प्रधानमंत्री जी, देखिए आपके संसदीय क्षेत्र के बगल में ये क्या हो रहा?

Update: 2017-06-23 14:40 GMT
प्रधानमंत्री जी, देखिए आपके संसदीय क्षेत्र के बगल में क्या हो रहा?

रतिभान त्रिपाठी

लखनऊ: सरकार चाहे कितनी भी कोशिश करे लेकिन जिलों में तैनात अफसर जनहित की योजनाओं और सरकार की प्राथमिकताओं पर पलीता लगाने से बाज नहीं आ रहे। स्‍वच्‍छता अभियान और खुले में शौच मुक्‍त गांवों के लिए योगी सरकार जी तोड़ कोशिश कर रही है।

मुख्‍य सचिव और पंचायती राज के प्रमुख सचिव इस योजना को लेकर आए दिन दिशा निर्देश जारी करते रहते हैं। लेकिन कुछ अफसरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अपने मन की ही करते हैं और फर्जी रिपोर्ट भेजकर शासन को गुमराह भी कर रहे हैं।

हकीकत से उलट भेजी रिपोर्ट

ऐसा ही एक मामला भदोही जिले का प्रकाश में आया है। भदोही के जिला प्रशासन ने 45 गांवों का खुले में शौच मुक्‍त (ओडीएफ) गांव घोषित कर शासन को रिपोर्ट भी भेज दी। लेकिन हकीकत इसके उलट है। शासन इस मामले को लेकर हुई शिकायतों के बाद खासी हाय-तौबा मची हुई है। शासन शिकायतों की जांच कराने की तैयारी में है।

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40 फीसद रिपोर्ट फर्जी

भदोही जिले में 564 ग्राम पंचायत हैं जिनमें सिर्फ 45 गांवों को खुले में शौच मुक्‍त घोषित कर दिया गया। गांवों की संख्‍या के मुकाबले औसत तकरीबन 11 फीसद ही बैठता है। इतनी कम संख्‍या में भी खुले में शौच मुक्‍त घोषित किए गए गांवों के बारे में बताया जा रहा है कि तकरीबन 40 फीसद रिपोर्ट फर्जी तरीके से तैयार की गई है। महज यह जताने के लिए कि प्रशासन इस बाबत संजीदा है लेकिन शासन स्‍तर से अगर इसकी जांच हो जाएगी तो सारी पोल खुल जाएगी।

द्वारिकापुरी-भवानीपुर की सच्चाई कुछ और ही

सूत्र बताते हैं कि रिपोर्ट में औराई विधानसभा क्षेत्र के द्वारिकापुरी और भवानीपुर गांवों को ओडीएफ घोषित किया जा चुका है, जबकि वहां की आधे से अधिक आबादी अब भी खुले में शौच करती है। असलियत यह है कि उतने शौचालय बनाए ही नहीं गए। इसी तरह ज्ञानपुर विधानसभा क्षेत्र बेरासपुर गांव को भी जिला प्रशासन ने ओडीएफ घोषित करते हुए शासन को रिपोर्ट भेजी है लेकिन हकीकत इसके उलट है।

रिपोर्ट से मेल नहीं खा रहा तर्क

एक वजह यह भी बताई जा रही है कि जब क्षेत्र में बालू उपलब्‍ध ही नहीं था तो इतनी संख्‍या में शौचालय बनाए कैसे जा सकते हैं। जब प्रशासन की मिलीभगत से ठेकेदार लाभार्थियों के लिए स्‍वीकृत धनराशि में ही कटौती करने से बाज नहीं आते। ऐसे में वह महंगी बालू खरीदकर शौचालय कैसे बनवा सकते हैं। इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इस बारे में डीएम भदोही बिशाख जी का पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क की कोशिश की गई लेकिन उनका फोन नहीं उठा।

 

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