Biju Festival 2024: बीजू महोत्सव को क्यों मनाया जाता है? जानिए क्या है इस दिन का महत्त्व

Biju Festival 2024: बीजू महोत्सव हर साल 13 अप्रैल को होता है, जिसे त्रिपुरा में चकमा समुदाय द्वारा बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

Update:2024-04-12 17:26 IST

Biju Festival 2024 (Image Credit-Social Media)

Biju Festival 2024: हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाने वाला बीजू, त्रिपुरा में चकमा समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक रंगीन त्योहार है, जो उनके लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। इस त्योहार को बड़ी को बड़ी धूम-धाम से तीन दिनों तक मनाया जाता है और इसे मनाने वाले विभिन्न समुदायों द्वारा इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि संगराई, बिशु, बैसु आदि। बीजू का जश्न मनाने वाले लोग गुजरते साल को विदाई देते हैं और नए साल का धूमधाम से स्वागत करते हैं। सभी ये प्रार्थना करते हैं कि यह उनके लिए ये नया साल सौभाग्य लाएगा।

बीजू महोत्सव 2024 इतिहास और महत्त्व (Biju Festival 2024 History and Significance)

इस त्योहार के मुख्य आकर्षणों में से एक विशेष बीजू नृत्य है, जो ताल और बांसुरी जैसे पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों की लय के साथ होता है, जिनमें से कुछ बांस से तैयार किए जाते हैं। बीजू बंगाली कैलेंडर के आखिरी दिन पड़ता है और इस साल त्रिपुरा में इसे 13 अप्रैल को मनाया जाएगा। उत्सव के पहले दिन को फूल बीजू, दूसरे दिन को मूल बीजू और तीसरे दिन को गोत्चे पोचे बीजू कहा जाता है। 13 अप्रैल को अगरतला में बैंकों की छुट्टी भी रहेगी। आइये जानते हैं इस त्यौहार की शुरुआत कैसे हुई और त्रिपुरा के चकमा समुदाय के लिए इसका क्या महत्त्व है।

बीजू एक उत्सव है जो कृषि मौसम की पहली बारिश के बाद पहली फसल का जश्न मनाता है। ये किसानों के लिए भरपूर फसल के लिए आभार व्यक्त करने का समय होता है। साथ ही ये चकमा लोगों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की सराहना करने और उसे उजागर करने के लिए भी मनाया जाता है।

चकमा समुदाय का इस त्योहार मनाने के पीछे का उद्देश्य युवा पीढ़ी के बीच चकमा समुदाय की परंपराओं और संस्कृति के बारे में जागरूकता पैदा करना है। बीजू को त्रिपुरा में अन्य जनजातियों और जातीय समूहों जैसे त्रिपुरी, तांगचांग्या, मार्मा, एमआरओ, खियांग, खुमी और चक द्वारा भी मनाया जाता है।

कैसे मनाया जाता है बीजू महोत्सव

  • पहले समय में इस उत्सव को एक पखवाड़े से अधिक समय तक मनाया जाता था लेकिन समय के साथ साथ त्योहार का रूप थोड़ा बदला है और अब इसे फूल बीजू से शुरू करके तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस दिन लोग विशेष रूप से अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं और उन्हें फूलों से सजाते हैं। वे आसपास की नदियों पर पुष्पांजलि अर्पित करके भी इस दिन को मनाते हैं। इसके अलावा, चकमा घरों और बौद्ध मंदिरों में दीपक जलाए जाते हैं और भगवान् बुद्ध से प्रार्थना की जाती है।
  • दूसरा दिन, जिसे मूल बीजू कहा जाता है, पारंपरिक गीतों और नृत्यों के साथ मनाया जाता है। लोग इस अवसर के लिए विशेष व्यंजन और मिठाइयाँ तैयार करते हैं और अपने दोस्तों और विस्तारित परिवारों से मिलने में दिन बिताते हैं। दिन का समापन लोकप्रिय बीजू नृत्य के साथ होता है जो गुज़रते साल की शुरुआत करता है और नए साल का स्वागत करता है।
  • तीसरा और अंतिम दिन, जिसे गोचे पोचे बीजू कहा जाता है, समुदाय के बुजुर्गों को एक बड़ी दावत के साथ सम्मानित करके मनाया जाता है, और उनके जीवनसाथी के साथ विवाह की प्रतिज्ञा को नवीनीकृत किया जाता है।
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