Lata Mangeshkar Story: जब लता मंगेशकर की जान लेने के लिए रची गई थी साजिश, 3 महीने रही थीं बिस्तर पर, जानें स्वर कोकिला से जुड़ा ये किस्सा

Lata Mangeshkar Sad Story: भारत की दिग्गज गायिका रहीं लता मंगेशकर के गाने आज भी लूप पर सुने जाते हैं। लेकिन एक ऐसा भी वक्त था जब करियर की ऊंचाईयों पर रहीं स्वर कोकिला की जान लेने की साजिश रची गई थी। आइए जानते हैं इस किस्से को।;

Written By :  Shreya
Update:2025-02-16 08:00 IST

Lata Mangeshkar Story (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Lata Mangeshkar Real Life Story In Hindi: लता मंगेशकर, भारत की स्वर कोकिला, जो आज इस दुनिया में ना होते हुए भी करोड़ों देशवासियों के दिलों पर राज कर रही हैं। उन्होंने दशकों तक इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए, जो आज भी लोग रिपीट पर सुनना पसंद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं एक बार उनकी आवाज छिनने की कोशिश की गई थी। जी हां, लता मंगेशकर को धीमा जहर देकर उन्हें मारने की साजिश की गई थी। आइए जानते हैं स्वर कोकिला के जीवन से जुड़े इस किस्से के बारे में।

कैसे हुई सिंगिंग करियर की शुरुआत

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भारत की दिग्गज गायिका रहीं लता मंगेशकर का जन्म 1929 में इंदौर में हुआ था। मात्र 13 साल में उन्होंने पिता को खो दिया। जिसके बाद नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक और मंगेशकर परिवार के करीबी दोस्त मास्टर विनायक ने उनकी देखभाल की और एक सिंगर और एक्ट्रेस के रूप में करियर शुरू करने में मदद की। जी हां, लता मंगेशकर ने अपने करियर के शुरुआती दौर में एक्टिंग भी की थी, लेकिन उन्हें अभिनय कुछ खास रास नहीं आया।

बात करें सिंगर के तौर पर उनके डेब्यू की तो लता मंगेशकर ने अपना पहला गाना साल 1942 में आई मराठी फिल्म 'किती हसाल' के लिए "नाचू या गाडे, खेलु सारी मणि हौस भारी" गाया था, हालांकि यह गाना मूवी के फाइनल वर्जन में शामिल ही नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने मराठी फिल्म पाहिली मंगला-गौर (1942) में "नताली चैत्राची नवलाई" गाया। साथ ही बतौर एक्टर इसमें एक छोटा सा रोल भी निभाया था। बॉलीवुड में लता ने 1946 में फिल्म आपकी सेवा में से कदम रखा। इस मूवी में उन्होंने Paa Lagoon Kar Jori गाना गाया था।

हालांकि इसके बाद उनका करियर इसका स्मूद नहीं रहा। लेकिन साल 1948 में आई फिल्म मजबूर में उनका गाया हुआ गाना दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा, उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इसके बाद लता ने कई फिल्मों में अपनी आवाज दी और फिल्मफेयर अवॉर्ड समेत कई अवॉर्ड अपने नाम किए। लता एक बड़ी स्टार बन चुकी थीं, लेकिन इस बीच उनकी जिंदगी में एक ऐसा समय आया, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

जब दिया गया था जहर

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लता मंगेशकर से जुड़े इस किस्से को बहुत कम ही लोग जानते हैं कि 1963 में उनको जहर देकर मारने का षडयंत्र रचा गया था, तब वह केवल 33 साल की थीं। एक मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने इस बारे में खुलकर बात की थी। उन्होंने बताया था कि 1963 में मुझे इतनी कमजोरी महसूस होने लगी कि मैं तीन महीने तक बेड से भी बहुत मुश्किल से उठ पाती थी। हालात यह हो गए थे कि मैं अपने पैरों से चल फिर भी नहीं सकती थी। बाद में इस बात की पुष्टि हुई कि उन्हें धीमा जहर दिया जा रहा था। जिसके बाद उनका इलाज फैमिली डॉक्टर आर पी कपूर ने किया था।

धीमे जहर से उनकी तबीयत काफी खराब हो चुकी थी। जिस कारण वह इलाज के दौरान तीन महीने तक बिस्तर पर रही थीं। लता मंगेशकर ने बताया था कि डॉक्टर आर पी कपूर के इलाज और मेरे दृढ़ संकल्प ने उन्हें रिकवर होने में मदद की और तीन महीने तक बेड पर रहने के बाद वह फिर से रिकॉर्ड करने लायक हो गई थीं।

इस शख्स ने दिया था जहर

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अब बात आती है कि आखिर ये साजिश रची किसने? लता ने बताया था कि उन्हें उस शख्स के बारे में पता चल चुका था, जिसने उन्हें जहर दिया था। लेकिन कभी उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया और न चाहते हुए भी चुप्पी साध ली। इसकी वजह थी कि उनके पास उस इंसान के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं थे। हालांकि बताया जाता है कि लता को जहर देने का काम उनका नौकर करता था, क्योंकि जब लता की बहन ऊषा को ये पता चला कि उनको जहर दिया जा रहा है तो उन्होंने नौकर से खाना बनाने के लिए मना कर दिया। जिसके बाद नौकर बगैर किसी को बताए लता जी का घर छोड़कर चला गया और अपने बकाए पैसे भी नहीं लिए।

मजरुह सुल्तानपुरी ने रिकवरी में की थी मदद

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

इस घटना के बाद लेखक मजरुह सुल्तानपुरी कई दिनों तक लता मंगेशकर के घर आते और लता के खाना खाने से पहले वह खुद खाना चखते थे और फिर लता को खिलाते थे। लता ने बताया था कि वह जब तक बीमार रहीं, तब तक मजरुह सुल्तानपुरी रोजाना उनके घर आकर उनके साथ खाना खाते थे और उनका दिल बहलाने के लिए कविताएं सुनाते थे। स्वर कोकिला ने बताया था कि अगर मजरूह साहब न होते तो मैं उस मुश्किल वक्त से उबरने में सक्षम न हो पाती।

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