हाशिमपुरा नरसंहार: PAC के 16 पूर्व जवानों को उम्रकैद, 42 लोगों की हुई थी हत्या

Update: 2018-10-31 14:26 GMT

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को 1987 हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 38 लोगों की हत्या के लिए उत्तर प्रदेश प्रोविंशियल आम्र्ड कॉन्स्टेबुलरी (पीएसी) के 16 पूर्व जवानों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने इसे एक समुदाय के निहत्थे व निर्दोष लोगों का नरसंहार करार दिया। न्यायमूर्ति एस.मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल ने 2005 के निचली अदालत के फैसले को पलट दिया। निचली अदालत ने 16 लोगों को हत्या और दूसरे अपराधों के आरोप से बरी कर दिया था।

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उच्च न्यायालय ने इन 16 आरोपियों को आपराधिक साजिश, अपहरण, हत्या व साक्ष्यों को गायब करने का जिम्मेदार ठहराया।

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर यह आदेश सुनाया है।

अदालत ने कहा, "मौजूदा मामला हिरासत में हत्या का एक दूसरा उदाहरण है, जहां कानूनी प्रणाली, सकल मानवाधिकार दुरुपयोग के अपराधियों पर प्रभावी रूप से मुकदमा चलाने में अक्षम है।" अदालत ने कहा, "मुकदमे के दो दशक से ज्यादा समय तक चलने के कारण पीड़ितों के लिए प्रभावी रूप से न्याय सुनिश्चित करने के प्रयासों को निराशा हुई है।"

उच्च न्यायालय ने इस तरह से एक सशस्त्र बल द्वारा निहत्थे, निर्दोष एक खास समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाए जाने को एक विक्षुब्ध करने वाला पहलू बताया। इस मामले में मूल रूप से 19 आरोपी थे, लेकिन तीन की लंबे मुकदमे के दौरान मौत हो गई। सभी 16 आरोपी अब पीएसी से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उच्च न्यायालय ने सभी दोषियों को 22 नवंबर से पहले समर्पण करने का निर्देश दिया। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो संबंधित थाना प्रभारी (एसएचओ) को उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया गया है।

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गाजियाबाद में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रहे विभूति नारायण राय ने आईएएनएस से कहा, "स्वतंत्र भारत में यह पहला और सबसे बड़ा हिरासत में हुआ नरसंहार था।" विभूति नारायण राय ने 22-23 मई, 1987 की रात को मामले में पहली प्राथमिकी दर्ज की थी।

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हाशिमपुरा के पीड़ितों को पीएसी की 41 बटालियन द्वारा हाशिमपुरा के पड़ोस से तलाशी अभियान के दौरान उठा लिया गया था। पीड़ितों में सभी मुस्लिम थे। इन्हें ट्रक से लाया गया और कतार में खड़ा कर गोली मारकर उनकी नृशंस हत्या कर दी गई।कहा जाता है कि 42 लोगों को गोली मारी गई, लेकिन इसमें से चार लोग मृत होने का बहाना कर बच निकले थे।इस मामले में आरोप-पत्र मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, गाजियाबाद के समक्ष 1996 में दाखिल किया गया था।नरसंहार पीड़ितों के परिवारों की एक याचिका के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को सितंबर 2002 में दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था।दिल्ली की एक सत्र अदालत ने जुलाई 2006 में सभी आरोपियों के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, साक्ष्यों से छेड़छाड़ और साजिश का आरोप तय किया था।

--आईएएनएस

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