Aaj Ka Itihas: 6 मार्च 1991 में आज के ही दिन पीएम चंद्रशेखर ने दिया था इस्तीफा, आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी

6 March History In Hindi: 6 मार्च का दिन भारतीय राजनीति के इतिहास के पन्नों में एक महत्वपूर्ण दिन के तौर पर दर्ज है। दरअसल, ये वहीं डेट है, जब चंद्रशेखर ने पीएम पद से इस्तीफा दिया था।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-03-06 07:20 IST

Chandra Shekhar (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

06 March Ka Itihas: 06 मार्च 1991 भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन था। इसी दिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उनका यह निर्णय उस समय आया जब कांग्रेस पार्टी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। यह घटना भारतीय राजनीति (Indian Politics) में अस्थिरता, गठबंधन सरकारों की जटिलता और केंद्र में मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता को उजागर करती है।

इस लेख में हम चंद्रशेखर सरकार के गठन, उसके कार्यकाल, कांग्रेस द्वारा समर्थन वापसी के कारणों और इसके भारत की राजनीति पर पड़े प्रभाव की विस्तार से चर्चा करेंगे।

चंद्रशेखर का उदय और प्रधानमंत्री बनना

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

चंद्रशेखर भारतीय राजनीति में एक प्रमुख समाजवादी नेता थे। उनका राजनीतिक जीवन लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में समाजवादी आंदोलन से प्रेरित था। वे कांग्रेस विरोधी राजनीति के प्रमुख चेहरों में से एक थे और उन्होंने जनता पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

राजनीतिक पृष्ठभूमि

1970 के दशक में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ खड़े हुए और आपातकाल के विरोध में मुखर रहे।

1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद वे इसके प्रमुख नेताओं में शामिल हुए।

1988 में जनता पार्टी के विभाजन के बाद उन्होंने समाजवादी जनता पार्टी (SJP) का गठन किया।

1989 के आम चुनाव और वी.पी. सिंह सरकार

1989 के आम चुनाव में जनता दल और विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ने राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को हराया। इसके बाद, वी.पी. सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने।

हालांकि, वी.पी. सिंह की सरकार लंबे समय तक नहीं चल सकी और कुछ महीनों बाद ही मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने और राम मंदिर आंदोलन के कारण भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल में दरार आ गई।

बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन का समर्थन किया, जबकि वी.पी. सिंह सरकार ने लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को रोकने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इससे बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और वी.पी. सिंह की सरकार गिर गई।

चंद्रशेखर की सरकार (नवंबर 1990 - मार्च 1991)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

वी.पी. सिंह के इस्तीफे के बाद, जनता दल में विभाजन हो गया और चंद्रशेखर ने समाजवादी जनता पार्टी (SJP) के नाम से एक नया गुट बनाया। चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं थी, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें बाहर से समर्थन देने का फैसला किया।

कांग्रेस द्वारा समर्थन का कारण

कांग्रेस ने वी.पी. सिंह को हराने के लिए चंद्रशेखर को समर्थन दिया था।

राजीव गांधी नहीं चाहते थे कि तत्काल चुनाव हों, इसलिए उन्होंने चंद्रशेखर को एक "अस्थायी प्रधानमंत्री" के रूप में समर्थन दिया।

10 नवंबर 1990 को चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

चंद्रशेखर सरकार की चुनौतियाँ

चंद्रशेखर की सरकार बेहद कमजोर थी। उनके पास न तो लोकसभा में बहुमत था और न ही कोई ठोस नीति लागू करने का अवसर। उनकी सरकार को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा:

1. राजनीतिक अस्थिरता

कांग्रेस का समर्थन केवल अस्थायी था और किसी भी समय वापस लिया जा सकता था।

जनता दल में विभाजन के कारण कई नेता असंतुष्ट थे।

2. आर्थिक संकट

1990-91 में भारत को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा।

विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घट रहा था और भारत के पास केवल तीन सप्ताह का आयात करने लायक मुद्रा बची थी।

सरकार को सोना गिरवी रखकर कर्ज़ लेना पड़ा।

3. कांग्रेस और राजीव गांधी का दबाव

चंद्रशेखर ने खुद को एक स्वतंत्र नेता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस लगातार सरकार को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी।

राजीव गांधी, जो विपक्ष में थे, चंद्रशेखर को कमजोर करने का प्रयास कर रहे थे ताकि कांग्रेस फिर से सत्ता में आ सके।

कांग्रेस द्वारा समर्थन वापसी और सरकार का पतन

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मार्च 1991 में कांग्रेस ने यह आरोप लगाया कि हरियाणा में कुछ पुलिसकर्मी राजीव गांधी की जासूसी कर रहे हैं। इस आरोप को आधार बनाकर कांग्रेस ने 06 मार्च 1991 को चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

मुख्य कारण:

राजनीतिक समीकरण बदलना – कांग्रेस चाहती थी कि जल्द चुनाव हों ताकि वह सत्ता में वापस आ सके।

राजीव गांधी की रणनीति – वे एक अल्पकालिक सरकार को अस्थिर कर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे।

जासूसी कांड – कांग्रेस ने आरोप लगाया कि हरियाणा पुलिस के माध्यम से उनकी निगरानी की जा रही थी, हालांकि इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं थे।

चंद्रशेखर ने तुरंत प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

इस्तीफे के बाद क्या हुआ?

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लोकसभा भंग कर दी गई और भारत में आम चुनाव की घोषणा कर दी गई।

चंद्रशेखर कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने, जब तक कि चुनावों के बाद नई सरकार नहीं बन गई।

मई 1991 में आम चुनाव हुए, लेकिन इसी बीच 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या कर दी गई।

इसके बाद कांग्रेस को सहानुभूति वोट मिले, लेकिन नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने।

चंद्रशेखर सरकार का महत्व और प्रभाव

चंद्रशेखर का कार्यकाल भले ही चार महीने का था, लेकिन इसने भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण घटनाओं को जन्म दिया:

1. गठबंधन सरकारों की चुनौतियाँ

यह पहली बार था जब एक अल्पसंख्यक सरकार इतनी कमजोर स्थिति में थी।

कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए "बाहरी समर्थन" देकर सरकार को गिराने की रणनीति अपनाई।

2. भारत का आर्थिक संकट और सुधारों की राह

चंद्रशेखर सरकार के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था संकट में थी और यही कारण था कि नरसिम्हा राव सरकार को 1991 में आर्थिक सुधार लागू करने पड़े।

3. कांग्रेस की राजनीतिक चालें

चंद्रशेखर सरकार कांग्रेस के लिए एक "ट्रांजिशनल सरकार" थी, जिसे उन्होंने कमजोर कर दिया।

इससे यह साफ हो गया कि कांग्रेस जब तक सत्ता में नहीं होगी, तब तक कोई भी सरकार अस्थिर रह सकती है।

06 मार्च 1991 का दिन भारतीय राजनीति में अस्थिरता और सत्ता संघर्ष का प्रतीक था। चंद्रशेखर ने एक अल्पकालिक सरकार चलाई, लेकिन कांग्रेस की रणनीतियों के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

उनकी सरकार का कार्यकाल छोटा था, लेकिन इसने भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों, कांग्रेस की रणनीतियों और भारत के आर्थिक संकट को उजागर कर दिया। उनके इस्तीफे के बाद हुए चुनावों ने भारतीय राजनीति की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया और 1991 के आर्थिक सुधारों का रास्ता तैयार किया।

चंद्रशेखर एक सिद्धांतवादी नेता थे, लेकिन उनके पास संसाधन और राजनीतिक ताकत की कमी थी। उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों की जटिलताओं और कांग्रेस की सत्ता में वापसी की रणनीति का एक प्रमुख उदाहरण बना।

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