Lal Bahadur Shastri Biography: लाल बहादुर शास्त्री: एक उदार नेता और सादगी की मिसाल, जो हमेशा रहे निर्विवाद

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay: लाल बहादुर शास्त्री ने प्रारंभिक शिक्षा मुगलसराय और वाराणसी में प्राप्त की। बचपन से ही उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में रुचि थी।;

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2025-01-10 20:09 IST

Lal Bahadur Shastri Biography Wikipedia in Hindi 

Lal Bahadur Shastri Ka Jivan Parichay: लाल बहादुर शास्त्री भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता और स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। उनकी ईमानदारी, सादगी, और दृढ़ संकल्प ने उन्हें भारत की जनता के दिलों में एक खास स्थान दिया। उनके द्वारा दिया गया नारा ‘जय जवान, जय किसान’ आज भी भारतीय जनता को प्रेरित करता है। यह लेख उनके जीवन, संघर्ष, राजनीतिक यात्रा और उपलब्धियों का विस्तार से वर्णन करता है।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर,1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता, शारदा प्रसाद श्रीवास्तव, एक स्कूल शिक्षक और क्लर्क थे। उनकी माता का नाम रामदुलारी था। दुर्भाग्यवश, जब शास्त्री जी मात्र डेढ़ साल के थे, उनके पिता का देहांत हो गया। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, उनकी माता ने उन्हें शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


बचपन से ही शास्त्री जी में सादगी और ईमानदारी के गुण देखे जाते थे। उनका नाम ‘शास्त्री’ काशी विद्यापीठ, वाराणसी से शास्त्री की डिग्री प्राप्त करने के बाद पड़ा। उन्होंने अपना उपनाम ‘श्रीवास्तव’ छोड़ दिया, क्योंकि वह जातिवाद में विश्वास नहीं करते थे।

शिक्षा और प्रेरणा

लाल बहादुर शास्त्री ने प्रारंभिक शिक्षा मुगलसराय और वाराणसी में प्राप्त की। बचपन से ही उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में रुचि थी। उनके गुरु और स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय और गांधी जी के विचारों ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। शास्त्री जी ने अपनी शिक्षा के दौरान गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया और विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया।


शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने का निर्णय लिया और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

  1. लाल बहादुर शास्त्री ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
  2. असहयोग आंदोलन (1921): उन्होंने इस आंदोलन के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध किया और जेल गए।
  3. नमक सत्याग्रह (1930): गांधी जी के नेतृत्व में शास्त्री जी ने नमक कानून तोड़ा और इस आंदोलन में भाग लिया।
  4. भारत छोड़ो आंदोलन (1942): इस आंदोलन के दौरान उन्हें जेल में भेजा गया। उन्होंने जेल में रहते हुए भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और गांधीवादी विचारों को आत्मसात किया।
  5. शास्त्री जी ने कुल सात बार जेल यात्रा की। उन्होंने जेल में रहकर गीता और गांधी जी की शिक्षाओं का गहन अध्ययन किया, जो उनके जीवन और राजनीति का आधार बना।

राजनीतिक करियर

स्वतंत्रता संग्राम के बाद, लाल बहादुर शास्त्री ने स्वतंत्र भारत में अपनी सेवाएं दीं। उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत उत्तर प्रदेश से हुई।


उन्होंने 1952 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रवेश किया और गृह मंत्री, परिवहन मंत्री और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।

स्वतंत्रता के बाद की भूमिका:

परिवहन मंत्री (1952-1956):

उन्होंने परिवहन के क्षेत्र में सुधार किए।


बसों में महिलाओं के लिए अलग सीटें आरक्षित कीं, जो उस समय एक क्रांतिकारी कदम था।

रेल मंत्री (1956):

रेल की बढ़ती घटनाओं के कारण, उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।


यह घटना उनके नैतिकता और ईमानदारी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

गृह मंत्री:

उन्होंने पुलिस सुधार और कानून-व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए कई कदम उठाए।


प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1964-1966)

पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद, लाल बहादुर शास्त्री को 9 जून, 1964 को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया।


उनके नेतृत्व में देश ने कई चुनौतियों का सामना किया और सफलता प्राप्त की।

महत्वपूर्ण घटनाएं और उपलब्धियां

‘जय जवान, जय किसान’ नारा

1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। उस समय, भारत खाद्य संकट से भी जूझ रहा था।


शास्त्री जी ने देश की जनता को एकजुट करने के लिए ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया। यह नारा भारतीय सेना और किसानों की भूमिका को सम्मानित करता है।

1965 का भारत-पाक युद्ध

पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया। लेकिन भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया।


लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में भारतीय सेना ने लाहौर तक पहुँचने की योजना बनाई। उन्होंने दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ देश का नेतृत्व किया।

हरित क्रांति

भारत खाद्य संकट का सामना कर रहा था। शास्त्री जी ने कृषि सुधारों को बढ़ावा दिया और हरित क्रांति की नींव रखी।


इसके तहत उन्नत बीज, सिंचाई और आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग शुरू हुआ।

सादगी और अनुकरणीय नेतृत्व

शास्त्री जी का जीवन सादगी और जनता के प्रति समर्पण का उदाहरण था। उन्होंने खुद भी कठिनाइयों का सामना किया और दूसरों को प्रेरित किया।

ताशकंद (Tashkand) समझौता

  1. 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद, 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में शांति समझौता हुआ। इसमें शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान शामिल हुए। यह समझौता सोवियत संघ की मध्यस्थता से हुआ था।
  2. देश के प्रधानमंत्री शास्त्री जी के ऊपर लोन भी था, उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से 5,000 रुपये का कार लोन लिया था। उनके आकस्मिक निधन के बाद उनकी पत्नी ललिता जी ने अपनी पेंशन से यह कर्ज चुकाया।
  3. लाल बहादुर शास्त्री को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। यह भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
  4. एक बार प्रधानमंत्री शास्त्री जी के बेटे का प्रमोशन हुआ । उन्हें नौकरी में अनुचित पदोन्नति के बारे में पता चला, तो शास्त्री जी बहुत नाराज हुए। उन्होंने तुरंत पदोन्नति को वापस लेने का आदेश जारी कर दिया।

शास्त्री जी की विरासत

सादगी और ईमानदारी

उनका जीवन सादगी और ईमानदारी का प्रतीक था। उन्होंने कभी भी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया।


प्रेरणादायक नारे

‘जय जवान, जय किसान’ आज भी भारतीय जनता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

हरित क्रांति का आरंभ

उनके प्रयासों से भारत आत्मनिर्भर बनने की राह पर आगे बढ़ा।

कब और कैसे मिली उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि

वर्ष 1925 में काशी विद्यापीठ (वाराणसी) से ग्रेजुएट होने के बाद उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि दी गई थी। बता दें कि ‘शास्त्री’ शब्द एक ‘विद्वान’ या एक ऐसे व्यक्ति को इंगित करता है जिसे शास्त्रों का अच्छा ज्ञान हो। काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा सरनेम ‘श्रीवास्तव’ हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे ‘शास्त्री’ लगा लिया।


इसके पश्चात् शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया। 16 मई, 1928 में शास्त्री जी का विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। उन्होंने अपनी शादी में दहेज लेने से इनकार कर दिया था। लेकिन अपने ससुर के बहुत जोर देने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी का दहेज लिया था।

जब शास्त्री जी ने दिया ‘जय जवान जय किसान’ का ऐतिहासिक नारा

वर्ष 1964 में लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri in hindi) देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। इस दौरान अन्न संकट के कारण देश भुखमरी की स्थिति से गुजर रहा था। वहीं 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था। उसी दौरान अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन ने शास्त्री जी पर दबाव बनाया कि अगर पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई बंद नहीं की गई तो हम गेहूँ के आयात पर प्रतिबंध लगा देंगे। यह वह समय था जब भारत गेहूँ के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था इसलिए शास्त्री जी ने देशवासियों को सेना और जवानों का महत्व बताने के लिए ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। इस संकट के काल में शास्त्री जी ने अपनी तनख्वाह लेना भी बंद कर दिया था और देशवासियों से कहा कि हम हफ़्ते में एक दिन का उपवास करेंगे।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु

लाल बहादुर शास्त्री जब पाकिस्तान के साथ वर्ष 1965 का युद्ध खत्म करने के लिए समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से मिलने गए थे। लेकिन इसके ठीक एक दिन बाद 11 जनवरी, 1966 को अचानक खबर आई कि हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई है। हालांकि उनकी मृत्यु पर वर्तमान समय में भी संदेह बरकरार है।


लाल बहादुर शास्त्री ने अपने छोटे से जीवन में महान उपलब्धियां हासिल कीं। उनका नेतृत्व, सादगी और देशभक्ति आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती है। उनकी ईमानदारी और समर्पण का अनुसरण करना हर देशवासी के लिए एक आदर्श है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सादगी और कर्तव्यनिष्ठा से बड़ी से बड़ी जिम्मेदारियां निभाई जा सकती हैं।

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