लखनऊ: रक्षा बंधन का त्यौहार भाई- बहन के अटूट प्रेम का प्रतिक माना जाता हैं इस दिन हर बहन अपने भाई को रक्षा का शुत्र बांधती हैं। और भगवान से अपने भाई की लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। बता दें, रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं। इसलिए इसका महत्व अधिक हो जाता हैं।
हर बहन को इस दिन का खास इन्तेजार रहता हैं कि कब रक्षा बंधन का त्यौहार आयें और वो अपनें भाई को प्यार से और सुन्दर सी राखी बांधे। इस त्यौहार के लिए सभी लड़कीयां खास तैयारियां करती हैं कपड़े, मेहंदी आदि लगा कर इस त्यौहार को मनाती हैं। बता दें, ये पर्व हर साल सावन के आख़िरी दिन मनाया जाता हैं।
रक्षा बंधन से जुड़ी कुछ रोचक बातें
- रक्षा बंधन का त्यौहार हर साल सावन के आख़िरी दिन मनाया जाता हैं इसलिए कुछ लोग इसे सावनी या सलूनो भी कहतें हैं।
- वैसे तो रक्षा बंधन भाई बहन का त्यौहार माना जाता हैं लेकिन हमारें भारत देश में ब्राह्मणों, गुरुओं और नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बांधी जाती है।
- रक्षा बंधन त्यौहार को कई राज्यों में अलग- अलग नामों से भी जाना जाता हैं। जैसे:- महाराष्ट्र में इस त्योहार को नारियल पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
- रक्षा बंधन त्यौहार को मानतें हुए देश में कहीं जगह वृक्ष को और भगवान को भी राखी बांधने की परंपरा है।
- इस दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष भाईचारे को दर्शातें हुए एक- दूसरें को भगवा रंग की राखी बांधते हैं।
- हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में राखी बांधते हुए पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जो कि राजा बलि से जुड़ा हुआ है जिसमें कहा जाता है जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूँ, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।
- रक्षा बंधन पर्व पर भारत के कई राज्यों में बहनों की ओर से भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियां लगाने की परंपरा है, जो कि भाईयों के लंबी उम्र के लिए किया जाता है।
- रक्षा बंधन के दिन मराठी लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा भी करते हैं।
- इस पर्व पर राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज़ है।
- राखी का त्यौहार प्यार और वचन का त्यौहार है इसलिए इसका प्रयोग भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिये मनाया गया था, जिसका चलन गुरूदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने किया था।