Republic Day Hindi Poem 2025: गणतंत्र दिवस के लिए तैयार करें देशभक्ति से भरी ये कविता, ताली बजाते रह जाएंगे लोग

Republic Day Poem: इस साल देश अपना 76वां गणतंत्र दिवस मनाएगा। इस मौके पर स्कूल-कॉलेज में तरह-तरह के कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं। जिसमें देशभक्ति से भरी इन कविताओं को सुना सकते हैं।;

Written By :  Shreya
Update:2025-01-07 13:45 IST

Republic Day 2025 (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Republic Day Ki Kavita: 26 जनवरी का दिन भारत के लिए बेहद खास है, क्योंकि इसी दिन 1950 में भारत का गणतंत्र और संविधान लागू हुआ था। इसलिए हर साल पूरे देशभर में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस (Gantantra Diwas) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को जाति और संप्रदाय के लोग बड़े सम्मान, जोश और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस राष्ट्रीय पर्व (National Festival of India) के मौके पर स्कूल-कॉलेज, ऑफिस समेत हर जगह तरह-तरह के कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित किए जाते हैं और भारत की ताकत और देश के लिए शहीद हुए जवानों को याद करते हैं।

इस साल देश अपना 76वां गणतंत्र दिवस (Republic Day 2025) मनाएगा और अगर इस मौके पर आप भी प्रतियोगिता के तहत कविता (Republic Day Poem in Hindi 2025) सुनाना चाहते हैं तो यहां हम आपके लिए गणतंत्र दिवस की कुछ बेहतरीन कविताएं (Gantantra Diwas Ki Kavita) लेकर आए हैं, जिन्हें यादकर आप पूरे जोश के साथ लोगों के सामने पेश कर सकते हैं। यहां पढ़ें इन कविताओं को।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गणतंत्र दिवस की कविता (Republic Day Hindi Poem 2025) 

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते- अटलबिहारी वाजपेयी

सत्य का संघर्ष सत्ता से

न्याय लड़ता निरंकुशता से

अंधेरे ने दी चुनौती है

किरण अंतिम अस्त होती है

दीप निष्ठा का लिये निष्कंप

वज्र टूटे या उठे भूकंप

यह बराबर का नहीं है युद्ध

हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध

हर तरह के शस्त्र से है सज्ज

और पशुबल हो उठा निर्लज्ज

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण

अंगद ने बढ़ाया चरण

प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार

समर्पण की माँग अस्वीकार

दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।- हरिवंश राय बच्चन

इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,

कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,

इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,

और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!

किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,

जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,

जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,

और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,

घृणा मिटाने को दुनिया से लिखा लहू से जिसने अपने,

“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,

कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,

ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,

किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,

बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,

बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियां औ’ हथकड़ियां, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,

किंतु यहां पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पांव बढ़ाओ,

आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,

उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।

हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,

उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं…

पुते गालों से ऊपर

नकली भवों के नीचे

छाया प्यार के छलावे बिछाती

मुकुर से उठाई हुई

मुस्कान मुस्कुराती

ये आंखें

नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं…

तनाव से झुर्रियां पड़ी कोरों की दरार से

शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियां

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं…

वन डालियों के बीच से

चौंकी अनपहचानी

कभी झांकती हैं

वे आंखें,

मेरे देश की आंखें,

खेतों के पार

मेड़ की लीक धारे

क्षिति-रेखा को खोजती

सूनी कभी ताकती हैं

वे आंखें...

उसने झुकी कमर सीधी की

माधे से पसीना पोछा

डलिया हाथ से छोड़ी

और उड़ी धूल के बादल के

बीच में से झलमलाते

जाड़ों की अमावस में से

मैले चांद-चेहरे सुकचाते

में टंकी थकी पलकें उठाईं

और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं

मेरे देश की आंखें...

- अज्ञेय

यह मेरा आजाद तिरंगा,

लहर लहर लहराए रे

भारत माँ मुस्काए तिरंगा,

लहर लहर लहराए रे

इस झंडे का बापू जी ने,

कैसा मान बढ़ाया है

लाल किले पर नेहरू जी,

ने यह झंडा फहराया


माह जनवरी छब्बीस को

हम, सब गणतंत्र मनाते

और तिरंगे को फहराकर

गीत खुशी के गाते।

आज नई सज-धज से

गणतंत्र दिवस फिर आया है।

नव परिधान बसंती रंग का

माता ने पहनाया है।

भीड़ बढ़ी स्वागत करने को

बादल झड़ी लगाते हैं।

रंग-बिरंगे फूलों को

ऋतुराज खड़े मुस्काते हैं।

धरती मां धानी साड़ी

पहन श्रृंगार सजाया है।

गणतंत्र दिवस फिर आया है।

भारत की इस अखंडता को

तिलभर आंच न आने पाए।

हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई

मिलजुल इसकी शान बढ़ाएं।

युवा वर्ग सक्षम हाथों से

आगे इसको सदा बढ़ाएं।

इसकी रक्षा में वीरों ने

अपना रक्त बहाया है।

गणतंत्र दिवस फिर आया है।

मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,

तू है अद्भुत और सुंदर।

तेरी धरती, तेरा आकाश,

तेरी नदियां, तेरे पर्वत,

सब ही अविस्मरणीय हैं।

तेरे लोग, तेरे संस्कृति,

तेरी विरासत, तेरा इतिहास,

सब ही गौरवशाली हैं।

तू है सत्य, तू है धर्म,

तू है शांति, तू है अहिंसा।

तू है ज्ञान, तू है दर्शन,

तू है प्रकाश, तू है जीवन।

मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,

तू है मेरे हृदय में बसंता।

मैं तेरा सदैव ऋणी रहूंगा।

- अज्ञेय

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