Subhash Chandra Bose Ki Kahani: गुमनामी बाबा, जिन्होंने मचा दी थी हलचल, जिन्हें कभी कहा गया नेता जी तो कभी कहा गया रहस्यमयी बाबा

Subhash Chandra Bose Ki Maut Ka Rahasya: नेताजी के शव को कभी भी भारत नहीं लाया गया। उनकी राख जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी गई। इससे संदेह बढ़ा कि क्या वाकई उनकी मृत्यु हुई थी।;

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2025-01-23 12:41 IST

Neta Ji Subhash Chandra Bose Ki Kahani 

Subhash Chandra Bose Ki Kahani: सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें ‘नेताजी’ के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनके योगदान और साहसिक नेतृत्व ने भारतीयों के दिलों में एक अमिट छाप छोड़ी। हालांकि, उनकी मृत्यु को लेकर दशकों से रहस्य बना हुआ है। एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की आधिकारिक घोषणा के बावजूद, उनके समर्थकों और इतिहासकारों का एक वर्ग इसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं करता।

नेताजी की विमान दुर्घटना और विवाद

1940 के बाद, जब नेताजी कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हाउस अरेस्ट से बचकर भाग गए, तब से उनके ठिकाने को लेकर अफवाहें फैलनी शुरू हो गईं। 1941 में जब वह जर्मनी में दिखाई दिए, तो उनकी गतिविधियों को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं। विमान दुर्घटना के बाद भी उनके जीवित होने की अफवाहें लगातार सामने आती रहीं।


18 अगस्त, 1945 को ताइवान के फॉर्मोसा (अब ताइपेई) में एक जापानी विमान दुर्घटना में नेताजी के निधन की खबर आई। जापानी अधिकारियों ने दावा किया कि विमान के इंजन में आग लगने के कारण यह हादसा हुआ। नेताजी के साथ यात्रा कर रहे कर्नल हबीबुर रहमान ने उनकी मृत्यु की पुष्टि की और कहा कि वह बुरी तरह जल गए थे। बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।

इस घटना पर कई सवाल उठाए गए

  1. मृत शरीर का अभाव: नेताजी के शव को कभी भी भारत नहीं लाया गया। उनकी राख जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी गई। इससे संदेह बढ़ा कि क्या वाकई उनकी मृत्यु हुई थी।
  2. अधिकृत जांच: भारत सरकार ने तीन बार इस मामले की जांच करवाई – शाहनवाज समिति (1956), खोसला आयोग (1970), और मुखर्जी आयोग (1999)। हालांकि, इन जांचों से भी निष्कर्ष स्पष्ट नहीं हो सका।
  3. कथित साजिश: कई लोगों का मानना है कि नेताजी ने अपनी मृत्यु का नाटक किया ताकि वह गुप्त रूप से भारत की स्वतंत्रता के लिए काम कर सकें।
  4. 1950 के दशक में कुछ कहानियां सामने आईं कि बोस तपस्वी बन गए थे। इतिहासकार लियोनार्ड ए. गॉर्डन ने 1960 के दशक में इसे मात्र एक 'मिथक' बताया। हालांकि, बोस के कुछ सहयोगियों ने 'सुभाषवादी जनता' संगठन बनाया, जिसने यह कथा फैलायी कि बोस उत्तर बंगाल के शौलमारी स्थित एक अभयारण्य में चले गए थे।
  5. कुछ रिपोर्टें स्पष्ट रूप से बोस की मृत्यु को स्थापित करती हैं। कहा गया कि मित्सुबिशी के-21 बमवर्षक विमान, जिस पर बोस सवार थे, ताइपे में उड़ान भरने के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
  6. भारत सरकार ने अब तक बोस की मृत्यु या लापता होने के मामले में तीन जांचें कराई हैं। पहले दो जांचों में यह निष्कर्ष निकला कि 18 अगस्त, 1945 को बोस का विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। वह उसी दिन ताइहोकू के एक सैन्य अस्पताल में मृत पाए गए। इसके बाद उनकी राख को टोक्यो के रेंकोजी मंदिर भेजा गया।

फिगेस रिपोर्ट (1946):

विमान दुर्घटना की अफवाहों को लेकर लॉर्ड माउंटबेटन के नेतृत्व में दक्षिण-पूर्व एशिया के सुप्रीम एलाइड कमांड ने कर्नल जॉन फिगेस को बोस की मौत की जांच करने का आदेश दिया। 5 जुलाई, 1946 को प्रस्तुत फिगेस की रिपोर्ट गोपनीय थी। हालांकि, 1980 के दशक में लियोनार्ड ए. गॉर्डन ने फिगेस से साक्षात्कार लिया, जिसमें फिगेस ने रिपोर्ट के लिखे जाने की पुष्टि की।


1997 में ब्रिटिश सरकार ने अधिकांश आईपीआई (इंडियन पॉलिटिकल इंटेलिजेंस) फाइलों को सार्वजनिक किया। लेकिन फिगेस की रिपोर्ट उनमें नहीं थी। इस रिपोर्ट और गॉर्डन की जांच ने पुष्टि की कि 18 अगस्त, 1945 को ताइहोकू में विमान दुर्घटना के बाद बोस की मृत्यु हो गई थी और उनका अंतिम संस्कार किया गया था।

शाहनवाज समिति (1956):

1956 में भारत सरकार ने शाहनवाज खान की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसका उद्देश्य बोस की मृत्यु की अफवाहों पर विराम लगाना था। इस समिति के अन्य सदस्य थे-एस एन मैत्रा और नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस। समिति ने भारत, जापान, थाईलैंड और वियतनाम में 67 गवाहों के बयान लिए, जिनमें वे लोग भी शामिल थे जो विमान दुर्घटना में बच गए थे।


समिति ने अधिकांश गवाहों की गवाही को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त, 1945 को ताइहोकू में विमान दुर्घटना में हुई थी। हालांकि, सुरेश चंद्र बोस ने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया और असहमति जताई, उनका मानना था कि महत्वपूर्ण साक्ष्यों को जानबूझकर दबाया गया और इस समिति को नेहरू के निर्देशों के तहत बोस की मृत्यु का अनुमान लगाने के लिए निर्देशित किया गया था।


गॉर्डन के अनुसार, समिति की 181 पन्नों की रिपोर्ट में यह सिद्धांत था कि अगर गवाहों की गवाही में कोई विसंगति होती, तो वह पूरी गवाही को खारिज कर दिया जाता। इसके आधार पर, रिपोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि कोई दुर्घटना नहीं हुई और बोस जीवित हैं।

गुमनामी बाबा का रहस्य

1950 के दशक में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में एक साधु, जिन्हें “gumnami baba” या “Bhagwanji” के नाम से जाना जाता था, अचानक चर्चा में आए।


स्थानीय लोग मानते थे कि वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे।

गुमनामी बाबा के बारे में प्रमुख तथ्य

  1. रहस्यमयी जीवन: गुमनामी बाबा एकांतवास में रहते थे और केवल चुनिंदा लोगों से मिलते थे। उनके पास नेताजी से जुड़ी कई वस्तुएं, जैसे जर्मन टाइपराइटर, नेताजी के परिवार की तस्वीरें और किताबें पाई गईं।
  2. नेताजी के समर्थकों का दावा: नेताजी के कुछ करीबी समर्थक, जैसे लेखिका अनुज धर और नेता लालजीत सिंह, ने दावा किया कि गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे।
  3. डीएनए जांच: 1985 में गुमनामी बाबा के निधन के बाद उनके सामान की जांच हुई। 2003 में उनकी डीएनए जांच की गई, लेकिन यह निष्कर्ष तक नहीं पहुंची।
  4. बाबा की वसीयत: बाबा ने अपने समर्थकों को निर्देश दिया था कि उनकी मृत्यु के बाद उनके सामान को जलाकर नष्ट कर दिया जाए। हालांकि, कुछ सामान बच गया, जिसे बाद में नेताजी के परिवार के सदस्यों ने देखा।

विवाद और कहानियां

संदेहास्पद समानताएं: बाबा के जीवन के कई पहलू नेताजी से मेल खाते थे। उनकी आवाज, हस्ताक्षर और व्यक्तित्व नेताजी के समान बताए गए।गुमनामी बाबा का गोल चश्मा, कद, रंग और अन्य शारीरिक विशेषताएं नेताजी से मेल खाती थीं।उनके पास नेताजी से संबंधित दस्तावेज़, समाचार पत्र, और अन्य सामग्री पाई गई, जो इस सिद्धांत को बल देती हैं कि वे नेताजी हो सकते हैं। गुमनामी बाबा के बक्से से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फैमिली फोटोज मिलीं। इनमें सुभाष चंद्र बोस के परिवार के 22 लोग नजर आ रहे हैं, जिनमें उनके माता-पिता, भाई-बहन और पोते-पोती शामिल हैं।बक्से में तीन घड़ियां (रोलेक्स, ओमेगा और क्रोनोमीटर) और तीन सिगार केश भी मिले। आज़ाद हिंद फौज के कमांडर पबित्र मोहन राय और अन्य नेताओं के पत्र और टेलीग्राम भी मिले, जिनमें गुमनामी बाबा को स्वामी जी और भगवान जी के रूप में संबोधित किया गया।


खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट: भारतीय खुफिया एजेंसियों ने भी गुमनामी बाबा की गतिविधियों पर निगरानी रखी थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, वह नेताजी के जीवन से जुड़े कई मुद्दों की जानकारी रखते थे।

पत्राचार: गुमनामी बाबा ने अपने समर्थकों और कुछ राजनीतिक नेताओं से पत्राचार किया। इनमें से कई पत्र नेताजी के विचारों और विचारधारा के समान थे।

नेताजी की मृत्यु के बाद की कहानियां

  1. रूस में गुप्त जीवन का दावा- कुछ सिद्धांतकारों का मानना है कि नेताजी 1945 में विमान दुर्घटना में नहीं मरे थे, बल्कि रूस चले गए थे। यह तर्क दिया गया कि उन्होंने स्टालिन से भारत की स्वतंत्रता के लिए मदद मांगी। हालांकि, इस सिद्धांत को कभी भी पर्याप्त सबूत नहीं मिला।
  2. चीन में निर्वासन-कुछ लोग मानते हैं कि नेताजी चीन में निर्वासन में थे और वहां से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गुप्त रूप से योगदान दे रहे थे।
  3. नेताजी की वापसी की अफवाहें- नेताजी की मृत्यु के बाद भी उनकी वापसी की अफवाहें फैलती रहीं। कई बार कहा गया कि नेताजी एक दिन अचानक प्रकट होकर भारत का नेतृत्व करेंगे।

सरकार की प्रतिक्रिया और जनता का विश्वास

नेताजी की मृत्यु और गुमनामी बाबा के मामले में सरकार की भूमिका हमेशा विवादित रही। हालांकि तीन आयोग गठित किए गए, जनता को सरकार की रिपोर्ट पर विश्वास नहीं हुआ। मुखर्जी आयोग ने 2005 में कहा कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर सका कि वह जीवित थे या नहीं।


नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन और उनकी मृत्यु भारतीय इतिहास के सबसे बड़े रहस्यों में से एक है। गुमनामी बाबा के मामले ने इस रहस्य को और गहरा कर दिया। हालांकि, नेताजी के योगदान और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें देश के प्रति समर्पण और साहस का पाठ सिखाती है।भविष्य में शायद वैज्ञानिक और ऐतिहासिक साक्ष्य इस रहस्य पर से पर्दा उठा सकें। लेकिन तब तक यह रहस्य भारतीय जनमानस में जीवित रहेगा।

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