AIIMS Ki Founder Amrit Kaur: भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री ने रखी थी एम्स की नींव, जानें राजकुमारी अमृत कौर के बारे में

First Health Minister of India: भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया ने भारत में सबसे बड़े अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी। आइए जानें उनके जीवन के बारे में प्रमुख बातें।;

Written By :  Shivani Jawanjal
Update:2025-01-20 08:00 IST

India First Health Minister Amrit Kaur

AIIMS Founder Amrit Kaur Story In Hindi: राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता और भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री (First Health Minister of India) थीं। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की अनुयायी के रूप में, वे 16 वर्षों तक उनकी सचिव रहीं। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में, उन्होंने नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई। 1956 में उन्होंने एम्स की स्थापना के लिए लोकसभा में विधेयक पेश किया और इसके लिए न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्वीडन और अमेरिका से सहायता जुटाई।

राजकुमारी का परिचय (Amrit Kaur Kaun Thi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

राजकुमारी अमृत कौर आहलुवालिया (Rajkumari Amrit Kaur) का जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ में हुआ था। उनका परिवार कपूरथला के राजघराने से संबंधित था। उनके पिता, राजा हरनाम सिंह आहलुवालिया, को अंग्रेजों ने "सर" की उपाधि प्रदान की थी। वे पंजाब की कपूरथला रियासत के महाराज के छोटे बेटे थे। कहा जाता है कि राजगद्दी को लेकर विवाद के कारण राजा हरनाम सिंह ने कपूरथला छोड़कर लखनऊ में बसने का फैसला किया। राजकुमारी अमृत कौर की प्रारंभिक शिक्षा ब्रिटेन के डोरसेट में शेरबोर्न स्कूल में हुई, और बाद में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए लंदन और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों में अध्ययन (Amrit Kaur Kitni Padhi Likhi Thi) किया। पढ़ाई पूरी कर राजकुमारी 1908 ईस्वी में भारत लौट आईं।

राजा हरनाम सिंह की बेटी, राजकुमारी अमृत कौर, अपने सात भाइयों के बीच अकेली बहन थीं। महात्मा गांधी के विचारों ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। 1919 में गांधी जी से पहली बार मिलने से पहले, वे लगातार पत्रों के माध्यम से उनके साथ संवाद करती रहीं। गांधी जी के संपर्क में आने के बाद, अमृत कौर ने खुद को पूरी तरह से देश की आजादी के आंदोलन में समर्पित कर दिया। यह जुड़ाव उनके जीवन के अंतिम क्षण तक बना रहा।

राजमहल त्याग स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया जीवन

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गोपालकृष्ण गोखले (Gopalkrushna Gokhale) के विचारों से प्रेरित होकर राजकुमारी अमृत कौर ने स्वतंत्रता संग्राम में कदम रखा। गोखले के माध्यम से ही उन्होंने महात्मा गांधी के बारे में जाना और उनके विचारों की प्रशंसक बन गईं। 1930 में अपने माता-पिता के निधन के बाद, राजकुमारी ने राजमहल का परित्याग कर अपना पूरा जीवन स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया। गांधी जी की घनिष्ठ अनुयायी के रूप में, उन्होंने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 4 बार जेल गईं राजकुमारी

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1930 में गांधी जी के नेतृत्व में जब ‘दांडी मार्च’ (Dandi March/Salt March) शुरू हुआ, तो राजकुमारी अमृत कौर ने भी इसमें भाग लिया और इसके चलते उन्हें जेल की सजा भी हुई। 1934 से वे गांधी जी के आश्रम में रहने लगीं और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ (Bharat Chodo Andolan) के दौरान भी उन्हें गिरफ्तार किया गया। 1937 में अमृत कौर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के रूप में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गईं, जिससे ब्रिटिश सरकार नाखुश हुई और उन पर राजद्रोह का आरोप लगा कर उन्हें जेल में डाल दिया।

उन्होंने सरोजनी नायडू के साथ मिलकर ऑल इंडिया वुमन कांफ्रेंस और आई इंडिया वुमन कांग्रेस की स्थापना की। 1942 में, अंग्रेजों ने फिर से उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अंबाला जेल में उनकी सेहत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें शिमला के मैनोर्विल हवेली में तीन साल तक नजरबंद कर दिया गया।

स्वतंत्र भारत की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री (Bharat Ki Pahli Swasthya Mantri)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

विदेश में शिक्षा प्राप्त करने वाली राजकुमारी अमृत कौर स्वतंत्र भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनीं। हालांकि, पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में जब देश के पहले मंत्रिमंडल का गठन हुआ, तो शुरुआत में उनका नाम शामिल नहीं था। यह कहा जाता है कि महात्मा गांधी के आग्रह पर उन्हें कैबिनेट में जगह दी गई, जिसके बाद वे स्वतंत्र भारत की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री बनी।

भारत में रखी एम्स की नींव (Foundation of AIIMS in India)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

स्वतंत्र भारत की पहली महिला स्वास्थ्य मंत्री के रूप में राजकुमारी अमृत कौर ने भारत में एम्स की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने एम्स की स्थापना के लिए वैश्विक स्तर पर धन जुटाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका से वित्तीय सहायता प्राप्त कर जरूरी राशि इकट्ठी की।

राजकुमारी कौर एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की नेता थीं और विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहली महिला अध्यक्ष (First Woman President of the World Health Organization) बनीं। उन्होंने ट्यूबरक्लोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया की स्थापना की और मद्रास में सेंट्रल लेप्रोसी टीचिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की नींव रखी। इसके अलावा, वह लीग ऑफ रेड क्रॉस सोसायटीज के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की उपाध्यक्ष और सेंट जॉन्स एम्बुलेंस एसोसिएशन की कार्यकारिणी की अध्यक्ष भी रहीं।

प्रभावशाली प्रतिभा की धनि राजकुमारी

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राजकुमारी अमृत कौर ने 1955 में मलेरिया के खिलाफ एक बड़े अभियान का नेतृत्व किया। उनकी दूरदर्शिता और प्रभावशाली कार्यों के चलते टाइम पत्रिका ने उन्हें 20वीं सदी की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं में शामिल किया। 1950 में, वे वर्ल्ड हेल्थ असेंबली की अध्यक्ष बनने वाली पहली एशियाई महिला बनीं। 1909 में पंजाब लौटने के बाद, उन्होंने देश की कुप्रथाओं और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई।

बच्चों को शारीरिक रूप से मजबूत और अनुशासित बनाने के लिए उन्होंने स्कूली खेलों को बढ़ावा दिया और बाद में नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना की। 1926 में, उन्होंने ऑल इंडिया वुमन कॉन्फ्रेंस की स्थापना कर महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया।

भारतीय चिकित्सा शिक्षा में नवाचार की अग्रदूत

कहा जाता है कि जब राजकुमारी अमृत कौर ने सदन में विधेयक प्रस्तुत किया, तो उन्होंने इसके लिए पहले से कोई भाषण तैयार नहीं किया था। इसके बावजूद, उस दिन उनके द्वारा कही गई बातें आज भी प्रेरणा के रूप में याद की जाती हैं। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उन्होंने कहा कि 'यह उनका सपना था कि भारत में ऐसा एक संस्थान हो जो चिकित्सा के स्नातकोत्तर अध्ययन और शिक्षा के उच्च मानकों को बनाए रखते हुए युवाओं को अपने देश में ही आगे की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित कर सके'।

राजकुमारी अमृत कौर की अन्य उपलब्धियां (Other Achievements of Princess Amrit Kaur)

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राजकुमारी अमृत कौर 1957 तक भारत की स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कार्यरत रहीं। उनके नेतृत्व में खेल और शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी संभाले गए। उनकी पहल पर न केवल एम्स की स्थापना हुई, बल्कि पटियाला में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स की भी नींव रखी गई। इसके साथ ही, वे वर्ल्ड हेल्थ असेंबली की अध्यक्ष बनने वाली पहली एशियाई महिला बनने का गौरव भी हासिल कर चुकी थीं।

1961 में अमृत कौर को समाज सुधार के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए प्रतिष्ठित ‘रेने सा मेमोरियल अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और आजादी के बाद देश को मजबूत बनाने में उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी। अमृत कौर जैसे समर्पित व्यक्तित्व इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में स्थान रखते हैं। इंडियन रेड क्रॉस की संस्थापक और 1950 से जीवन के अंत तक इसकी अध्यक्ष रहीं अमृत कौर को लंदन टाइम्स ने सरोजिनी नायडू और विजयलक्ष्मी पंडित के साथ स्वतंत्रता संग्राम की तीन महान सत्याग्रही महिलाओं में शामिल किया था।

निधन (Princess Amrit Kaur Death)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

6 फरवरी 1964 को नई दिल्ली में राजकुमारी अमृत कौर का निधन हो गया। उन्होंने कभी शादी नहीं की और अपना पूरा जीवन समाज सेवा, स्वतंत्रता संग्राम और देश की प्रगति के लिए समर्पित कर दिया। उनकी योगदानों को हमेशा याद किया जाएगा, विशेष रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए अद्वितीय कार्यों के लिए।

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