Harivansh Rai Bachchan Ka Jivan Parichay: मधुशाला के कवि जिनकी कविताएं बनी युगों की पहचान , आइए जानते हैं उनके जीवन को

Harivansh Rai Bachchan Ka Jivan Parichay: रिवंश राय के नाम में ‘बच्चन’ शब्द उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा है। दरअसल, यह उनका उपनाम नहीं था, बल्कि उनके बचपन का एक प्यारा नाम था। उन्हें बचपन में सभी ‘बच्चन’ कहकर बुलाते थे।;

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2025-01-17 21:28 IST

 Harivansh Rai Bachchan Ka Jivan Parichay in Hindi (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Harivansh Rai Bacchan Ka Jivan Parichay: यह कविता आप सब ने कभी न कभी जरूर सुनी होगी । इस कविता के लेखक प्रसिद्ध साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन जी हैं । आज इस लेख के सहायता से हम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगें । साथ ही आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उनके प्रति हमारी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगें।

जो बीत गई सो बात गई है

जीवन में एक सितारा था

माना वह बेहद प्यारा था

वह डूब गया तो डूब गया

अम्बर के आनन को देखो

कितने इसके तारे टूटे

कितने इसके प्यारे छूटे

जो छूट गए फिर कहाँ मिले

पर बोलो टूटे तारों पर

कब अम्बर शोक मनाता है

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम

थे उस पर नित्य निछावर

तुम, वह सूख गया तो

सूख गया

मधुवन की छाती को देखो

सूखी कितनी इसकी कलियाँ

मुरझाई कितनी वल्लरियाँ

जो मुरझाई फिर कहाँ खिलीं

पर बोलो सूखे फूलों

पर कब मधुवन शोर मचाता है

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था

तुमने तन मन दे डाला था

वह टूट गया तो टूट गया

मदिरालय का आँगन देखो

कितने प्याले हिल जाते हैं

गिर मिट्टी में मिल जाते हैं

जो गिरते हैं कब उठते हैं

पर बोलो टूटे प्यालों पर

कब मदिरालय पछताता है

जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिटटी के हैं बने हुए

मधु घट फूटा ही करते हैं

लघु जीवन लेकर आए हैं

प्याले टूटा ही करते हैं

फिर भी मदिरालय के अंदर मधु के घट हैं

मधु प्याले हैं

जो मादकता के मारे हैं

वे मधु लूटा ही करते हैं

वह कच्चा पीने वाला है

जिसकी ममता घट प्यालों

पर जो सच्चे मधु से

जला हुआ कब रोता है

चिल्लाता है

जो बीत गई सो बात गई

हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित कवि, लेखक और विद्वान थे। उनके काव्य ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उन्हें एक विशेष पहचान दिलाई। उनके जीवन, रचनाओं और उनके नाम ‘बच्चन’ के पीछे छिपे रहस्य को समझने के लिए हमें उनके पूरे जीवन को गहराई से जानना होगा।

हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर, 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के पास स्थित एक छोटे से गांव बाबूपट्टी में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव और माता का नाम सरस्वती देवी था। हरिवंश राय का परिवार परंपरागत कायस्थ परिवार था, जहां शिक्षा और संस्कृति का गहरा महत्व था।


बच्चन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रतापगढ़ और इलाहाबाद में पूरी की। उनकी शिक्षा की नींव इतनी मजबूत थी कि बाद में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उनकी शिक्षा ने उनके काव्य और लेखन में गहरी विद्वता का संचार किया।साल 1955 में कैम्ब्रिज से वापस आने के बाद वे भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त हुए।

‘बच्चन’ नाम के पीछे का कारण

हरिवंश राय के नाम में ‘बच्चन’ शब्द उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा है। दरअसल, यह उनका उपनाम नहीं था, बल्कि उनके बचपन का एक प्यारा नाम था। उन्हें बचपन में सभी ‘बच्चन’ कहकर बुलाते थे। जब उन्होंने कवि के रूप में लिखना शुरू किया, तो उन्होंने इसे अपने साहित्यिक नाम के रूप में अपनाया। यह नाम इतना प्रसिद्ध हो गया कि उनके असली उपनाम ‘श्रीवास्तव’ की जगह उनकी पहचान ‘बच्चन’ से होने लगी। उनके परिवार और उनके वंशजों ने भी इसी नाम को आगे बढ़ाया।

हरिवंश राय बच्चन का वैवाहिक जीवन संघर्षों और संवेदनाओं से भरा था। उनकी पहली पत्नी श्यामा का 1936 में तपेदिक की बीमारी से निधन हो गया। यह घटना उनके जीवन में गहरा आघात लेकर आई और उनकी कविताओं में यह पीड़ा झलकने लगी। 1941 में उन्होंने तेजी सूरी से विवाह किया, जो न केवल उनकी जीवनसंगिनी थीं।बल्कि उनके लेखन में भी एक प्रेरणा थीं। तेजी बच्चन एक शिक्षित और सांस्कृतिक विचारों वाली महिला थीं, जिनका प्रभाव बच्चन की रचनाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।


हरिवंश राय और तेजी बच्चन के दो पुत्र हुए – अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन। अमिताभ बच्चन भारतीय सिनेमा के महानायक के रूप में प्रसिद्ध हुए और उन्होंने अपने पिता के नाम को विश्व स्तर पर स्थापित किया।

साहित्यिक यात्रा- हरिवंश राय बच्चन की साहित्यिक यात्रा 20वीं सदी के हिंदी साहित्य के स्वर्णिम युग का हिस्सा है। उनकी पहली प्रमुख कृति ‘मधुशाला’ (1935) ने उन्हें रातों-रात लोकप्रिय बना दिया। यह काव्य संग्रह रूमानियत और प्रतीकात्मकता से भरपूर है और इसमें जीवन, प्रेम, और मृत्यु के गूढ़ तत्वों को समझाने का प्रयास किया गया है। ‘मधुशाला’ की सादगी और गहराई ने इसे पाठकों के दिलों में अमर बना दिया।

उनकी अन्य प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:

  1. मधुबाला (1936): मधुशाला के बाद इस काव्य संग्रह ने उनकी ख्याति को और बढ़ाया।
  2. मधुकलश (1937): उनकी त्रयी का अंतिम भाग, जिसमें उन्होंने मानवीय अनुभवों को गहराई से चित्रित किया।
  3. नीड़ का निर्माण फिर (1947): यह काव्य स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय समाज के निर्माण की भावना को प्रतिबिंबित करता है।
  4. दो चट्टानें (1965): इस कृति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उनकी कविताओं की विशेषताएँ:

हरिवंश राय बच्चन की कविताओं में सरलता, सरसता और गहराई का अद्भुत संगम मिलता है। उनकी भाषा सरल और हृदयस्पर्शी थी, जिससे आमजन भी आसानी से जुड़ सके। उनकी कविताएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूती हैं – प्रेम, वेदना, मृत्यु, समाज और आत्मा की खोज।उनकी कविताओं में शराब का प्रतीकात्मक प्रयोग जीवन की कठिनाइयों और उनके समाधान को दर्शाने के लिए किया गया है। उदाहरण के लिए, ‘मधुशाला’ में शराब केवल नशे का साधन नहीं, बल्कि जीवन के रस और उत्साह का प्रतीक है।

अन्य रचनाएँ और अनुवाद:हरिवंश राय बच्चन ने कई अनुवाद कार्य भी किए। उन्होंने उमर खैय्याम की रुबाइयों का हिंदी अनुवाद किया, जो अत्यंत लोकप्रिय हुआ। इसके अलावा, उन्होंने विलियम शेक्सपियर के नाटकों का हिंदी में अनुवाद किया, जिनमें ‘मैकबेथ’ और ‘ऑथेलो’ शामिल हैं। उनके इन अनुवादों ने हिंदी साहित्य को विश्व साहित्य से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


राजनीतिक और सामाजिक योगदान:हरिवंश राय बच्चन स्वतंत्रता संग्राम के समय से लेकर स्वतंत्र भारत के निर्माण तक सक्रिय रहे। उन्होंने गांधीजी और नेहरूजी के विचारों से प्रेरित होकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझा और अपनी कविताओं के माध्यम से समाज को जागरूक किया।उन्हें 1952 में राज्यसभा का सदस्य भी बनाया गया, जहां उन्होंने भारतीय संस्कृति और भाषा के उत्थान के लिए काम किया।

पुरस्कार और सम्मान:

हरिवंश राय बच्चन को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:

साहित्य अकादमी पुरस्कार (1965): उनकी कृति ‘दो चट्टानें’ के लिए।

पद्म भूषण (1976): भारत सरकार द्वारा साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए।

सरस्वती सम्मान: उनकी रचनाओं के लिए।

18 जनवरी, 2003 को हरिवंश राय बच्चन का निधन हो गया। उनका निधन हिंदी साहित्य और भारतीय समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। उनके योगदान ने उन्हें अमर बना दिया और उनकी कविताएँ आज भी हर वर्ग के पाठकों के बीच लोकप्रिय हैं।

हरिवंश राय बच्चन का जीवन और काव्य हमें सिखाते हैं कि साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि यह आत्मा की अभिव्यक्ति है। उनकी कविताओं में जीवन का उत्सव और संघर्ष दोनों शामिल हैं। ‘ बच्चन’ नाम आज भी उनके अद्वितीय साहित्यिक योगदान और उनके परिवार की प्रतिष्ठा के कारण गूंजता है। उनकी रचनाएँ और विचार सदैव प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।

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