IAS Success Story: गरीबी नहीं बन सकी रोड़ा, खैनी बेचने वाले के बेटे ने आईएएस बन लहराया परचम

IAS Success Story: हर साल हम सुनते हैं कि एक रिक्शा चालक या एक छोटी सी दुकान के मालिक का बेटा या बेटी परीक्षा में पास हो जाते हैं क्योंकि यही एक ऐसी जगह है जहां पैसा मायने नहीं रखता। ऐसा ही एक उदाहरण हैं अरविंद कुमार के पुत्र और बिहार के नवादा जिले के निवासी निरंजन कुमार (IAS Niranjan Kumar Biography) ।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2023-02-22 15:34 IST

IAS Niranjan Kumar (Image credit: social media)

IAS Niranjan Kumar Success Story: रोजगार की तलाश करने वाले अधिकांश व्यक्ति यूपीएससी की ओर रुख करते हैं क्योंकि इसके लिए आवेदन करना आसान है, इसके लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता नहीं होती है और यह ज्यादातर स्व-अध्ययन है जिसे कई लोग प्रबंधित कर सकते हैं। यह आपसे इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेजों की तरह भारी शुल्क नहीं लेता है।

कौन हैं IAS निरंजन कुमार


हर साल हम सुनते हैं कि एक रिक्शा चालक या एक छोटी सी दुकान के मालिक का बेटा या बेटी परीक्षा में पास हो जाते हैं क्योंकि यही एक ऐसी जगह है जहां पैसा मायने नहीं रखता। ऐसा ही एक उदाहरण हैं अरविंद कुमार के पुत्र और बिहार के नवादा जिले के निवासी निरंजन कुमार (IAS Niranjan Kumar Biography) । उन्होंने यूपीएससी में 535वीं रैंक हासिल की। लेकिन यूपीएससी परीक्षा में यह उनका पहला प्रयास नहीं था।

अगर इंसान के अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो वह निरंतर मेहनत करके असंभव को भी संभव बना सकता है। इस दुनिया में हर किसी का सपना होता है कि वह अपनी जिंदगी में एक बड़ा मुकाम हासिल करे परंतु सिर्फ सपने देखने से ही मंजिल नहीं मिलती है। इसके लिए जीवन में मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है।

कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति अपनी राह में आने वाली मुश्किलों का सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहता है तो कामयाबी उसके कदम जरूर चूमती है। अपने मंज़िल को लेकर ऐसा ही कुछ ज़ज़्बा दिखाया बिहार के नवादा जिले के निवासी निरंजन कुमार ने। जिन्होंने अपने जीवन में गरीबी सहते हुए अपनी मेहनत के दम पर आईएएस बनने का अपना सपना साकार किया।

आइये जानते हैं आईएएस निरंजन कुमार की सफलता की दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी


पिता की थी छोटी सी खैनी दुकान (IAS Niranjan Kumar Family)

बिहार के नवादा जिले के रहने वाले निरंजन कुमार के घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। पिताजी का नाम अरविंद कुमार की एक छोटी सी खैनी की दुकान थी और इसी दुकान से जो भी कमाई होती थी, उससे ही घर - परिवार का पेट पलता था। निरंजन कुमार अपने पिताजी की मदद करना चाहते थे, जिसके चलते वह अपने पिता के साथ इस छोटी सी खैनी की दुकान पर बैठते थे। जब उनके पिताजी कहीं बाहर जाते थे, तो वही इस दुकान को संभाला करते थे। हद तो तब हो गयी जब कोरोना महामारी का कहर पूरी दुनिया के साथ इनके परिवार पर भी बरसा, और आमदनी के एकमात्र जरिये खैनी की दुकान भी बंद हो गई। इसी दर्मियान निरंजन कुमार के पिताजी की सेहत भी खराब हो गई थी, जिसके कारण उनकी दुकान फिर कभी नहीं खुल सकी। बता दें कि इस छोटी सी दुकान से प्रत्येक महीने मात्र सिर्फ ₹5000 ही कमाई हो पाती थी, जिससे बमुश्किल से घर का गुजारा चल पाता था।

जरा सोचिये ऐसी स्थिति में अपने बेटे को अधिकारी बनते देखना एक सपने एक सपने के पूरे होने जैसा था।

मुश्किल परिस्थितियों ने और किया मज़बूत

निरंजन कुमार के पिताजी की खैनी की दुकान जब पूरी तरह से बंद हो गई तो ऐसी स्थिति में घर की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी । ऐसी भयानक परिस्थिति में परिवार के लिए अपनी जिंदगी को बचाये रखना ही बहुत मुश्किल हो रहा था लेकिन इस बीच भी निरंजन कुमार के परिवार ने कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ा। भले ही जीवन में बहुत सी कठिनाइयां आई परंतु उनके परिवार ने इन कठिनाइयों को कभी भी निरंजन के राह का रोड़ा नहीं बनने दिया।


जवाहर नवोदय विद्यालय से ली थी शिक्षा

चूँकि निरंजन कुमार शुरू से ही पढ़ाई में काफी अच्छे थे इसलिए परिवार ने हमेशा उनकी शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया। साल 2004 में जब जवाहर नवोदय विद्यालय रेवर नवादा से मैट्रिक की परीक्षा निरंजन कुमार ने पास कर ली, तो उसके बाद उन्होंने 2006 में साइंस कॉलेज पटना से इंटर पास की। इसके बाद ही उन्होंने बैंक से चार लाख का लोन लिया और IIT-ISM धनबाद से माइनिंग इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की।

निरंजन कुमार को साल 2011 में धनबाद के कोल इंडिया लिमिटेड में असिस्टेंट मैनेजर की जॉब मिल गई। जो भी इस नौकरी से वह कमाते थे उससे उन्होंने अपना लोन भरा।

अपना सपना साकार करने में छोड़ी कई कसर

हालाँकि निरंजन कुमार एक बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे और उनके घर की स्थिति कैसी है वह उनको भली-भांति ज्ञात था। उन्हें यह बात अच्छी तरह से पता थी कि उनके माता-पिता के पास इतना पैसा नहीं है कि वह दो बेटों और एक बेटी की शिक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से उठा सकें।

निरंजन कुमार ने नवादा के जवाहर नवोदय विद्यालय में प्रवेश के लिए लिखित परीक्षा दी थी क्योंकि यहां पर उनकी शिक्षा मुफ्त होने वाली थी और उन्होंने परीक्षा पास भी की। निरंजन कुमार के आगे गरीबी पहाड़ की तरह खड़ी थी परंतु उन्होंने किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानी।

निरंजन कुमार ने साल 2017 में पहली यूपीएससी की परीक्षा देकर 728वां रैंक हासिल किया। लेकिन निरंजन इससे संतुष्ट नहीं थे इसलिए उन्होंने फिर दोबारा प्रयास किया। उन्होंने साल 2020 में दूसरे प्रयास के साथ 535वां रैंक हासिल कर अपना सपना साकार कर लिया।

चूँकि निरंजन कुमार शुरू से ही पढ़ाई में काफी अच्छे थे इसलिए परिवार ने हमेशा उनकी शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया। साल 2004 में जब जवाहर नवोदय विद्यालय रेवर नवादा से मैट्रिक की परीक्षा निरंजन कुमार ने पास कर ली, तो उसके बाद उन्होंने 2006 में साइंस कॉलेज पटना से इंटर पास की। इसके बाद ही उन्होंने बैंक से चार लाख का लोन लिया और IIT-ISM धनबाद से माइनिंग इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की।

निरंजन कुमार को साल 2011 में धनबाद के कोल इंडिया लिमिटेड में असिस्टेंट मैनेजर की जॉब मिल गई। जो भी इस नौकरी से वह कमाते थे उससे उन्होंने अपना लोन भरा।

अपना सपना साकार करने में छोड़ी कई कसर

हालाँकि निरंजन कुमार एक बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे और उनके घर की स्थिति कैसी है वह उनको भली-भांति ज्ञात था। उन्हें यह बात अच्छी तरह से पता थी कि उनके माता-पिता के पास इतना पैसा नहीं है कि वह दो बेटों और एक बेटी की शिक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से उठा सकें।

निरंजन कुमार ने नवादा के जवाहर नवोदय विद्यालय में प्रवेश के लिए लिखित परीक्षा दी थी क्योंकि यहां पर उनकी शिक्षा मुफ्त होने वाली थी और उन्होंने परीक्षा पास भी की। निरंजन कुमार के आगे गरीबी पहाड़ की तरह खड़ी थी परंतु उन्होंने किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानी।

निरंजन कुमार ने साल 2017 में पहली यूपीएससी की परीक्षा देकर 728वां रैंक हासिल किया। लेकिन निरंजन इससे संतुष्ट नहीं थे इसलिए उन्होंने फिर दोबारा प्रयास किया। उन्होंने साल 2020 में दूसरे प्रयास के साथ 535वां रैंक हासिल कर अपना सपना साकार कर लिया।

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