रियो डी जेनेरियोः रियो में चल रहे पैरा ओलंपिक में भारत के मरियप्पन ने गोल्ड तो वरून ने ब्रांज मेडल जीत कर इतिहास रच दिया है। उन्होंने यह मेडल हाईजंप इवेंट में जीता है। मरियप्पन, मुरलीकांत पेटकर स्वीमिंग और देवेंद्र झाझरिया भाला फेंक के बाद गोल्ड जीतने वाले तीसरे भारतीय हैं। पीएम मोदी ने मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को ट्वीट कर बधाई दी है।
मरियप्पन थांगावेलू ने गोल्ड मेडल के लिए 1.89 मी. की जंप लगाई और वरूण ने 1.86 मी. की जंप लगाते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया। वहीं अमेरिका के सैम ग्रेवी को सिल्वर मेडल मिला। भारत के संदीप भाला फेंक में कांस्य जीतने से चूक गए और वह चौथे स्थान पर रहे।
बॉस्केटबॉल से खेल में अपने करियर की शुरूआत करने वाले वरूण ने यहां से बाहर निकाले जाने पर हाईजंप को अपना खेल बनाया। इसमें कोच की मदद और अपनी मेहनत से उसने बाहरी देशों में एक के बाद एक मेडल लेकर देश का नाम रोशन किया है।
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पैरालम्पिक में अब तक भारत....
-गौरतलब है कि भारत ने अब तक 10 पैरालंपिक गेम्स में हिस्सा लिया है।
-इस दौरान भारत ने 8 पदक जीते।
-मुर्लीकांत पेटकर ने भारत के लिए पहली बार 1972 में स्वर्ण पदक जीता था।
-इसके बाद देवेन्द्र झाझारिया ने 22 साल बाद जेवलिन में स्वर्ण पदक जीता था।
-आखिरी बार गिरिशा नागाराजेगौड़ा ने चार साल पहले ऊंची कूद में रजत पदक अपने नाम किया था।
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दिव्यांग होने के चलते हटा दिया जाता था खेल से
वरूण भाटी के कोच मनीष तिवारी ने बताया कि वरूण भाटी ने छठी कक्षा में गेम ज्वाइन किया था। वह बॉस्केटबॉल खेलने में बहुत ही माहिर था लेकिन अक्सर बाहर होने वाले मैचों में उसे दिव्यांग होने के चलते खेलने से रोक दिया जाता था। इसके बाद भी हार न मानने वाले वरूण ने चार साल तक बॉस्केटबॉल खेला। इस गेम में भी उसने कई मेडल हासिल किए। बाहर खेले जाने वाले मैचों में उसे दिव्यांग होने के चलते खेलने से रोक दिया जाता था।
बास्केटबॉल से बाहर निकाले जाने पर हाईजंप में दिखाई रूचि
वरूण के कोच ने बताया कि बार बार खेल से बाहर निकाले जाने से वरूण परेशान हो गया था। वहीं उन्होंने देखा की वरूण हाईजंप में सबका उस्ताद था। यहीं से कोच ने वरूण को हाईजंप को अपना हथियार बनाकर आगे बढने का हौसला दिया।
दसवीं कक्षा में शुरू किया हाईजंप
वरूण हाईजंप इस तरह करता था। मानों यह खेल उसी के लिए बना हो। इसी खेल को हथियार बनाकर वरूण ने हाईजंप शुरू किया। जीत को हासिल करने के लिए वरूण हर दिन छह से सात घंटे तक प्रेक्टीस करता था। यहीं कारण है कि एक के बाद एक उसने खेलों में मैडल हासिल किए।
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