लखनऊ: सावन आते ही त्योहारों की झड़ी लग जाती है। हर तरफ उल्लास और उमंग का माहौल बन जाता है। इन्हीं त्योहारों में एक हैं सावन मास का हरियाली तीज। इसमें झूले के साथ विरह और मिलन के गीत गाए जाते है।घरों में गुंजिया, घेवर और फैनी जैसे पकवान बनाए जाते हैं। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा का भी विशेष महत्व है।
वैसे तो गांवों में हरियाली तीज का त्योहार आज भी पम्परागत रूप से मनाया जाता है। लेकिन शहरों में इसका रुप बदल गया है। ये त्योहार श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को उत्तरी भारत में मनाया जाता है। हर घर में झूले डाल महिलाओं के समूह गा-गाकर झूला झूलती है। रीति-रिवाज के अनुसार नई-नवेली दुल्हन पहली तीज अपने मायके में आकर मनाती है।ससुराल वाले सिंधारा लेकर सगे-संबंधियों के साथ बहू के घर जाते है और फिर मायके वाले सास के लिए बायना लेकर बेटी को भेजते है।
भगवान शिव से मां पार्वती का मिलन
इस दिन सोलह श्रृंगार करके महिलाएं शिव-पार्वती की विशेष पूजा अर्चना करती है। कहते हैं कि इस दिन पार्वती जी कई हजार सालों की तपस्या के बाद भगवान शिव से मिली थी। राजस्थान में तीज को लेकर कथा प्रचलित है कि राजा सूरजमल के शासन काल में इस दिन पठान कुछ स्त्रियों को अगवा कर ले गए थे। राजा सूरजमल ने अपना बलिदान देकर इन्हें आजाद कराया था। उसी दिन से इस पर्व पर यहां मल्ल युद्ध का आयोजन किया जाता है।
सिमट रहा वजूद तीज और झूलो का
ग्रामीण क्षेत्र में इस त्योहार को लेकर महिलाएं आज उत्साहित नजर आती है, किंतु झूले डालने और पींग बढ़ाने का सिलसिला वहां भी पहले से बहुत कम हो गया है। यहां भी लोक गीत की जगह फिल्मी गीतों ने ले ली है। शहरों में ये त्योहार किट्टी पार्टी और क्लबों में तीज क्वीन चुने जाने तक ही सिमट कर रह गया है। परंपरागत रूप से मनाया जाने वाला ये त्योहार अब आधुनिकता की अंधी दौड़ में कुछ खो सा गया है।