Sperm Count in Indians: भारतीय पुरुषों में घट रहा स्पर्म काउंट, खतरे की बड़ी घण्टी
Sperm Count in Indians: शोधकर्ताओं ने कहा है कि स्पर्म काउंट में गिरावट आधुनिक पर्यावरण और जीवन शैली से संबंधित वैश्विक संकट को दर्शाती है, जिसका मानव प्रजातियों के अस्तित्व के लिए व्यापक प्रभाव है।
Sperm Count in Indians: भारत सहित वैश्विक स्तर पर कई देशों में स्पर्म यानी शुक्राणुओं की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट हो रही है। शुक्राणुओं की संख्या न केवल मानव प्रजनन क्षमता का संकेतक है, बल्कि पुरुषों के स्वास्थ्य का भी संकेत है, जिसमें कम स्पर्म काउंट पुरानी बीमारी, अंडकोष यानी टेस्टिकुलर कैंसर और घटे हुए जीवनकाल के जोखिम से जुड़ा होता हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा है कि स्पर्म काउंट में गिरावट आधुनिक पर्यावरण और जीवन शैली से संबंधित वैश्विक संकट को दर्शाती है, जिसका मानव प्रजातियों के अस्तित्व के लिए व्यापक प्रभाव है।
एक नए शोध के अनुसार 1973 के बाद से दुनिया भर में पुरुषों के स्पर्म काउंट शुक्राणुओं की संख्या में 62 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस शोध के लेखकों ने कहा है कि ये डेटा पुरुष प्रजनन क्षमता और सामान्य रूप से पुरुष स्वास्थ्य, दोनों के लिए खतरे की घंटी है। इस शोध का नेतृत्व यरुशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय के प्रो. हागई लेविन और न्यूयॉर्क के इकाॅन स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर शन्ना स्वान के साथ किया है। प्रो लेविन का कहना है कि - हमें शोध के नतीजों से चकित और चिंतित होना चाहिए।
स्पर्म काउंट पर 2017 के प्रो लेविन के ही एक अध्ययन में कहा गया था कि अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या 1973 और 2011 के बीच 50 फीसदी से अधिक गिर गई। नये अध्ययन में 1973 से 2018 तक का डेटा शामिल है तथा इस अध्ययन की भौगोलिक पहुंच भी कहीं अधिक व्यापक है, जिसमें लगभग 53 देश शामिल हैं।
प्रो लेवी और उनके सहयोगी, सैकड़ों अध्ययनों और अन्य समग्र आंकड़ों को समायोजित करके अपने निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। उदाहरण के लिए, जिन पुरुषों ने प्रजनन समस्याओं के कारण अपने शुक्राणुओं की संख्या की जाँच की, उन्हें नए अध्ययन में शामिल नहीं किया गया।
शोध पत्र ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपडेट जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
62 फीसदी गिरावट शुक्राणुओं की संख्या से संबंधित है, जिसका अर्थ है औसत स्खलन में मौजूद शुक्राणुओं की संख्या। प्रति मिलीलीटर वीर्य में शुक्राणु की सांद्रता 52 फीसदी कम होकर लगभग 50 मिलियन हो गई है। यह अभी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के कटऑफ 15 मिलियन प्रति मिलीलीटर से काफी ऊपर है। जब शुक्राणु की एकाग्रता 40 मिलियन प्रति मिली लीटर से कम हो जाती है तो प्रजनन क्षमता कम होने लगती है।
प्रो लेविन ने अध्ययन के समग्र निष्कर्षों पर कहा है कि, हमारे सामने एक गंभीर समस्या है जिसे अगर कम नहीं किया गया, तो यह मानव जाति के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है। उन्होंने कहा कि उनका अध्ययन यह पता नहीं लगाता है कि शुक्राणुओं की संख्या और सांद्रता में गिरावट का कारण क्या है, लेकिन अन्य शोधकर्ताओं ने गिरते हुए शुक्राणुओं की संख्या को व्यापक रूप से बढ़ता मोटापा, गतिहीन जीवन शैली, धूम्रपान, कुछ रसायनों और कीटनाशकों के संपर्क में आने और अन्य कारकों से जोड़ा है।
शोधकर्ता प्रो स्वान ने कहा कि शुक्राणुओं की संख्या में गिरावट पुरुषों के स्वास्थ्य के पहलुओं में व्यापक गिरावट का हिस्सा है। उन्होंने कहा, "पुरुषों की शुक्राणु एकाग्रता और कुल शुक्राणुओं की संख्या में हर साल 1 फीसदी से अधिक गिरावट आती है, जैसा कि हमारे पेपर में बताया गया है, अन्य पुरुषों के स्वास्थ्य परिणामों में प्रतिकूल प्रवृत्तियों के अनुरूप हैं। इनमें टेस्टिकुलर कैंसर, हार्मोनल व्यवधान और जननांग जन्म दोष शामिल हैं, साथ ही साथ महिला प्रजनन स्वास्थ्य में गिरावट भी शामिल है।"