लखनऊ: उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में भले ही भाजपा ने अपनी हैसियत से ज्यादा उम्मीदवार उतार दिए हों पर परेशानी सत्तारुढ़ दल यानी समाजवादी पार्टी की सबसे अधिक बढ़ गई है। हालांकि कांग्रेस के पास भी 5 विधायक कम हैं पर प्रीति महापात्रा के आने से उसकी मुश्किलें उतनी नहीं हैं, जितनी कि समाजवादी पार्टी की हैं।
क्या है सपा की बड़ी मुश्किल
समाजवादी पार्टी ने 7 उम्मीदवार उतारे हैं। अपने सभी उम्मीदवारों को जिताने के लिए 10 वोटों की और दरकार होगी, लेकिन जिस तरह कांग्रेस के प्रमोद तिवारी और पीएल पुनिया को राज्यसभा पहुचने में समाजवादी पार्टी ने मदद की उस आधार पर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल की जीत का रास्ता भी सपा को ही प्रशस्त करना होगा, क्योंकि सिब्बल पुनिया और प्रमोद तिवारी की तरह सिर्फ कांग्रेस के उम्मीदवार ही नहीं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के वकील भी हैं।
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ऐसे में सपा को 15 वोटों की दरकार है। हाल फिलहाल जो भी अजित सिंह से सपा के रिश्तों की नई बानगी दिखी है उस आधार पर वह भले ही 8 वोटों का जुगाड़ मानकर चल रही हो, लेकिन भाजपा को भी अजित सिंह पर खासा भरोसा है। अमित शाह और भाजपा की रणनीति किसी भी तरह कपिल सिब्बल का रास्ता रोकने की है। इसी वजह से भाजपा के पास सिर्फ 7 अतिरिक्त विधायक होने के बाद भी उसने गुजरात की प्रीति महापात्रा को यहां उतार दिया है।
मुलायम की उहापोह,किसे बनाएं सपा का सातवां उम्मीदवार
प्रीति महापात्रा के राज्यसभा चुनाव में उतरने के बाद सबसे अधिक मुश्किल मुलायम सिंह यादव के सामने खड़ी है, क्योंकि कपिल सिब्बल जीतते हैं तो उनके सातवें उम्मीदवार के जीतने में दिक्कत आ सकती है। सपा में इस बात को लेकर खासी बेचैनी है कि पार्टी की ओर से सातवां उम्मीदवार बनाया कौन जाएगा। भरोसेमंद सूत्रों, की माने तो रेवती रमण सिंह या विशंभर निषाद सातवें उम्मीदवार हो सकते हैं, क्योंकि रेवती रमण सिंह के बेटे को भी चुनाव हारने के बावजूद दर्जा प्राप्त मंत्री बनाया गया है। विशंभर निषाद राज्यसभा में हाल फिलहाल हैं।
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भाजपा की बल्ले बल्ले
भाजपा इन चुनाव से जहां सभी राजनीतिक दलों को यह बताने की कोशिश में है कि उनकी पार्टी से लोगों का मोह भंग हो रहा है, वहीं उसने 2017 के चुनाव के लिए दूसरे दल के विधायकों को इस चुनाव को प्रवेश द्वार के तौर पर इस्तेमाल करने का मौका दिया है।