Sharat Chandra Bose Biography: शरत चंद्र बोस, सुभाष चंद्र बोस को ‘नेताजी’ बनाने वाले महान नेता
Sarat Chandra Bose Ka Jivan Parichay: शरत चंद्र बोस ने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया, बल्कि अपने छोटे भाई नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक महान क्रांतिकारी नेता बनने की राह भी दिखाई। आइए जानते हैं उनके बारे में।;
Sharat Chandra Bose (Pic Credit- Social Media)
Sarat Chandra Bose Wikipedia In Hindi: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) का योगदान अतुलनीय है, लेकिन उनके संघर्ष और विचारों को दिशा देने वाले उनके बड़े भाई शरत चंद्र बोस को भुलाया नहीं जा सकता। शरत चंद्र बोस (Sarat Chandra Bose) केवल सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई ही नहीं थे, बल्कि वे एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी, वकील, समाजसेवी और कुशल राजनेता भी थे। उनकी प्रेरणा और समर्थन के बिना सुभाष चंद्र बोस को ‘नेताजी’ बनने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता।
शरत चंद्र बोस की कहानी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उस पहलू को उजागर करती है, जिसमें उन्होंने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया, बल्कि अपने छोटे भाई नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक महान क्रांतिकारी नेता बनने की राह भी दिखाई। आइए, उनके जीवन को विस्तार से समझते हैं।
शरत चंद्र बोस का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (Sarat Chandra Bose Kaun The)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
शरत चंद्र बोस का जन्म 6 सितंबर 1889 को बंगाल के कटक (अब ओडिशा) में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रतिष्ठित वकील थे और पूरे परिवार का झुकाव राष्ट्रवादी विचारधारा की ओर था।
शरत चंद्र बोस बचपन से ही मेधावी छात्र थे और उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय (अब कोलकाता विश्वविद्यालय) से कानून की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे इंग्लैंड गए और बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की। वकालत की पढ़ाई के दौरान ही उनके मन में ब्रिटिश हुकूमत के प्रति असंतोष उत्पन्न होने लगा और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ओर आकर्षित हुए।
इंग्लैंड से लौटने के बाद वे कलकत्ता हाई कोर्ट में एक सफल वकील बने, लेकिन उनकी असली पहचान एक राष्ट्रवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बनी।
स्वतंत्रता संग्राम में शरत चंद्र बोस की भूमिका
शरत चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता थे। वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य बने और महात्मा गांधी तथा अन्य नेताओं के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया।
असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन
1920 के दशक में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, तब शरत चंद्र बोस ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खुलकर आंदोलन किए और भारतीय जनता को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भाग लिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने बंगाल में स्वराज पार्टी की स्थापना में भी योगदान दिया।
सुभाष चंद्र बोस को ‘नेताजी’ बनाने में शरत चंद्र बोस की भूमिका
सुभाष चंद्र बोस के जीवन में उनके बड़े भाई शरत चंद्र बोस का बहुत बड़ा योगदान था। सुभाष चंद्र बोस जब भारतीय प्रशासनिक सेवा (ICS) छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूदे, तो उन्हें सबसे अधिक समर्थन शरत चंद्र बोस से मिला।
नेताजी के राजनीतिक संघर्ष में सहयोग
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
1920 और 1930 के दशक में जब सुभाष चंद्र बोस को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जगह बनानी थी, तब शरत चंद्र बोस ने उनके लिए एक मजबूत राजनीतिक आधार तैयार किया। वे सुभाष चंद्र बोस के लिए एक मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में काम करते रहे।
1939 में जब सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जीता और गांधीजी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को हराया, तब शरत चंद्र बोस उनके सबसे बड़े समर्थक थे। हालांकि, गांधीजी और अन्य वरिष्ठ नेताओं से मतभेद के कारण सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस छोड़नी पड़ी, लेकिन शरत चंद्र बोस ने हमेशा उनका समर्थन किया।
आजाद हिंद फौज की स्थापना में मदद
जब सुभाष चंद्र बोस ब्रिटिश हुकूमत से बचकर जर्मनी और जापान गए और वहां आजाद हिंद फौज की स्थापना की, तब शरत चंद्र बोस ने भारत में रहकर इस आंदोलन को समर्थन दिया। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए आर्थिक और नैतिक समर्थन जुटाने में लगे रहे।
शरत चंद्र बोस और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनकी भूमिका
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान भारत में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष तेज हो गया था। शरत चंद्र बोस ने ब्रिटिश सरकार के भारत में जारी अत्याचारों का विरोध किया और भारत को तुरंत स्वतंत्र करने की मांग उठाई।
वे उन नेताओं में से थे जो चाहते थे कि भारत ब्रिटिश शासन से तुरंत मुक्त हो, चाहे इसके लिए कोई भी रास्ता अपनाना पड़े। इसी कारण वे कांग्रेस के कई नेताओं से मतभेद रखते थे, क्योंकि कुछ नेता ब्रिटिश सरकार से बातचीत के जरिए स्वतंत्रता चाहते थे।
भारत विभाजन का विरोध
1946 में जब भारत के विभाजन की योजना बनी, तो शरत चंद्र बोस ने इसका कड़ा विरोध किया। वे नहीं चाहते थे कि भारत का विभाजन हो और एक अलग पाकिस्तान बने।
उन्होंने "यूनाइटेड बंगाल मूवमेंट" शुरू किया, जिसमें उन्होंने बंगाल को एक स्वतंत्र और अविभाजित राज्य के रूप में बनाए रखने का प्रस्ताव रखा। हालांकि, उनकी यह योजना सफल नहीं हो सकी और 1947 में भारत का विभाजन हो गया।
आजादी के बाद भी जारी रही शरत चंद्र बोस और उनके परिवार की जासूसी
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी गोपनीय फाइलों की जांच में ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि न केवल ब्रिटिश हुकूमत बल्कि स्वतंत्र भारत की सरकार भी शरत चंद्र बोस और उनके परिवार को एक बड़ी राजनीतिक शक्ति के रूप में देखती थी।
इन फाइलों से यह स्पष्ट होता है कि ब्रिटिश शासन शरत चंद्र बोस को केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पीछे की असली ताकत मानता था। ब्रिटिश पुलिस अधिकारी चार्ल्स टेगार्ट ने अपनी रिपोर्ट में शरत चंद्र बोस को ब्रिटिश साम्राज्य के लिए "सबसे खतरनाक प्रतिद्वंद्वी" बताया था। वे मानते थे कि सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों और गतिविधियों के पीछे उनके बड़े भाई शरत चंद्र बोस की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
इतना ही नहीं, आजादी के बाद भी शरत चंद्र बोस और उनके परिवार की गतिविधियों पर लगातार नजर रखी गई। 1949 में दक्षिण कलकत्ता उपचुनाव में जब उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया, तो तत्कालीन नेहरू सरकार ने उनकी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखनी शुरू कर दी।
फाइलों से यह भी पता चलता है कि शरत चंद्र बोस और उनके बेटों पर 24 घंटे जासूसों की नजर बनी रहती थी। उनकी हर हरकत को रिकॉर्ड किया जाता था, जिससे यह साफ होता है कि कांग्रेस सरकार भी उन्हें एक संभावित राजनीतिक खतरे के रूप में देख रही थी। यह तथ्य स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जो यह दर्शाता है कि सत्ता में बने रहने के लिए तत्कालीन सरकारें किस हद तक जा सकती थीं।
शरत चंद्र बोस का निधन
शरत चंद्र बोस ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वे एक राष्ट्रवादी नेता, समाज सुधारक और कुशल वकील थे। 20 फरवरी 1950 को वे इस दुनिया को छोड़कर चले गए। उनका निधन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक बड़ी क्षति थी।
बोस का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्वपूर्ण था, लेकिन उन्हें उतनी पहचान नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी। वे केवल सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई ही नहीं थे, बल्कि वे एक स्वतंत्र विचारक, राष्ट्रवादी नेता और समाज सुधारक भी थे।
आज भी उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमूल्य है। उन्होंने अपने छोटे भाई को एक क्रांतिकारी नेता बनने की प्रेरणा दी और स्वयं भी स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई।
शरत चंद्र बोस की कहानी यह दर्शाती है कि भारत की आजादी के संघर्ष में कई अनसुने नायक भी थे, जिनकी भूमिका अमूल्य थी और जिन्हें हमेशा याद किया जाना चाहिए।