Bhagwat Geeta Ka Gyan: श्री कृष्ण कहते हैं मनुष्य की वासना ही उसके पुनर्जन्म का कारण होती है

Bhagwat Geeta Ka Gyan: श्री कृष्ण ने अर्जुन को रणभूमि में समझाया कि कैसे वो इस जीवन को चिंताओं से मुक्त करते हुए वो आगे बढ़ें। आत्मा से लेकर कर्म का ज्ञान भी हमे गीता में मिलता है। आइये एक नज़र डालते हैं गीता के इस ज्ञान पर।

Update: 2024-07-27 05:09 GMT

Bhagwat Geeta Ka Gyan (Image Credit-Social Media)

Bhagwat Geeta Ka Gyan: भगवत गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के कटु सत्य से अवगत करवाया और उन्हें बताया कि उन्हें किस रास्ते पर चलकर मोक्ष की प्राप्ति होगी। ये सन्देश सम्पूर्ण मनुष्य जाति के लिए था। जिसने इस बात को समझ लिया उसने भवसागर को पार कर लिया। ऐसे में श्री कृष्ण द्वारा कही बातें जिनका वर्णन भगवत गीता में है आइये उसके बारे में जानते और समझते हैं।

भगवत गीता का ज्ञान (Bhagwat Geeta Ka Gyan)

  • सुख एवं आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करते हैं। परंतु मनुष्य उसे स्त्री में, घर में और बाहरी सुख प्राप्ति के लिए ढूंढ रहा है।
  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि भगवान उपासना केवल शरीर से ही नहीं बल्कि मन से भी करना चाहिए। ईश्वर का वंदन उन्हें प्रेम-बंधन में बांधता है।
  • मनुष्य की वासना ही उसके पुनर्जन्म का कारण होती है।
  • मनुष्य इंद्रियों के अधीन है इसलिए उसके जीवन में विकार और परेशानियां आती हैं।
  • मनुष्य के अंदर धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण सत्संग के बिना नहीं आते हैं।
  • श्रीकृष्ण कहते हैं जिस प्रकार शरीर से वस्त्र मैल होने पर बदलते हैं ठीक उसी प्रकार मन में यानी ह्रदय में मैले होने से उसे निकाल देना चाहिए।
  • जवानी में जिसने ज्यादा पाप किए हैं उसे बुढ़ापे में नींद नहीं आती है, उसे वह पश्चाताप में बिताते हैं।
  • भगवान ने जिसे संपत्ति दी है उसे गाय रखकर सेवा करनी चाहिए इससे भगवान प्रसन्न होते हैं ।
  • जुआ, मदिरा पान, परस्त्री गमन (अनैतिक संबंध), हिंसा, असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयता इन सब में कलियुग का वास है इसलिए इसका और एक नाम है घोर कलयुग ।
  • अधिकारी शिष्य को यानी जो ज्ञान प्राप्त करने में परिश्रम करते हैं उसे सद्गुरु (अच्छा गुरु) अवश्य मिलता है।
  • भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को अपने हृदय को बार-बार समझने की कोशिश करनी चाहिए, ईश्वर के सिवाय उसका कोई नहीं है। साथ ही यह विचार करना चाहिए कि उसका कोई नहीं है इस ब्रह्मांड में भी, जो उसका साथ देगा।
  • भोग में क्षणिक (क्षण भर के लिए) सुख प्राप्त होता है। साथ ही त्याग में स्थायी आनंद है।
  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि सत्संग ईश्वर की कृपा से मिलता है। परंतु कुसंगति में पड़ना मनुष्य के अपने ही विचारों के कारण होता है।
  • लोभ और मोह माया (किसी से अधिक लगाव) पाप के माता-पिता कहे जाते हैं। साथ ही लोभ पाप का बाप ही है।
  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्त्री का धर्म है कि रोज तुलसी और पार्वती का पूजन करें इससे उनकी सुख समृद्धि हमेशा बने रहते हैं ।
  • मनुष्य को अपने मन और बुद्धि पर हमेशा विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये बार-बार मनुष्य को दगा देते हैं। खुद को निर्दोष मानना बहुत बड़ा गुनाह साबित होता है।
  • पति-पत्नी पवित्र रिश्ता बनाए रखने से भगवान पुत्र के रूप में उनके घर आने की इच्छा रखते हैं।
  • भगवान इन सभी कसौटियों पर कसकर, जांच-परखकर ही मनुष्य को अपनाते हैं। इसलिए मन में गलत विचार नहीं रखना चाहिए सदैव आप किसी के साथ प्रेम भाव से रहना चाहिए।
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