'समरसता संगम': भागवत बोले- देश का बुरा हुआ तो हिन्दू को दोषी माना जाएगा

Update:2018-02-24 15:59 IST
'समरसता संगम' में भागवत बोले- देश का बुरा हुआ तो हिन्दू को दोषी माना जाएगा

आगरा: ताजनगरी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का 'समरसता संगम' शनिवार (24 फरवरी) को आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ध्वज प्रणाम के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की।

अपने सम्बोधन में मोहन भागवत बोले, 'आज दुनिया भारत की तरफ देख रही है। भारत में अस्तित्व के लिए संघर्ष नहीं है।' उन्होंने मौजूद लोगों से कहा, अधिक जमा मत करो, बल्कि लोगों में बांटो। स्वार्थ से एकता नहीं आ सकती। खुद को बनाओ, दूसरों की चिंता मत करो।'

हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए

अपने संबोधन में आरएसएस प्रमुख ने कहा, 'देश में शोषण मुक्त समाज होना चाहिए। आज समाज को टूटा दर्पण दिखाया जा रहा है। हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा, हमने लूट नहीं की, किसी का राज नहीं छीना।'

भारत माता पहले भगवान बाद में

भागवत बोले, 'देश का बुरा हुआ तो हिन्दू को दोषी माना जाएगा। उन्होंने कहा, भारत माता पहले भगवान बाद में। अब 'भारत माता की जय' दुनिया में करानी है।' समरसता संगम में भागवत ने कहा, संघ का कार्य संपूर्ण देश में समरसता स्थापित करना है। व्यक्ति के शरीर में भी सभी अंगों की एकता की आवश्यकता होती है। वही हाल देश में भी है। एकरूपता लाने के लिए प्रत्येक की आवश्यकता है।'

अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है

मोहन भागवत ने कहा, 'दुनिया में जो दिखता है वह अलग-अलग होता है। सारी दुनिया का सारा चलन अलग है। खुद का जीवन सफल बनाने के लिए साधन है लेकिन सबके लिए साधन नहीं है। अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इसलिए बलवान बनो लेकिन उसका उपयोग सर्व रक्षा के लिए करो। जो कहते हैं कि हम बलवान हैं, वह अपने हिसाब से दुनिया को चलाना चाहते हैं।'

आज दूसरों के दुख से सुख लेने वाले ज्यादा हैं

आरएसएस प्रमुख ने कहा, 'दुनिया में जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। उसमें बलवान विजयी होते हैं लेकिन उससे सुख शांति नहीं मिलती। कभी-कभी लगता है कि दूसरों के दुख को देखकर सुख लेने वाले ज्यादा हैं। विकास की बात चल रही है लेकिन विकास से सुविधा बढती है, लेकिन सुख नहीं मिलता। इसीलिए आज बड़ी उम्मीद से दुनिया भारत की तरफ देख रही है। भारत की परंपरा कहती है अनेकता में एकता।'

वसुधैव कुटुम्बकम का भाव होना चाहिए

उन्होंने कहा, 'भारत के मनीषियों ने सोचा एकता में ही विविधता है। इस पर विचार को प्रयोग करते हुए आज तक परंपरा पर देश चल रहा है। उन्होंने कहा, विवेकानंद सच्चे देशभक्त थे। संपूर्ण अस्तित्व एक है। एक बढ़ेगा तो सब नहीं बढ़ेंगे, बल्कि सब बढ़ेंगे तो ही सबका विकास होगा। संपूर्ण पृथ्वी एक है। वसुधैव कुटुम्बकम का भाव होना चाहिए।'

स्वार्थ के आधार पर एकता नहीं आती

भागवत बोले, 'कमाते कितने हैं यह बात बड़ी नहीं हैं। बल्कि बांटे कितने हो यह बड़ी बात है। जो दिखता है वह साश्वत है। वृक्ष का जड़ नहीं दिखाई देता, फूल और फल दिखाई देते हैं। पेड़ एक ही है। इसे एक ही प्राण मिला है जिससे संपूर्ण पेड़ की रचना होती है। स्वार्थ के आधार पर एकता नहीं बल्कि आत्मीयता प्रेम से आती है। संघ में हिन्दू राष्ट्रीयता है जिसे लोग भारतीयता कहते हैं। भारत हिन्दू राष्ट्र है। देश का बुरा हुआ तो हिन्दू समाज पकड़ा जाएगा।'

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