Muharram Sandesh 2024: इस्लामिक नए साल पर भेजिए ये सन्देश, ऐसे मनाया जाता है ये त्योहार

Muharram Sandesh 2024: मुहर्रम को शिया और सुन्नी समुदाय अलग अलग तरह से मानते हैं। इस दिन आप भी अपने प्रियजनों को मुहर्रम को बताते ये सन्देश भेज सकते हैं।

Newstrack :  Network
Update:2024-07-10 10:48 IST

Muharram Sandesh 2024 (Image Credit-Social Media)

Muharram Sandesh 2024: मुहर्रम का दिन दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय के बीच नए साल के दिन के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि, शिया इस दिन शोक मनाते हैं जबकि सुन्नी पूरे दिन उपवास रखते हैं। इस साल ये 17 जुलाई 2024 को मनाया जायेगा। इस दिन आप भी अपने प्रियजनों तक इसका सन्देश पंहुचा सकते हैं। आइये एक नज़र डालते हैं मुहर्रम संदेशों पर।

मुहर्रम संदेश (Muharram Sandesh 2024)

मुहर्रम के दिन शिया मुस्लिम समुदाय कर्बला युद्ध में अली के बेटे और पैगंबर मुहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली के निधन पर शोक मनाता है। कर्बला इराक का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। हुसैन इब्न अली की 680 ई. में कर्बला में हत्या कर दी गई। अंत तक वह यजीद प्रथम की सेना से लड़ते रहे और अंततः युद्ध में मारे गए। मुहर्रम का 10वां दिन, आशूरा का दिन, हुसैन के बहादुर बलिदान को याद करने का एक अवसर है। आशूरा का दिन मुसलमानों के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बताया जाता है कि इस दिन मूसा और उनके अनुयायियों ने मिस्र के फिरौन पर विजय प्राप्त की थी। अगर आप भी अपने जानने वालों को इस दिन का सन्देश भेजना चाहते हैं तो यहाँ दिए इन संदेशों पर एक नज़र डालें।

क्या जलवा कर्बला में दिखाया हुसैन ने,

सजदे में जा कर सर कटाया हुसैन ने,

नेजे पे सिर था और जुबां पर अय्यातें,

कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने।

कर्बला की शाहदत इस्लाम बन गई

खून तो बहा था लेकिन हौशालो की उडान बन गई।

क्‍या हक अदा करेगा ज़माना हुसैन का

अब तक ज़मीन पर कर्ज़ है सजदा हुसैन का

झोली फैलाकर मांग लो मुमीनो

हर दुआ कबूल करेगा दिल हुसैन का।

सिर गैर के आगे न झुकाने वाला

और नेजे पर भी कुरान सुनाने वाला

इस्‍लाम से क्‍या पूछते हो कौन हुसैन?

हुसैन है इस्‍लाम को बनाने वाला।

नज़र गम है नज़रों को बड़ी तकलीफ होती है

बगैर उनके नज़रों को बड़ी तकलीफ होती है

नबी कहते थे अकसर के अकसर ज़‍िक्र-ए-हैदर से

मेरे कुछ जान निसारों को बड़ी तकलीफ होती है।

कत्‍ल-ए-हुसैन असल में मार्ग-ए-यजीद है

इस्‍लाम ज़‍िंदा होता है हर करबला के बाद।

सजदा से करबला को बंदगी मिल गई

सबर से उम्‍मत को ज़‍िंदगी मिल गई

एक चमन फातिमा का गुज़रा

मगर सारे इस्‍लाम को ज़‍िंदगी मिल गई।

दिल से निकली दुआ है हमारी,

मिले आपको दुनिया में खुशियां सारी,

गम ना दे आपको खुदा कभी,

चाहे तो एक खुशी कम कर दे हमारी।

जन्‍नत की आरज़ू में कहां जा रहे हैं लोग

जन्‍नत तो करबला में खरीदी हुसैन ने

दुनिया-ओ-आखरात में जो रहना हो चैन से

जीना अली से सीखो मरना हुसैन से।

कर्बला को कर्बला के शहंशाह पर नाज है,

उस नवासे पर मुहम्मद को नाज है,

यूँ तो लाखों सिर झुके सजदे में लेकिन

हुसैन ने वो सजदा किया जिस पर खुदा को नाज है।

पानी का तलब हो तो एक काम किया कर,

कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर,

दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत,

जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर।

फिर आज हक़ के लिए जान फिदा करे कोई,

वफ़ा भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई,

नमाज़ 1400 सालों से इंतजार में है,

हुसैन की तरह मुझे अदा करे कोई।

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