Lok Sabha Election: यूपी और बिहार में बड़ा खेला कर सकते हैं ओवैसी, M फैक्टर से लगेगा अखिलेश और लालू यादव को करारा झटका
Lok Sabha Election: पिछले लोकसभा चुनाव में तेलंगाना और महाराष्ट्र की लोकसभा सीटों पर मिली जीत के बाद अब ओवैसी की निगाहें दो प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार पर टिकी हुई हैं।
Lok Sabha Election 2024: लोकसभा और चुनाव नजदीक आने के साथ ही सभी राजनीतिक दल अपना-अपना समीकरण साधने की कोशिश में जुट गए हैं। ऐसे माहौल में आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी भी खासे सक्रिय नजर आ रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तेलंगाना और महाराष्ट्र की लोकसभा सीटों पर मिली जीत के बाद अब ओवैसी की निगाहें हिंदी पट्टी के दो प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार पर टिकी हुई हैं। उन्होंने इन दोनों राज्यों के मुस्लिम बहुल इलाकों पर अपनी नज़रें गड़ा रखी हैं। दोनों राज्यों में ओवैसी अपने प्रत्याशी उतारने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार की करीब दर्जन भर लोकसभा सीटों पर ओवैसी की ओर से अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी है। ओवैसी का यह कदम उत्तर प्रदेश में सपा मुखिया अखिलेश यादव और बिहार में राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव के लिए सियासी नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है। इससे भाजपा को सियासी फायदा पहुंचने की उम्मीद भी जताई जा रही है।
बिहार में ओवैसी दिखा चुके हैं ताकत
बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम बहुल पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करके राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया था। हालांकि बाद में ओवैसी के चार विधायकों ने पाला बदल लिया था।
इन चारों सदस्यों ने लालू की पार्टी राजद की सदस्यता ग्रहण कर ली थी जिसे लेकर ओवैसी राजद से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। उन्होंने इसे लेकर राजद पर हमला भी बोला था।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव के दौरान भी ओवैसी की पार्टी ने अपनी ताकत दिखाई थी। इस कारण ओवैसी लोकसभा चुनाव के दौरान इन दोनों राज्यों में अपनी पार्टी की सियासी जमीन को मजबूत बनाना चाहते हैं।
2019 में मिली थी इन सीटों पर कामयाबी
तेलंगाना की हैदराबाद लोकसभा सीट को ओवैसी की फैमिली का गढ़ माना जाता रहा है। 1984 से 2004 तक इस लोकसभा सीट से ओवैसी के पिता सांसद रहे जबकि उसके बाद लगातार ओवैसी इस सीट पर जीत हासिल करते रहे हैं। पिछले चुनाव में ओवैसी ने बिहार के किशनगंज और महाराष्ट्र की औरंगाबाद लोकसभा सीटों पर भी अपने दल के प्रत्याशी उतारे थे।
करीब 70 फीसदी मुस्लिम वोटरों वाली किशनगंज सीट पर एआईएमआईएम के प्रत्याशी को करीब तीन लाख वोट मिले थे। हालांकि पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। हैदराबाद और औरंगाबाद लोकसभा सीट पर पार्टी को जीत हासिल हुई थी।
बिहार में लालू को नुकसान पहुंचाएंगे ओवैसी
इस बार ओवैसी बिहार की आठ लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उनके इस कदम को राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है। बिहार में मुस्लिम और यादव को राजद का वोट बैंक माना जाता रहा है और ऐसे में ओवैसी राजद को बड़ा सियासी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्ष की ओर से कांग्रेस एकमात्र किशनगंज सीट जीतने में कामयाब हुई थी मगर इस बार ओवैसी कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर भी ग्रहण लगा सकते हैं। झारखंड में भी ओवैसी की पार्टी दो-तीन सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा करने की कोशिश में जुटी हुई है।
बिहार की इन सीटों पर ओवैसी की निगाह
बंगाल से सटे बिहार के सीमांचल इलाके में लोकसभा के चार सीटें हैं। सीमांचल में आने वाली किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया इन सभी सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है। इस कारण ओवैसी की निगाह इन चारों लोकसभा सीटों पर लगी हुई है।
अपनी पार्टी के चार विधायकों के पाला बदलने के बाद राजद में शामिल होने से ओवैसी खासे नाराज हैं और राजद मुखिया लालू यादव से हिसाब बराबर करना चाहते हैं। माना जा रहा है कि ओवैसी की ओर से अपना प्रत्याशी खड़ा किए जाने के बाद मुस्लिम वोट बैंक में बड़ा बंटवारा होगा जिससे भाजपा को सियासी फायदा होने की उम्मीद जताई जा रही है।
यूपी में अखिलेश को लग सकता है बड़ा झटका
अब यदि बात उत्तर प्रदेश की की जाए तो उत्तर प्रदेश में भी ओवैसी अपनी सक्रियता बढ़ा चुके हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी ओवैसी ने 95 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। हैरान करने वाली बात तो यह है कि इनमें से 58 सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने कांग्रेस से ज्यादा भी वोट हासिल किए थे। इस कारण उत्तर प्रदेश को लेकर ओवैसी का उत्साह बढ़ा हुआ नजर आ रहा है।
उत्तर प्रदेश में ओवैसी की निगाह मुख्य रूप से मुरादाबाद, मेरठ, संभल, मुजफ्फरनगर और अमरोहा लोकसभा सीटों पर टिकी हुई है।
इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं को बड़ी ताकत माना जाता है और ऐसे में ओवैसी के प्रत्याशी इन सीटों पर सपा मुखिया अखिलेश यादव के प्रत्याशियों को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। वैसे ओवैसी का कहना है कि वे उत्तर प्रदेश की 10 से 15 लोकसभा सीटों पर अपनी पार्टी की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समीकरण साधने की कोशिश
उनका मानना है कि सपा और रालोद का गठबंधन टूटने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा सियासी रूप से काफी कमजोर हो चुकी है। इस कारण वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जरिए अपनी पार्टी का सियासी समीकरण साधने की कोशिश में जुट गए हैं।
ओवैसी का यह कदम सपा मुखिया अखिलेश यादव को झटका देने वाला साबित हो सकता है। भाजपा भी इसका सियासी फायदा उठाने से नहीं चूकेगी।