Shani Kavach: करें शनि कवच का पाठ, दूर होंगी बाधाएं

Shani Kavach: कवच का उल्लेख भी मिलता है। युद्ध क्षेत्र में जाने से पूर्व सिपाही अपने शरीर पर एक लोहे का कवच धारण करता था ताकि दुश्मनों के वार से उसे खरोंच तक ना आने पाए और कवच के भीतर सिपाही सुरक्षित रहता था। इसी प्रकार शनि कवच का पाठ है जिसे करने पर व्यक्ति कवच से सुरक्षित रहता है।

Update:2023-03-17 22:19 IST

Shani Kavach: शनि ग्रह की पीड़ा से बचने के लिए अनेकानेक मंत्र जाप, पाठ आदि शास्त्रों में दिए गए हैं। शनि ग्रह के मंत्र भी कई प्रकार हैं। कवच का उल्लेख भी मिलता है। युद्ध क्षेत्र में जाने से पूर्व सिपाही अपने शरीर पर एक लोहे का कवच धारण करता था ताकि दुश्मनों के वार से उसे खरोंच तक ना आने पाए और कवच के भीतर सिपाही सुरक्षित रहता था। इसी प्रकार शनि कवच का पाठ है जिसे करने पर व्यक्ति कवच से सुरक्षित रहता है और किसी प्रकार की हानि उसे शनि की दशा/अन्तर्दशा में नहीं होती है। कवच का अर्थ ही है ढाल अथवा रक्षा।

जो व्यक्ति शनि कवच का पाठ नियम से करता है उसे शनि महाराज डराते नहीं है। शनि की दशा हो, अन्तर्दशा हो, शनि की ढैय्या हो अथवा शनि की साढ़ेसाती ही क्यों ना हो, कवच का पाठ करने पर कष्ट, व्याधियाँ, विपत्ति, आपत्ति, पराजय, अपमान, आरोप-प्रत्यारोप तथा हर प्रकार के शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक कष्टों से दूर रहता है। जो व्यक्ति इस कवच का पाठ निरंतर करता है उसे अकाल मृत्यु तथा हत्या का भय भी नहीं रहता है क्योंकि ढाल की तरह व्यक्ति की सुरक्षा होती है और ना ही ऎसे व्यक्ति को लकवे आदि का डर ही होता है, यदि किसी कारणवश आघातित हो भी जाए तब भी विकलांग नहीं होता है। चिकित्सा के बाद व्यक्ति फिर से चलना-फिरना आरंभ कर देता है।

विनियोगः ॐ अस्य श्रीशनैश्चर-कवच-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्द, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः, शूं कीलकम्, शनैश्चर-प्रीत्यर्थं जपे विनियोग

नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।१

ब्रह्मोवाच-

  • श्रृणुषवमृषयः सर्वे शनिपीड़ाहरं महप्।
    कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।२
  • कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
    शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।३
  • ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनः।
    नेत्रे छायात्मजः पातु, पातु कर्णौ यमानुजः।।४
  • नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा।
    स्निग्ध-कंठस्च मे कंठं भुजौ पातु महाभुजः।।५
  • स्कंधौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः।
    वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा।।६
  • नाभिं ग्रहपतिः पातु मंदः पातु कटि तथा।
    ऊरु ममांतकः पातु यमो जानुयुग्म तथा।।७
  • पादौ मंदगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः।
    अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनन्दनः।।८
  • फलश्रुति
  • इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः।
    न तस्य जायते पीडा प्रोतो भवति सूर्यजः।।९
  • व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा।
    कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः।।१०
  • अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
    कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।११
  • इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
    द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा।
    जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः।।१२

।।श्रीब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारद-संवादे शनि-वज्र-पंजर-कवचं।।

इस कवच को “ब्रह्माण पुराण” से लिया गया है, जिन व्यक्तियों पर शनि की ग्रह दशा का प्रभाव बना हुआ है उन्हें इसका पाठ अवश्य करना चाहिए. जो व्यक्ति इस कवच का पाठ कर शनिदेव को प्रसन्न करता है उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. जन्म कुंडली में शनि ग्रह के कारण अगर कोई दोष भी है तो वह इस कवच के नियम से किए पाठ से दूर हो जाते हैं।

(चन्द्र प्रभा वेबसाइट से साभार)

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