Baligram Das Story : भक्त बालिग्राम दास
Baligram Das Story: मेरे स्वामी ! अब मुझे अपना लो । मेरे पाप - ताप सदा के लिए दूर कर दो। अपने विरद की रक्षा करो, नाथ!
Baligram Das Story : मेरे स्वामी ! अब मुझे अपना लो । मेरे पाप - ताप सदा के लिए दूर कर दो। अपने विरद की रक्षा करो, नाथ!
दासिया रथ यात्रा के दर्शन करके कैसे घर लौटा , उसे कुछ स्मरण नहीं । गांव के दूसरे यात्री लौट रहे थे , उनके कहने से अर्ध चेतना में ही वह घर आया । घर पर पहुंचते ही स्त्री ने कहा,आप भूखे होंगे , भोजन कर लें । वह बिना कुछ बोले भोजन करने बैठ गया । उसकी स्त्री ने हडिया में भात बनाया था । उसी पर शाक रखकर उसने पति के सम्मुख रख दिया।
भोजन करने के बदले दासिया उस हडिया को ध्यान से देखने लगा । उसे हडिया का लाल रंग भगवान की रतनारी आंखें जान पड़ा , भात को उसके भीतर का सफेद भाग और शाक को उसने पुतली देखा । मारे हर्ष के वह खड़ा होकर नाचने लगा ।
दासिया की स्त्री पति को नाचते , रोते , हंसते , पागल की सी आदत करते देख डर गई । उसे लगा कि अवश्य रथ यात्रा देखने जाते या लौटते समय मेरे पति को कोई भूत प्रेत लग गया है । रोते हुए उसने पड़ोसियों को पुकारा। लोगों ने आकर स्त्री को धीरज बंधाया । वे दासिया को पुकारने ,, सावधान करने और भोजन करने को कहने लगे।
दासिया ने कहा-भाइयों रथ पर विराजमान श्री जगन्नाथ के कमल नेत्र आप लोग क्या नहीं देख रहे हैं ? ओह कितना सुंदर है भगवान का नेत्र! वह फिर भावावेश में नृत्य करने लगा ।
दासिया के घर बहुत से लोग एकत्रित हो गए थे । रथ यात्रा से लौटते हुए बहुत से महात्मा भी उस ग्राम में ठहरे थे । उनमें से भी कुछ लोग वहां आ गए थे । एक भक्त ने दासिया की भाव स्थिति को समझ लिया। उन्होंने सब से कहा -यह सचमुच भगवान का दासिया ‘दास’ ही है ।
हम इसे आज से बालिग्राम दास कहेंगे , क्योंकि बालिग्राम के इस दास ने अपने जन्म से गांव को कृतार्थ कर दिया । तभी से दासिया बावरी का नाम बालिग्राम दास हो गया ।
एक भक्त ने स्त्री को समझाया कि दूसरे बर्तन में भात निकालकर और शाक को अलग रखकर पति को भोजन करने के लिए दे । स्त्री ने हडिया उठा ली । एक पत्ते पर भात और दूसरे पर शाक रखकर पति को दिया । तब बालिग्राम दास ने भोजन किया।
( भक्तांक पुस्तक से साभार/ लेखिका धर्म शास्त्र मर्मज्ञ एवं प्रख्यात ज्योतिषी हैं ।)