Santhal, Munda Community: झारखण्ड के संथाल और मुंडा समुदाय में अजीबोग़रीब विवाह, जानिए क्या हैं यहाँ के नियम

Santhal, Munda Community: संथाल और मुंडा समुदाय की शादी की रस्मों में वर और वधू दोनों की छोटी ऊँगली से थोड़ा सा खून निकाला जाता है। इस खून को निकालकर एक दूसरे के माथे पर लगाया जाता है। खून गहरे मेल और जीवन में साझेदारी का प्रतीक हैं।

Update:2023-05-09 21:17 IST
संथाल जनजाति, झारखंड (फ़ोटो: सोशल मीडिया)

Santhal, Munda Community: झारखंड की भूमि आदिवासियों का पालना रही है। यहाँ सबसे अधिक आदिवासी जनजाती पायी जाती हैं। प्रकृति के साथ सैकड़ों साल तक सामंजस्य बिठाते हुए ये आदिवासी प्रकृति पुत्र बन गए. जंगल, नदियां पहाड़ और झरने इनकी जिंदगी में ऑक्सीजन की तरह शामिल हैं।

झारखंड में रहने वाली आदिवासी जनजातिया

झारखंड में आदिवासियों की कई जातियां और उप जातियां रहती हैं. झारखंड सरकार के मुताबिक झारखंड में 32 आदिवासी समूह अथवा जनजातियां रहती हैं. इनमें प्रमुख समूह मुंडा, संथाल, उरांव, खड़िया, गोंड, असुर, बैगा, बिरहोर, गोडाइत, पहाड़िया इत्यादि हैं. मुंडा, संथाल जैसी जनजातियां राजनीतिक रूप से सजग हैं. झारखंड की राजनीति में इनका अच्छा खासा दखल है। इनकी अनूठी परंपराएं और रीति रिवाज हैं। इन रिवाजों से आदिवासियों का प्रकृति प्रेम, इनकी सरलता और सहजता झलकती है।

वर वधु के खून में छिपे प्रतीक

संथाल और मुंडा जनजातियों में वर और वधू की छोटी ऊँगली से थोड़ा सा खून निकाला जाता है। इस खून को मिलाकर एक दूसरे के माथे पर लगाया जाता है। खून गहरे मेल और जीवन में साझेदारी का प्रतीक है।

दुल्हन के घर को संभालता है दूल्हा

संथाल और मुंडा जनजातियों में विवाह की एक ऐसी परंपरा है जहाँ लड़के के सालो तक वधु के घर पर रहकर उसके घर की गृहस्थी संभालनी पड़ती है। ऐसी स्थिति तब होती है जब लड़की का भाई नाबालिग होता है। ऐसी स्थिति में लड़के को 5 साल या उससे अधिक दुल्हन के घर में रहना होता है। दुल्हन का भाई जब बालिग होता है तो लड़के की जिम्मेदारी होती है कि वो उसके भाई का विवाह कराए। भाई का विवाह होने के बाद ही लड़का अपनी पत्नी को अपने घर लेकर आता है।

सामान्य तौर पर संथालों में विवाह के आठ पारंपरिक रूप मौजूद हैं

  1. किरिन बहू बापला
  2. तुनकी दीपिल बापला
  3. किरिन जवाई बापला
  4. इत्तुत सिंदूर बापला
  5. निर बोलोक बापला
  6. सांगा बापला
  7. घरदी जवाई बापला
  8. दुलोर काटे बापला/उपगीर बापला

इन आठ प्रकार के विवाहों में से केवल तीन प्रकार के विवाह अध्ययनरत गाँव में देखे गए।

1.किरिन बहू बापला : किरिन बहू बापला अपने मायके से दुल्हन खरीदने के लिए जानी जाती है। संथाली परिवार में, परिवार में हर कोई व्यवसाय में योगदान देता है, जो कि कृषि है। इसलिए, प्रत्येक परिवार के सदस्य को जनशक्ति माना जाता है। जनशक्ति की भरपाई के लिए दुल्हन के लिए अपने माता-पिता को एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ता है। इसे वधू मूल्य नहीं माना जाता बल्कि यह वधू के पहचान मूल्य की प्रथा है।

2.सांबापला : सांगाबापला विधवा या तलाकशुदा महिला, और विधुर या तलाकशुदा पुरुष द्वारा किया गया अनुबंध है। यहां वधू मूल्यकिरिन बापला से आधा होता है । समाज अधिक होर (गाँव के पाँच प्रतिष्ठित लोगों) ग्रामीणों,नाइकी और मांझी हराम द्वारा कुछ अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों का पालन करता है।

3.दुलोर कटे बापला : संताल समुदाय पुरुष या महिला के साथ बातचीत के लिए खुला है। कोई भी पुरुष या महिला शादी करने की आम सहमति के साथ मिलते हैं और आते हैं। समाज इस तरह के संघवाद को स्वीकार करता है और विवाह के रूप में माना जाता है। यह माता-पिता की जानकारी के बिना है, लेकिन बाद में माता-पिता को गांव के दूत द्वारा सूचित किया जा रहा है, जिसे मुखिया द्वारा सौंपा गया है। इस तरह के विवाह हाट (गाँव, दैनिक या साप्ताहिकस्थानीय बाजार), पता ( मेला या किसी अवसर का सामुदायिक उत्सव) से होते हैं। नवविवाहित जोड़े के लिए तिरिल-तारोब नामक विशेष समारोह होता है। जहां ग्रामीणों को दोनों के बारे में पूछने और अपनी शंका दूर करने का अधिकार है। यह रिवाज एक प्रतिनिधि के माध्यम से किया जाता हैमांझी ।

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