Bhagavad Gita Quotes: श्री कृष्ण कहते हैं जो मनुष्य सुख और दुख में विचलित नहीं होता वह मनुष्य निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य हैं

Bhagavad Gita Quotes in Hindi: भगवद गीता में जीवन के सभी पहलुओं के बारे में श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है आइये विस्तार से जानते हैं भगवद गीता में लिखीं इन ज्ञान की बातों को।

Update:2024-06-14 11:57 IST

Bhagavad Gita Quotes (Image Credit-Social Media)

Bhagavad Gita Quotes in Hindi: भगवद गीता हिन्दुओं का ऐसा प्राचीन ग्रन्थ है जिसमें जीवन में क्या सही है और क्या गलत है इसके बारे में आपको जानकारी मिल जाएगी। ये आपको आपके जीवन के सभी पड़ाव में किस तरह अपना व्यवहार रखना है इससे भी परिचित कराता है। इसमें वर्णित प्रेरक बातें आपके जीवन के लिए बेहद मूल्यवान हैं। ये एक ऐसा संस्कृत ग्रंथ है जो हिंदू महाकाव्य महाभारत से लिए गए छंदों से बना है। आइये इसमें लिखी बातों को हम भी अपने जीवन में लाने का प्रयास करें और जीवन में सफल हो।

भगवद गीता कोट्स (Bhagavad Gita Quotes in Hindi)

  • सुख और दुख का आना-जाना सर्दी और गर्मी की ऋतु के आने जाने के समान है। यह सब इंद्रिय बोध से उत्पन्न होते हैं। मनुष्य को अविचल भाव से इन सब को सहन करना सीखना चाहिए।
  • जो मनुष्य सुख और दुख में विचलित नहीं होता है। दोनों में समभाव रखता है वह मनुष्य निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य हैं।
  • भौतिक शरीर का अंत अवश्यंभावी है। इसलिए हे अर्जुन युद्ध करो।
  • आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन हैं। शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता।
  • जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करता है।
  • जो विद्वान होते हैं। वे न तो जीवित के लिए शोक करते हैं न हीं मृत के लिए शौक करते हैं।
  • आत्मा को ना तो कोई शस्त्र काट सकता है। न हीं अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न हीं जल द्वारा भिगोया जा सकता है और ना ही वायु द्वारा सुखाया जा सकता है।
  • जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म भी निश्चित है इसलिए तुम्हें अपने कर्तव्य पालन में शोक नहीं करना चाहिए।
  • शरीर में रहने वाले का कभी भी वध नहीं किया जा सकता है, इसलिए किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है।
  • धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़कर तुम्हारे लिए कोई कर्तव्य नहीं है।
  • तुम्हें कर्म करने का अधिकार है लेकिन कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। इसलिए कर्मफल के प्रति आसक्त हुए बिना अपना कर्म करें।
  • जिस प्रकार पानी में तैरती नांव को प्रचंड वायु दूर बहा ले जाती है। उसी प्रकार इंद्रियों का वेग भी मनुष्य की बुद्धि को हर लेता है।
  • न तो कर्म से विमुख होकर कोई कर्म के फल से छुटकारा पा सकता है और न ही केवल सन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
  • जो लोग ध्यान का दिखावा करते हैं जबकि वास्तव में वे मन में इंद्रियभोग का चिंतन करते रहते हैं। वह सबसे बड़े धूर्त हैं।
  • कर्म ना करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है क्योंकि कर्म के बिना तो शरीर निर्वाह भी नहीं हो सकता।
  • हे अर्जुन! जब भी और जहां भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती हैं तब तब मैं इस धरती पर अवतार लेता हूं।
  • भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूं।
  • जिस भी भाव से सारे लोग मेरी शरण में आते हैं उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूं।
  • जो व्यक्ति अपने कर्म फल के प्रति अनासक्त हैं और जो अपने कर्तव्य का पालन करता है वही असली सन्यासी और योगी हैं।
  • मनुष्य अपने मन का इस्तेमाल, अपनी प्रगति में करना चाहिए, ना कि अपने को नीचे गिराने में। क्योंकि मन आपका मित्र भी बन सकता है और शत्रु भी।
  • जिसने अपने मन को जीत लिया। उसके लिए वो सर्वश्रेष्ठ मित्र बन जाएगा लेकिन जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बन जाएगा।
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