Osho Video Viral: जानिए ओशो ने शिक्षा को शव परीक्षा सामान क्यों बताया
Osho Video Viral:ओशो के विचार आप भी लोगों को काफी प्रभावित करते हैं वहीँ उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। आइये एक नज़र डालते हैं।
Osho Video Viral: ओशो अपनी बातों से लोगों को पल भर में ही प्रभावित कर जाते थे आज भी उनकी बातों को लोग सुनते और पढ़ते आ रहे हैं। उन्होंने लोगों को जीवन जीने का अलग नज़रिया दिया। आइये जानते हैं ओशो के विचार और उन्होंने क्या बताया कि आपकी कही बातें क्यों लोगों को समझ नहीं आतीं हैं।
ओशो के विचार (Osho Thoughts)
ओशो कहते हैं कि आपकी बातें इतनी सीधी साफ़ और पुण्यपूर्ण हैं कि आश्चर्य है कि संसार ले लोगों को समझ में नहीं आती। विशेषकर शिक्षा जगत के महारथियों और राजनैतिज्ञों को,पहली बात शिक्षा सारा प्रयोजन एक ही है और वह है कि तुम्हे अतीत से टूटने न दिया जाये। शिक्षा का सारा नस्त सार एक है कि तुम्हे परंपरा से मुक्त न होने दिया जाये। शिक्षा परंपरा की सेवा में नियोजित है और मजघरों वह परंपरा नहीं। मजघरों वह अतीत नहीं, वर्तमान है। उन्होंने आगे कहा, शिक्षा का वर्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं है।.शिक्षा पीछे की तरफ देखती है। शिक्षा की आंखें चेथी पर लगी है। वो पीछे की तरफ देखती है।
ओशो आगे कहते हैं जो पहले हो गया है, उसको ही पढ़ाया जाता है उसको ही समझाया जाता है। जो आज हो रहा है उससे शिक्षा का कभी कोई सम्बन्ध नहीं होता है। जब ये भी अतीत हो जायेगा तब शिक्षा इसको भी पढ़ाएगी। ध्यान रखना कभी तुम्हारे शिक्षा शास्त्री मुझे पढ़ाएंगे, लेकिन वो तब पढ़ाएंगे जब में जा चुका होंगा। जब अतीत हो गया। जब मैं काम का न रहा। शिक्षा शास्त्री तभी पकड़ता है किसी चीज़ को जब वो रख हो जाती। जब उसमे से अंगारा खो जाता है। कबीर जब ज़िंदा थे तो शिक्षाशास्त्री कभी उनसे कोई सम्बन्ध नहीं जोड़ सका। अब कबीर पर कितनी पीएचडी लिखी जाती है, तुम देखते हो। जितने शोधग्रन्थ कबीर पर लिखे गए उतने किसी पर नहीं लिखे गए। गंवार कबीर पर इतने शोध ग्रन्थ, अगर कबीर ने किसी नौकरी की आकांशा की होती किसी विश्वविद्यालय में तो एक चपरासी की भी जगह न मिलती। आचार्य के पद की तो बात ही अलग है। कबीर को ये विद्यालय विद्यार्थी के रूप में भी प्रवेश देने को राज़ी हो तो ये भी अचम्भे वाली बात है। बिना पढ़े लिखे कबीर को कौन विश्वविद्यालय में प्रवेश देता?और आज तुम्हारे तथाकथित पंडित व आचार्यगण और शोधकर्ता एपीआई ज़िन्दगी कबीर में गंवाते हैं। कि कबीर का क्या अर्थ है, कबीर का क्या मतलब है, कबीर की उलटवासियों को सुलट कर रहे हैं। समझाने की कोशिश में लगे हुए हैं। कबीर जी अपनी कब्र में खूब हंसते होंगे कि ये भी खूब मजा हुआ।
ओशो कहते हैं, जीसस को जिन लोगों ने सूली पर लटकाया वो पंडित थे, रबाई। पढ़े लिखे लोग सुसंस्कृत। और वही लोग जीसस पर शोध करते हैं 2000 साल हो गए। उसी काम में लगे हैं वही लोग ,उसी तरह के लोग , कारण समझो शिक्षा का सम्बन्ध अतीत से है। शिक्षा मरे की शिक्षा है जीवंत की नहीं। शिक्षा केवल मरे को ही अंगीकार करती है। शिक्षा पोस्टमार्टम, शव परीक्षा है।
वो आगे कहते हैं, तुम अगर पूछते हो न कि आपका शरीर इतना सुन्दर है तो डॉक्टर शव परीक्षा क्यों नहीं करते इतना सुन्दर प्यारा शरीर और उन डॉक्टरों को देखें वो मुर्दों को चीर फाड़ रहे हैं। ऐसे सुन्दर आदमी के रहते हुए चीर फाड़ क्यों नहीं करते उसकी शव परीक्षा क्यों नहीं करते? जैसे ये प्रश्न गलत होगा कि शव परीक्षा होती ही मुर्दे की है जीवित की नहीं होती वैसे ही शिक्षा मुर्दों की है, शिक्षा एक शव परीक्षा है। जब कोई चीज़ मर जाती है इतिहास का हिस्सा हो जाती है, जब व्यक्ति तो जा चुका होता है सिर्फ उसके चरण चिन्ह रह जाते हैं।