केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- रोहिंग्या मुसलमान देश के लिए खतरा

Update: 2017-09-18 10:37 GMT
करीब 58 फीसदी रोहिंग्या शरणार्थी बच्चे 'खतरे' की जद में : UN रिपोर्ट

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सोमवार 18 सितंबर को हलफनामा दायर कर रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को भारत में संवैधानिक अधिकार देने से इनकार कर दिया और कहा कि उनको नागरिक की सुविधा देना गैर कानूनी है क्योंकि उनसे देश को खतरा हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने 16 पन्नों का हलफनामा दाखिल किया। सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों के पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों से कनेक्शन हैं। उन्हें किसी भी कीमत पर भारत में रहने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। वो हमारे देश के लिए खतरा हो सकते हैं। केंद्र सरकार ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों को देश में नागरिक की सुविधा देना गैर-कानूनी है।

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केंद्र ने हलफनामे में कहा है कि सिर्फ देश के नागरिकों को ही देश के किसी भी हिस्से में रहने का मौलिक अधिकार है और गैरकानूनी शरणार्थी इस अधिकार के लिये सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं कर सकते।

देश के लिए खतरनाक हैं रोहिंग्या

गृह मंत्रालय के दायर हलफनामे में सरकार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 में स्पष्ट है कि भारत की सीमा के किसी भी हिस्से में रहने, बसने और देश में स्वतंत्र रुप से कहीं भी आने जाने का अधिकार सिर्फ भारत के नागरिकों को ही उपलब्ध है। कोई भी गैरकानूनी शरणार्थी इस कोर्ट से ऐसा आदेश देने के लिए अनुरोध नहीं कर सकता है, जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से सामान्य रुप में मौलिक अधिकार देता है।

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केंद्र ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थी गैरकानूनी हैं और उनका यहां लगातार रहना देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। केंद्र ने ये भी कहा कि वह इस मामले में सुरक्षा खतरों और सुरक्षा एजेंसियो से इकट्ठी की जानकारी का विवरण सीलबंद लिफाफे में पेश कर सकता है।

भारत ने 1951 की शरणार्थियों के दर्जे से संबंधित संधि और 1967 के शरणार्थियों के दर्ज से संबंधित प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए याचिकाकर्ता इस मामले में इनका सहारा नहीं ले सकते हैं। केंद्र के अनुसार इन्हें वापस भेजने पर बैन संबंधी प्रावधान की जिम्मेदारी 1951 की संधि के तहत आती है। यह जिम्मेदारी सिर्फ उन्हीं देशों के लिए है जो इस संधि के पक्षकार हैं। चूंकि भारत इस संधि के प्रोटोकाल में पक्षकार नहीं है, इसलिए इनके प्रावधान भारत पर लागू नहीं होते हैं।

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कोर्ट ने इस याचिका पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को नोटिस जारी नहीं किया, जिसके पास पहले से ही यह मामला है। आयोग ने केंद्र को 18 अगस्त को नोटिस जारी किया था। इस जनहित याचिका में दावा किया गया है कि वे संयुक्त राष्ट्र शरणार्थियों के उच्चायोग के तहत पंजीकृत शरणार्थी हैं और उनके समुदाय के प्रति बड़े पैमाने पर भेदभाव, हिंसा और खूनखराबे की वजह से म्यांमार से भागने के बाद उन्होंने भारत में शरण ली है।

रोहिंग्या शरणार्थियों ने दायर की थी याचिका

दो रोहिंग्या शरणार्थियों मोहम्मद सलीमुल्लाह और मोहम्मद शाकिर ने रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार भेजने की सरकार की योजना के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में इसे अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन बताया गया था। दोनों याचिकाकर्ता भारत में यूनाइटेड नेशन रेफ्यूजी हाई कमिशन में रजिस्टर्ड हैं। उनकी दलील है कि म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ भारी हिंसा के कारण उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी है।

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गृह मंत्रालय की ओर से जुलाई में रोहिंग्या समुदाय के अवैध अप्रवासियों को भारत से वापस भेजने के लिये राज्य सरकारों को इनकी पहचान करने के निर्देश के बाद ये मुद्दा चर्चा का विषय बना था। सरकार की ओर से अपने रूख पर कायम रहने के सख्त रवैये के बाद कोर्ट में ये याचिका दायर की गई थी।

इससे पहले सोमवार को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार निर्वासित करने का फैसला देश हित में है। रिजिजू ने रोहिंग्या शरणार्थियों पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले संवाददाताओं को बताया, यह बहुत ही संवेदनशील मामला है, सरकार जो भी करेगी, वह देश हित में होगा।

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