-यह निंदनीय है। इस तरह की भाषा का इस्तेमाल तो किया ही नहीं जा सकता है। पर सवाल यह है कि दलितों के अत्याचार के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया गया। आंदोलन से रोका गया। एससी एक्ट का मुकदमा नहीं लिखाने की हिदायत खुद बहन जी ने दी पर अपने लिए आंदोलन भी हो गया और थाने में एससी एक्ट का मुकदमा भी लिख गया।

सवाल- और जो बसपा के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के पूर्व नेता के परिवार के लिए कहा वो?

जवाब-वो सब तो नकलची हैं। वो 16 दिसंबर 1995 की नकल कर रहे थे। उन्हें न तो कुछ इतिहास पता है, पर नकल करने पर आमादा थे। निरे बेवकूफ लोग हैं। इसमें तो ज्यादातर बसपा के काडर कार्यकर्ता थे ही नहीं। जैसा मैंने बताया कि सब निओ कैपिटलिस्ट थे। किसी के परिवार को लेकर ऐसी टिप्पणी तो बर्दाश्त की ही नहीं जा सकती। यह घोर निंदनीय है।

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