Gharaunda Kyo Banate Hai: खत्म हो रही है घरौंदा बनाने की परंपरा, जानें क्यों बनाते हैं दिवाली पर मिट्टी का घर

Gharaunda Kyo Banate Hai: दीवाली क्यों मनायी जाती है यह बात तो सबको पता है। लेकिन घरौंदा क्यों बनाया जाता है । कुंवारी लड़कियां ही घरौंदा क्यों सजाती हैं, यह कम लोग ही जानते होंगे।

Written By :  Pallavi Srivastava
Update:2021-10-25 17:39 IST

मिट्टी का घरौंदा

Gharaunda Kyo Banate Hai: भारतीय संस्कृति में हर पर्व को बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। जब बात दीवाली की हो तो यह और भी खास हो जाता है। सदियों से दीपावली पर घरौंदा(Diwali Par Gharonda) बनाए जाने की परम्परा चली आ रही है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां घरौंदों का निर्माण करती हैं, ताकि उनका घर भरापूरा रहे।

लेकिन अब जमाना इतना हाईटेक हो गया है कि धारे-धीरे आज की नयी पीढ़ी परंपराओं को पीछे छोड़ती जा रही है। लोग आगे बढ़ने की होड़ में अपनों के साथ-साथ रीति-रिवाज भी भूलते जा रहे हैं। दिवाली पर घरौंदा बनाना(Diwali Par Gharonda Kaise banaye) शुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि दिवाली पर घरौंदा(Kyo Banate Hai Gharonda) क्यों बनाया जाता है, तो चलिए जानते हैं कि क्या है घरौंदा बनाने के पीछे का कारण-

इस दिवाली आप भी बनाए घरौंदे pic(social media)

क्या है मान्यता ( Kya Hai Manayta)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को अयोध्या लौटे, तब उनके आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने घरों में दीपक जलाकर धूम धाम से उनका स्वागत किया। तब से दीवाली मनाए जाने की परम्परा चली आ रही है। नगरवासियों का मानना था कि श्रीराम के आगमन से ही उनकी नगरी फिर बसी है। इसी को देखते हुए लोगों में घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन हुआ। इसे प्रतीकात्मक रूप से नये नगर के बसने को लेकर देखा जाता है।

लड़कियां ऐसे सजाती हैं घरौंदा (Gharaunda decoration)

आमतौर पर घर की लड़कियां घरौंदा को बनाने और सजाने का काम करती हैं। दीवाली पर मिट्टी से बने दिये और खिलौनों का प्रचलन(Mitti Ke Khilaune Ka Prachalan) है। घरौंदे को सजाने के लिए कुल्हिया-चुकिया का इस्तेमाल किया जाता है और लड़कियां इसमे फरही, मिष्ठान और अन्न आदि भरती हैं। ऐसी मान्यता है कि भविष्य में वह जब कभी भी वह दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करें, तो उनका संसार भी सुख-समृद्धि से भरापूरा रहेगा। इंटरेस्टिंग बात यह है कि कुल्हिया-चुकिया में भरे अन्न का इस्तेमाल वह खुद नहीं करती हैं । उसे अपने भाई को खिलाती हैं।

धंतेरस से ही घरौंदों पर जलते हैं दिये

जैसे धनतेरस के दिन से ही घर में दिये जलने शुरू हो जाते हैं, उसी तरह घरौंदों में भी शाम के समय दिये जलाए जाते हैं। रंग बिरंगे रंगों से रंगोली बनायी जाती है। चूरा गट्टा भी चढ़ाए जाते हैं।

घरौंदे में होती है लक्ष्मी-गणेश की पूजा

घरौंदे में दिये जलाने के साथ लक्ष्मी-गणेश की पूजा भी करते हैं, जिससे घर में समृद्धि और खुशहाली आती है। समय के साथ साथ घरौंदे में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। अब बाजार में मिट्टी से बने-बनाए घरौंदे भी बिकने लगे हैं। लेकिन जो बात अपने हाथों से बनाए हुए घरौंदों में है, वह रेडीमेड में नहीं।

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