इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दर्जन से अधिक विचाराधीन कैदियों को बिना कोर्ट की अनुमति लिए एक जेल से दूसरे जेल में भेजने के राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा, कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य केस में कहा है, कि विचाराधीन कैदियों को एक जेल से दूसरे जेल में बिना संबंधित कोर्ट की अनुमति लिए नहीं भेजा जा सकता।
कोर्ट ने सभी एक दर्जन से अधिक याची कैदियों को पूर्व की जेलों में वापस करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा, कि' राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशोें के तहत नियमानुसार नए सिरे से कोर्ट से अनुमति लेकर स्थानान्तरण कर सकती है।
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दी गई थी कई याचिकाएं
यह आदेश न्यायमूर्ति वीके.नारायण तथा न्यायमूर्ति शशिकांत की खंडपीठ ने गौतमबुद्ध नगर जेल से हमीरपुर जेल भेजे गये सुन्दर भाटी व तेरह अन्य की याचिकाओं में आदेश पारित कर कहा है, कि विचाराधीन कैदियों को दूरस्थ जेलों में भेजने से स्वयं के बचाव के अधिकार से कैदियों को वंचित होना पड़ता है। साथ ही वह अपने लोगों व समाज से कट जाता है। इसलिए बिना उचित कारण के संबंधित कोर्ट के अनुमति लिए बगैर तबादला नहीं किया जा सकता।
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कोर्ट की अनुमति बिना ही भेजे अन्य जेल
सरकार ने कई कैदियों को कोर्ट की अनुमति लिए बिना ही दूरस्थ जेलों में भेज दिया तो कुछ को स्थानान्तरित करने के बाद कोर्ट से अनुमति ली गयी। 68 साल के एक कैदी के खिलाफ आगरा व फिरोजाबाद में सात केस दर्ज है। उसे आगरा से बरेली जेल भेज दिया गया। एक कैदी को आगरा से यह कहते हुए सहारनपुर जेल भेज दिया गया कि सहारनपुर में 15 केस दर्ज है।
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न्यायिक आदेश के बाद ही बदलें जेल
कोर्ट ने कहा, कि 'स्थानान्तरण करने से पहले सुनवाई का मौका नहीं दिया गया और विवेक का इस्तेमाल किए बगैर कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी कर तबादले कर दिए गए। एक जेल से दूसरे जेल भेजने की कार्यवाही अर्द्धन्यायिक है। इसलिए न्यायिक आदेश लेकर ही तबादले किये जाएं।'