Sanjay Gandhi Biography: समय की पाबंदी थी संजय गांधी की पहचान, आटोमोबाइल उद्योग को लगाये पंख
Sanjay Gandhi Biography: संजय गाँधी, भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के बेटे थे उनके जन्मदिन के अवसर पर आइये जानते हैं उनके बारे में विस्तार से।
Sanjay Gandhi Biography: संजय गांधी का जन्म 14 दिसंबर, 1946 को दिल्ली में इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के घर हुआ। बचपन से ही वे ऊर्जा और जीवंतता से भरपूर थे। संजय गांधी को अक्सर इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। ऐसा माना जाता है कि 25 जून, 1975 को आपातकाल लागू होने के बाद, लगभग ढाई साल तक संजय गांधी ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शैक्षणिक और व्यक्तिगत जीवन
14 दिसंबर, 1946 को दिल्ली में जन्मे संजय गांधी ने अपनी शिक्षा देहरादून के दून स्कूल और स्विट्जरलैंड के इंटरनेशनल बोर्डिंग स्कूल से पूरी की। उन्होंने इंग्लैंड में रॉल्स-रॉयस कंपनी के साथ इंटर्नशिप की।
युवावस्था में संजय गांधी को तकनीकी और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में गहरी रुचि थी। उन्होंने इंग्लैंड जाकर प्रसिद्ध रॉल्स-रॉयस कंपनी के साथ इंटर्नशिप की, जहां उन्होंने ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग का अनुभव प्राप्त किया। उनकी इस रुचि का परिणाम उनके ड्रीम प्रोजेक्ट मारुति 800 के रूप में सामने आया, जिसका उद्देश्य हर भारतीय को सस्ती कार उपलब्ध कराना था।इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के छोटे बेटे संजय ने अपनी 33 साल की छोटी जिंदगी को पूरी ऊर्जा के साथ जिया।
व्यक्तिगत जीवन और रिश्ते
लंदन में रहते हुए संजय गांधी की जिंदगी में दो लड़कियां आईं। पहले उनका एक मुस्लिम लड़की के साथ रिश्ता था। लेकिन यह संबंध ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया। इसके बाद, उनका जुड़ाव एक जर्मन लड़की सैबीन वॉन स्टीग्लिट्स से हुआ। सैबीन वही व्यक्ति थीं, जिन्होंने राजीव गांधी की मुलाकात सोनिया गांधी से करवाई थी।
हालांकि, सैबीन और संजय का रिश्ता भी अधिक समय तक नहीं चला। इसका मुख्य कारण संजय का अपने ड्रीम प्रोजेक्ट, भारत में मारुति मोटर्स लिमिटेड की स्थापना, पर ध्यान केंद्रित करना था। उन्होंने अपनी अधिकांश ऊर्जा इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने में लगा दी, जिससे उनके व्यक्तिगत संबंध प्रभावित हुए।
पारिवारिक जीवन और विवाह
संजय गांधी का परिवार राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली था। उनकी मां इंदिरा गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। संजय ने 1974 में मेनका गांधी से शादी की, जो उस समय महज 17 साल की थीं। उनकी शादी एक सादे समारोह में हुई, लेकिन इंदिरा गांधी ने मेनका को 21 विशेष साड़ियां उपहार में दीं।संजय गांधी की जिंदगी में मेनका गांधी का आगमन एक खास मोड़ पर हुआ। 14 दिसंबर, 1973 को, संजय अपने दोस्त की शादी में गए थे, जो उनके ही जन्मदिन का दिन था। इसी समारोह में उनकी मुलाकात मेनका आनंद से हुई।
मेनका के पिता, तरलोचन सिंह, भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे। जब वे पहली बार संजय से मिलीं, तो उनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी, जबकि संजय उनसे 10 साल बड़े थे। इस पहली मुलाकात के बाद दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए और अक्सर साथ समय बिताने लगे।
आखिरकार, 23 दिसंबर,1974 को, संजय और मेनका ने शादी कर ली। यह विवाह संजय गांधी के पुराने मित्र मुहम्मद यूनुस के घर पर हुआ। इस मौके पर इंदिरा गांधी ने मेनका को 21 खास साड़ियां उपहार में दीं। इन साड़ियों में से एक वह साड़ी भी थी जिसे जवाहरलाल नेहरू ने जेल में रहते हुए खुद बुना था। मेनका के मुताबिक, डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि जब वरुण गांधी पैदा हुए तो संजय पहले शख्स थे जो डिलिविरी रूम में आए थे। मेनका ने संजय को एक ऐसे पति के रूप में पाया जो उनका बेहद खयाल रखता था। मेनका कहती हैं कि जब भी उनकी तबीयत खराब होती तो संजय सारा कामकाज छोड़कर उनके पास रहा करते थे।
संजय गांधी का जीवन कई अनकहे पहलुओं और रोचक घटनाओं से भरा हुआ था। कुछ ऐसी बाते हैं जो शायद बहुत कम लोग जानते हैं:
भारत में कार उद्योग का सपना
संजय गांधी ने अपने जीवन में एक बड़ा सपना देखा था – भारत में ‘पीपल्स कार’ या आम आदमी के लिए सस्ती कार लाना। इसके लिए उन्होंने मारुति उद्योग की नींव रखी और दिल्ली के गुलाबी बाग में एक वर्कशॉप स्थापित किया। यह परियोजना उनका ड्रीम प्रोजेक्ट थी, जो भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
अपातकाल के दौरान उनकी भूमिका
25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा के बाद संजय गांधी का प्रभाव और भी बढ़ गया था। माना जाता है कि आपातकाल के दौरान वह इंदिरा गांधी के सबसे विश्वासपात्र सलाहकार बने थे। उन्होंने कई अहम फैसले लिए, जिनमें पुरुष नसबंदी अभियान शामिल था, जिसे लेकर उन्हें काफी आलोचना भी मिली।
राजनीति में उनकी अप्रत्यक्ष उपस्थिति
संजय गांधी का राजनीतिक प्रभाव बहुत गहरा था, हालांकि वे कभी प्रधानमंत्री नहीं बने। उन्हें इंदिरा गांधी की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी माना जाता था। उन्होंने 1970 के दशक में भारतीय युवा कांग्रेस को नेतृत्व किया। कई महत्वपूर्ण फैसलों में दखल दिया, चाहे वह आपातकाल हो या अन्य राजनीतिक निर्णय।
व्यक्तिगत जीवन और प्रेम प्रसंग
संजय गांधी की प्रेम कहानी भी चर्चा में रही। उनकी जिंदगी में दो लड़कियों का महत्वपूर्ण स्थान था: एक मुस्लिम लड़की और फिर एक जर्मन लड़की, सैबीन वॉन स्टीग्लिट्स। बाद में उन्होंने मेनका गांधी से विवाह किया, जो भारतीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बना चुकी थीं।
रॉल्स-रॉयस के साथ इंटर्नशिप
संजय गांधी का सपना था कि वह भारतीय उद्योग में तकनीकी सुधार लाएं। इसके लिए उन्होंने इंग्लैंड में रॉल्स-रॉयस कंपनी के साथ इंटर्नशिप की और वहां से महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त किया।
सैन्य और तात्कालिक राजनीति में सक्रियता
संजय गांधी का जीवन सिर्फ कार निर्माण तक सीमित नहीं था। उन्होंने राजनीति में अपनी संलिप्तता को बढ़ाया और यह माना जाता है कि वह भारतीय सेना के साथ जुड़े मामलों में भी रुचि रखते थे। उनका उद्देश्य भारतीय सेना की मजबूती को सुनिश्चित करना था।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत
संजय गांधी ने 1970 के दशक में भारतीय युवा कांग्रेस के नेता के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। वे सीधे तौर पर सत्ता में नहीं थे, लेकिन इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र और सलाहकार के रूप में उन्होंने कई नीतिगत फैसलों को प्रभावित किया। आपातकाल के दौरान (1975-77), वे अनौपचारिक रूप से बेहद शक्तिशाली हो गए और कई कठोर फैसले, जैसे पुरुष नसबंदी अभियान, का नेतृत्व किया।
संजय गांधी को नजदीक से जानने वाले उन्हें समय के प्रति बेहद कड़ा और पाबंद मानते थे। भले ही संजय गांधी के पास सरकारी पद नहीं था। लेकिन अधिकांश लोग उन्हें 'सर' के रूप में संबोधित करते थे। संजय गांधी इतने समय के पाबंद थे कि उन्हें देखकर आप अपनी घड़ी भी मिला सकते थे।
विवादित निर्णय
पुरुष नसबंदी
सितंबर, 1976 में, उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण के लिए देशभर में पुरुष नसबंदी का आदेश दिया। यह कदम अत्यधिक विवादास्पद साबित हुआ। सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, एक वर्ष में 60 लाख से अधिक पुरुषों की नसबंदी करवाई गई, जिनमें किशोर और बुजुर्ग भी शामिल थे। यह नीति लोगों में भय और असंतोष का कारण बनी।
मारुति 800 का सपना
संजय गांधी का सपना था कि हर भारतीय के पास एक सस्ती और विश्वसनीय कार हो। इसी विचार से उन्होंने 4 जून, 1971 को मारुति मोटर्स लिमिटेड की स्थापना की और इसके पहले प्रबंध निदेशक बने। उनकी इस पहल ने बाद में भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग को नई ऊंचाई दी।
आपातकाल और सेंसरशिप
इंदिरा गांधी की सरकार में संजय गांधी का प्रभाव काफी मजबूत था, खासकर आपातकाल (1975-77) के दौरान। इस दौर में संजय गांधी ने कई महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले लिए और देश के मीडिया और कला जगत पर भी गहरी छाप छोड़ी। आपातकाल के समय प्री-सेंसरशिप लागू थी, जिससे फिल्में रिलीज होने से पहले सरकार की मंजूरी प्राप्त करना जरूरी था। एक प्रसिद्ध उदाहरण है फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' का, जिसे 1975 में रिलीज किया जाना था। लेकिन उसे 'आपत्तिजनक' मानते हुए बैन कर दिया गया। फिल्म के समीक्षा में 51 आपत्तियां गिनाई गई थीं, और आपातकाल के दौरान यह फिल्म रिलीज नहीं हो पाई।
इसके अलावा, जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई, तो संजय गांधी पर आरोप लगा कि उन्होंने इस फिल्म का मूल प्रिंट जला दिया था। शाह कमीशन ने संजय गांधी को इस मामले में दोषी भी पाया था। इसके साथ ही, गुलजार की फिल्म 'आंधी' भी बैन कर दी गई थी, क्योंकि उसमें इंदिरा गांधी से मिलते-जुलते पात्र को चित्रित किया गया था। संजय गांधी के हस्तक्षेप से किशोर कुमार के गाने भी ऑल इंडिया रेडियो पर बैन कर दिए गए थे, जो उस समय के फिल्मी संगीत जगत के लिए एक बड़ा झटका था।यह सब घटनाएं संजय गांधी के अधिकार और सत्ता की प्रतीक मानी जाती हैं, जो आपातकाल के दौरान उनके प्रभाव को दर्शाती हैं।
विमान दुर्घटना में निधन
23 जून,1980 को, मात्र 33 वर्ष की उम्र में, संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में दुखद मृत्यु हो गई। इस हादसे ने गांधी परिवार और भारतीय राजनीति में एक बड़ा शून्य पैदा कर दिया।
संजय गांधी की मौत 23 जून, 1980 को एक विमान दुर्घटना में हो गई। उनकी शादी के लगभग छह साल बाद यह हादसा हुआ। उस सुबह, उन्होंने और दिल्ली फ्लाइंग क्लब के पूर्व प्रशिक्षक सुभाष सक्सेना ने सफदरजंग हवाईअड्डे से उड़ान भरी।
उड़ान के दौरान, जब विमान कलाबाजियां दिखा रहा था, तभी उसके पिछले इंजन ने काम करना बंद कर दिया। इसके परिणामस्वरूप विमान अशोक होटल के पीछे स्थित खाली जमीन पर गिरकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में संजय गांधी और सुभाष सक्सेना दोनों की जान चली गई। यह दुर्घटना गांधी परिवार और देश के लिए एक गहरी क्षति साबित हुई।
संजय गांधी धुन के पक्के इंसान थे। जो ठान लिया वो करना ही होता था। उनका एक चर्चित कथन अक्सर हुआ करता था- Convince me or get convinced. यानी या तो मेरी बात मान लो या मुझे अपनी बात मानने के लिए मना लो। संजय गांधी का जीवन भले ही छोटा था। लेकिन उनकी पहल, महत्वाकांक्षा और विवादों ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरी छाप छोड़ी।संजय गांधी की जिंदगी और फैसले भारतीय राजनीति में गहरी छाप छोड़ गए। उनके कुछ निर्णय विवादित रहे। लेकिन उनका सपना और उनकी पहल, जैसे मारुति कार, आज भी सराहनीय मानी जाती है।संजय गांधी का जीवन संक्षिप्त। लेकिन बहुत ही प्रभावशाली था। उनका योगदान भारतीय राजनीति, उद्योग और समाज में हमेशा याद किया जाएगा, भले ही उनकी मृत्यु के बाद देश में कई बदलाव आए। उनके योगदान और उनके जीवन के विवादों ने भारतीय समाज को प्रभावित किया और उनके जाने के बाद उनकी कमी आज भी महसूस की जाती है।