Osho Ki Story: ओशो के जीवन और मौत के अनसुलझे रहस्य, रजनीश कैसे बने विवादित गुरु?
Osho Ki Life Story in Hindi: ओशो रजनीश एक क्रांतिकारी आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने ध्यान, प्रेम, स्वतंत्रता और आनंद को जीवन का मूल आधार बताया।;
Osho Ki Life Story in Hindi (Photo - Social Media)
Osho Biography in Hindi: ओशो रजनीश -Osho Rajneesh (भगवान श्री रजनीश) 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली, विवादास्पद और रहस्यमयी आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। उन्होंने पूरी दुनिया में अपने क्रांतिकारी विचारों, ध्यान की अनूठी विधियों और पारंपरिक धार्मिक विश्वासों को चुनौती देने वाले दृष्टिकोण से प्रसिद्धि प्राप्त की। उनके अनुयायी उन्हें जागरूकता, स्वतंत्रता, प्रेम और आनंद का दूत मानते हैं, जबकि उनके आलोचक उन्हें एक विद्रोही विचारक और पश्चिमी मूल्यों को अपनाने वाला गुरु कहते हैं। ओशो ने प्रेम, ध्यान, भौतिकता और अध्यात्म का अनूठा संगम प्रस्तुत किया, जिसने लाखों लोगों को प्रभावित किया। यह लेख ओशो रजनीश के जीवन गाथा का विस्तार से वर्णन करता है।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा (1931-1953) - Osho Early Life and Education
ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के रायसेन जिले की बरेली तहसील के कुचवाड़ा गाँव (Kuchwada village, Bareli tehsil, Raisen district, Madhya Pradesh) में हुआ था। उनका असली नाम रजनीश चंद्र मोहन जैन(Rajneesh Chandramohan Jain) था। उनके पिता बाबूलाल जैन और माता सरस्वती जैन एक व्यापारी परिवार से थे। बचपन से ही वे अत्यंत जिज्ञासु, विद्रोही और स्वतंत्र विचारों वाले थे।
उनका प्रारंभिक जीवन उनके ननिहाल में बीता। उनका बचपन आम बच्चों की तरह नहीं था; वे मृत्यु, ईश्वर, आत्मा और ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों पर सोचते रहते थे। वे अपने परिवार से अलग रहकर जंगलों में घूमते और ध्यान लगाया करते थे।
मृत्यु का अनुभव – Osho Experience of death
सिर्फ 7 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपने नाना की मृत्यु को बहुत करीब से देखा, जिससे उन्हें मृत्यु का गहरा अनुभव हुआ। उन्होंने महसूस किया कि मृत्यु के बाद कुछ भी बचता नहीं है, जिससे उनका झुकाव आध्यात्म की ओर बढ़ा।
शिक्षा और युवा अवस्था - Osho Education and Youth
ओशो ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाडरवारा में प्राप्त की और कॉलेज की पढ़ाई जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज से की। इस दौरान वे तर्क-वितर्क में बेहद प्रखर थे और अपने शिक्षकों से कठिन प्रश्न पूछते रहते थे। उनका यह विद्रोही स्वभाव कई बार उन्हें मुसीबत में डाल देता था।
1951 में, उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र (Philosophy) में स्नातक की डिग्री ली और 1953 में उन्होंने एम.ए. किया। इस दौरान वे गहरे ध्यान में डूबे रहते और गूढ़ प्रश्नों का उत्तर खोजते रहते।
21 वर्ष की उम्र में समाधि का अनुभव - Osho Experience of Samadhi at the Age of 21
21 मार्च 1953 को, ओशो को अपने जीवन का सबसे बड़ा आध्यात्मिक अनुभव हुआ। जब वे जबलपुर के भंवरताल गार्डन में ध्यान कर रहे थे, तब उन्होंने अचानक एक गहरे जागरण (Enlightenment) का अनुभव किया। उन्होंने खुद को संपूर्ण अस्तित्व से जुड़ा हुआ पाया और इस घटना के बाद उनका पूरा जीवन बदल गया।
प्राध्यापक से आध्यात्मिक गुरु तक (1953-1966) - Osho From Professor to Spiritual Guru
1957 में, ओशो ने रायपुर संस्कृत महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में काम करना शुरू किया। लेकिन उनके विद्रोही विचारों के कारण कॉलेज प्रशासन के साथ विवाद हो गया और उन्हें वहां से निकाल दिया गया।
बाद में, वे जबलपुर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बन गए। इस दौरान उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों में घूम-घूमकर प्रवचन देने शुरू किए। वे धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक रूढ़ियों को खुलकर चुनौती देते थे, जिससे वे विवादास्पद बनते गए।
ध्यान शिविरों की शुरुआत - Osho Beginning of Meditation Camps
1960 के दशक में, उन्होंने “नई मानवता” और “ध्यान क्रांति” आंदोलन शुरू किया। वे लोगों को ध्यान की नई विधियाँ सिखाने लगे और उनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई।
1966 में, उन्होंने प्राध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूर्ण रूप से आध्यात्मिक गुरु बन गए।
भगवान श्री रजनीश का उदय (1966-1981) - The Rise of Bhagwan Shri Rajneesh
1969 में, उन्होंने मुंबई में अपना पहला आश्रम स्थापित किया और अपने नाम के आगे “भगवान” जोड़ लिया। उन्होंने “संन्यास आंदोलन” शुरू किया, जिसमें वे अनुयायियों को ध्यान, प्रेम और स्वतंत्रता का संदेश देते थे।
1974 में, उन्होंने पुणे में एक बड़ा आश्रम स्थापित किया। यहाँ हजारों अनुयायी उनसे ध्यान और आत्म-जागरण की शिक्षा लेने के लिए आते थे।
ध्यान की अनूठी विधियाँ
ओशो ने कई नई ध्यान विधियाँ विकसित कीं, जिनमें प्रमुख थीं:
• डायनमिक मेडिटेशन – तेज श्वास, भावनाओं की अभिव्यक्ति और नृत्य के माध्यम से ध्यान।
• कुंडलिनी मेडिटेशन – शरीर में ऊर्जा प्रवाह को जागृत करने की विधि।
• नादब्रह्म ध्यान – ध्वनि और संगीत के माध्यम से चेतना का विस्तार ।
अमेरिका और रजनीशपुरम (1981-1985) - Osho America and Rajneeshpuram
1981 में, ओशो अमेरिका चले गए और ओरेगॉन में रजनीशपुरम नामक कम्यून की स्थापना की, जहाँ हजारों अनुयायी उनके साथ रहने लगे। हालांकि, उनके अनुयायियों पर कई अवैध गतिविधियों के आरोप लगे, जिससे अमेरिकी सरकार के साथ टकराव बढ़ गया। बाद में, अमेरिका सरकार ने उन्हें वीज़ा नियमों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। 1985 में, उन्हें अमेरिका से निष्कासित कर दिया गया, जिसके बाद वे 21 देशों में भटकते रहे।
भारत वापसी और अंतिम वर्ष (1986-1990) - Osho Return to India and Final Years
1986 में, ओशो पुणे वापस लौट आए और पुनः ध्यान शिविरों की शुरुआत की। इसके बाद, 1989 में, उन्होंने अपना नाम बदलकर "ओशो" रख लिया। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने ध्यान और आध्यात्मिक शिक्षाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। अंततः 19 जनवरी 1990 को, पुणे में उनका निधन हो गया।
ओशो रजनीश और विवाद - Osho Rajneesh and Controversies
ओशो का विवादों से हमेशा गहरा नाता रहा है। ओशो रजनीश एक क्रांतिकारी आध्यात्मिक गुरु थे, लेकिन उनके विचार, जीवनशैली और गतिविधियाँ अक्सर विवादों में घिरी रहीं। यहाँ उनके जीवन से जुड़े कुछ प्रमुख विवाद दिए गए हैं:
1. सेक्स और अध्यात्म पर उनके विचार
ओशो ने सेक्स को एक प्राकृतिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया बताया, जो पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं के विपरीत था। उनके खुले विचारों और "सेक्स से समाधि तक" जैसी शिक्षाओं ने उन्हें कई रूढ़िवादी समूहों और धर्मगुरुओं के निशाने पर ला दिया।
2. अमेरिका में विवाद और निर्वासन
1981 में, ओशो अमेरिका चले गए और ओरेगॉन में एक विशाल आश्रम (राजनीशपुरम) स्थापित किया। वहाँ उनके अनुयायियों की संख्या तेजी से बढ़ी, जिससे स्थानीय सरकार और निवासियों के साथ टकराव हुआ। उनकी commune पर अवैध गतिविधियों और राजनीतिक षड्यंत्र (जैसे बायोटेरर अटैक, चुनावी धांधली) के आरोप लगे, जिसके कारण 1985 में उन्हें गिरफ्तार कर भारत लौटना पड़ा।
3. विषाक्त हमले (बायोटेररिज्म) का आरोप
ओशो के अनुयायियों पर आरोप था कि उन्होंने सल्मोनेला बैक्टीरिया के ज़रिए ओरेगॉन के रेस्तरां में ज़हर मिलाकर 750 से अधिक लोगों को बीमार कर दिया। यह अमेरिका के इतिहास में पहला बायोटेरर हमला माना जाता है। हालाँकि, इस साजिश में ओशो की सीधी संलिप्तता साबित नहीं हुई, लेकिन उनके प्रमुख अनुयायी शीला (Ma Anand Sheela) सहित कई लोगों को दोषी ठहराया गया।
4. अनुयायियों के बीच सत्ता संघर्ष
ओशो के आश्रम में उनके प्रमुख शिष्यों के बीच आपसी सत्ता संघर्ष देखने को मिला। विशेष रूप से मा आनंद शीला और अन्य सदस्यों के बीच टकराव बढ़ता गया। शीला पर कई गैरकानूनी गतिविधियों और हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगा, जिससे ओशो समुदाय और भी विवादों में घिर गया।
5. 93 रॉल्स-रॉयस कारों का विवाद
ओशो की भौतिकवाद को नकारने वाली शिक्षाओं के बावजूद उनके पास 93 से अधिक रॉल्स-रॉयस कारें थीं, जिससे उन पर पाखंड (hypocrisy) का आरोप लगा। आलोचकों ने कहा कि वे खुद भोगवादी जीवन जी रहे थे, जबकि अनुयायियों को आध्यात्मिकता और त्याग का पाठ पढ़ा रहे थे।
6. भारत में भी विवादों से घिरे
भारत लौटने के बाद, ओशो पुणे के अपने आश्रम में रहे, लेकिन उनके विचारों और अनुयायियों की गतिविधियों को लेकर विवाद जारी रहे। भारतीय सरकार ने भी उनके आश्रम पर नज़र रखी, और कुछ लोगों ने उन्हें "धर्म विरोधी" कहा।
7. रहस्यमयी मृत्यु
19 जनवरी 1990 को ओशो की मृत्यु हुई। उनके अनुयायियों का कहना था कि वे बीमार थे, लेकिन कई लोगों ने उनकी मृत्यु को साजिश और धीमा जहर दिए जाने से जोड़कर देखा। हालाँकि, इस पर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला।