हम सब ऐसे तामाम लोगों को जानते हैं जो अपने स्मार्टफोन से चंद मिनटों के लिए अलग नहीं रह सकते। ऐसे लोग लगातार मेसेज भेजते, चैटिंग या सोशल मीडिया पर मित्रों के स्टेटस चेक करते नजर आते हैं। इस प्रकार के व्यवहार को बहुत से लोग सामाजिक व्यवहार मानते हैं और इसे स्मार्टफोन एडिक्शन या स्मार्टफोन की लत करार देते हैं। स्थिति ये है कि अब ये मांग उठने लगी है कि टेक्नोलॉजी की दिग्गज कम्पनियाँ इस समस्या से निपटने के लिए कदम उठायें।
लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि ये सच्ची तस्वीर नहीं है। मैक्गिल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शमूएल वेसेरी का कहना है कि दूसरों को देखना और उनकी निगरानी करना तथा खुद दूसरों को दिखाई देना व अपनी निगरानी होने देना मनुष्य की क्रमगत उन्नति, एवोल्यूशन में गहरे से बैठा हुआ है। मानव की उत्पत्ति एक अनोखे सामाजिक प्राणी के रूप में हुयी है। उसे उचित सांस्कृतिक व्यवहार के दिशा निर्देश के रूप में दूसरों से लगातार इनपुट मिलते रहने की जरूरत रहती है।
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इंसान के लिए ये इनपुट जीवन के मायने उद्देश्य खोजने के अलावा अपनी पहचान बनाये रखने के माध्यम होते हैं।
वैज्ञानिकों ने अपने शोध के क्रम में पाया है कि स्मार्टफोन के सबसे एडिक्टिव फंक्शन में एक बात कॉमन है। ये इन्सान में अन्य लोगों से जुड़ने की इच्छा का इस्तेमाल करते हैं। हालाँकि स्मार्टफोन सामाजिकता की स्वस्थ और सामान्य आवश्यकता की पूर्ति होती है। लेकिन सच्चाई ये भी है कि हाइपर कनेक्टिविटी की रफ़्तार और व्यापकता इतनी ज्यादा है कि इनसान के मस्तिष्क का सिस्टम सामान्य से कहीं ज्यादा काम करने लगता है जो एक बीमार लत तक पहुँच जाता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार औद्योगीकरण के बाद के वातावरण में भोजन बड़ी मात्रा में और सर्वत्र उपलब्ध है। मानव विकास क्रम की एक अन्तर्निहित आदत के कारण जरूरत से ज्यादा खानाए शक्कर और फैट के प्रति लालच इन सबका नतीजा मोटापा मधुमेह और ह्रदय रोग के रूप में सामने आया है। यही स्थिति सामाजिकता के साथ है। टेक्नोलॉजी कंपनियों पर लगाम कसने या मोबाइल डिवाइस के इस्तेमाल पर नियंत्रण की बजे अगर स्मार्टफोन के सही इस्तेमाल के प्रति जागरूकता फैलाई जाए तो ज्यादा बेहतर होगा।