Freedom Fighter Anant Laxman: अगर मैं इस काम में असफल भी हुआ, तो मेरी मौत क्रांतिकारी आंदोलन को और तेज कर देगी

Freedom Fighter Anant Laxman Kanhere: भारत की आज़ादी की लड़ाई में जिन स्वतंत्रता सैनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी उनमे से एक नाम अनंत लक्ष्मण कन्हेरे का भी है। आइये जानते हैं उनकी अनसुनी कहानी के बारे में।;

Update:2025-03-04 11:04 IST

Freedom Fighter Anant Laxman Kanhere : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। जो आज आजाद देश की रौनकों और चमक दमक के बीच किसी अंधेरे में गुमनाम से हो गए हैं। जिनसे आज की देश की युवा पीढ़ी पूरी तरह से अनजान है। इन आजादी के रणबांकुरों का जिक्र किसी अखबार या पत्रिका में यदा कदा ही पढ़ने को मिलता है। इन गुमनाम शहीदों में से एक नाम अनंत लक्ष्मण कन्हेरे का भी आता है, जिन्होंने मात्र 18 वर्ष की आयु में नासिक के कलेक्टर अर्थर जैकसन की हत्या कर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी। यह घटना भारत के क्रांतिकारी आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। अनंत लक्ष्मण कन्हेरे का जीवन प्रेरणादायक और रोमांचक घटनाओं से भरा था। उनकी शहादत से पहले और बाद में कई रोचक किस्से जुड़े हैं, जो उनकी बहादुरी, बुद्धिमत्ता और क्रांतिकारी सोच को दर्शाते हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

अनंत लक्ष्मण कन्हेरे का जन्म 1891 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में हुआ था। वे एक मराठी ब्राह्मण परिवार से थे और उनकी परवरिश एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवेश में हुई। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने औरंगाबाद में प्राप्त की, लेकिन उच्च अध्ययन के लिए वे नासिक चले गए।

क्रांतिकारी विचारों से प्रेरणा

अनंत कन्हेरे का झुकाव बहुत कम उम्र में ही राष्ट्रवादी विचारधारा की ओर हो गया था। उस समय महाराष्ट्र में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, वीर सावरकर, चाफेकर बंधु जैसे क्रांतिकारियों का प्रभाव बढ़ रहा था। नासिक में उनकी मुलाकात अभिनव भारत सोसाइटी और मित्र मेला जैसे गुप्त क्रांतिकारी संगठनों से हुई, जिन्हें वीर सावरकर और उनके अनुयायियों ने स्थापित किया था।

  • ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों को देखकर उन्होंने हथियार उठाने का निर्णय लिया।
  • महज 18 साल की उम्र में बना लिया था ब्रिटिश शासन का सबसे बड़ा दुश्मन।
  • अनंत कन्हेरे बहुत कम उम्र में ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत करने के लिए तैयार हो गए थे। जब वे 16-17 साल के थे, तभी उन्होंने वीर सावरकर और उनके क्रांतिकारी संगठन "अभिनव भारत"* के बारे में सुना। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों को देखा और खुद ही तय कर लिया कि वे इस शासन को सबक सिखाएंगे।

जैकसन को मारने के लिए खुद अपनी जान को दांव पर लगा दिया

नासिक में क्रांतिकारी गतिविधियों की वजह से कई युवा गिरफ्तार किए जा रहे थे। ब्रिटिश सरकार के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे। जब कलेक्टर अर्थर जैकसन को खत्म करने की योजना बनी, तो अनंत कन्हेरे ने इसे अंजाम देने की जिम्मेदारी खुद अपने ऊपर ले ली। उन्होंने कहा था—

"अगर मैं इस काम में असफल भी हुआ, तो मेरी मौत क्रांतिकारी आंदोलन को और तेज कर देगी!"

नाटक के बहाने हत्या की योजना

21 दिसंबर 1909 को नासिक में एक नाटक का आयोजन हुआ था। इस नाटक को देखने के लिए कलेक्टर जैकसन को आमंत्रित किया गया। अनंत कन्हेरे पहले से ही योजना बनाकर वहाँ पहुँचे और जैसे ही जैकसन नाटक स्थल में प्रवेश कर रहा था, उन्होंने अपनी बुलडॉग पिस्टल से 4 गोलियां दाग दीं। जैकसन वहीं ढेर हो गया।

गिरफ्तारी से पहले खुद को गोली मारना चाहते थे

हत्या के बाद अनंत कन्हेरे ने खुद को गोली मारकर शहीद होने की योजना बनाई थी, ताकि पुलिस उनके पीछे न पड़े और बाकी क्रांतिकारी बच सकें। लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया—उनकी पिस्तौल की बची हुई गोलियां चल नहीं पाईं और वे गिरफ्तार हो गए।

जेल में भी पेश की बहादुरी की मिसाल

जब उन्हें ठाणे जेल में रखा गया, तब उन्होंने वहां भी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए अन्य कैदियों को प्रेरित किया। वे अपने साथियों विनायक देशपांडे और कृष्णाजी के साथ जेल में भी निर्भय बने रहे।

फांसी से पहले अंतिम पत्र में लिखा- "मेरा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा"

अनंत कन्हेरे को जब फांसी की सजा सुनाई गई, तब उन्होंने अपने एक मित्र को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा था—

"मेरी मृत्यु से मत दुखी होना। यह बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा। भारत की आजादी के लिए कई और लड़ाईयाँ लड़ी जाएँगी, और एक दिन यह देश आजाद होगा!"

ब्रिटिश सरकार ने की थी उनकी शहादत को छिपाने की कोशिश

ब्रिटिश सरकार को डर था कि अगर उनकी फांसी के बारे में जनता को पता चला, तो क्रांति और तेज हो जाएगी। इसलिए उन्हें 19 अप्रैल 1910 को चुपचाप ठाणे जेल में फांसी दे दी गई और उनका अंतिम संस्कार भी जेल परिसर में ही कर दिया गया, ताकि कोई क्रांतिकारी उनके पार्थिव शरीर को न ले सके।

वीर सावरकर ने उन्हें "स्वतंत्रता के पहले बलिदानी युवाओं में से एक" कहा

अनंत कन्हेरे की शहादत के बाद वीर सावरकर ने उन्हें याद करते हुए कहा था—

"इतनी कम उम्र में कोई इतना बड़ा बलिदान कर सकता है, यह अपने आप में भारत की युवा शक्ति का प्रमाण है। अनंत कन्हेरे उन ज्वालाओं में से एक थे, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपनी आहुति दी।"

उनके नाम पर नासिक में स्टेडियम और सड़कें

देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल जाने वाले इस वीर शहीद को उनकी जन्म स्थली रही महाराष्ट्र में उनकी वीरता के लिए याद किया जाता है। नासिक में "अनंत कन्हेरे स्टेडियम"और कई सड़कों के नाम उनके सम्मान में रखे गए हैं। अनंत लक्ष्मण कन्हेरे का जीवन हमें यह सिखाता है कि साहस, बलिदान और देशभक्ति की कोई उम्र नहीं होती। वे मात्र 18 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए शहीद हो गए, लेकिन उनकी कहानी आज भी हर भारतीय के साथ लिए प्रेरणा बनी हुई है।

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