Lok Sabha Election: मुलायम-अखिलेश की रणनीति में बड़ा अंतर, नेताजी ने हर चुनाव में दिखाई ताकत, सपा मुखिया दूसरी बार अखाड़े में नहीं उतरे

Lok Sabha Election 2024: सपा मुखिया अखिलेश यादव की रणनीति अपने पिता और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से बिल्कुल अलग है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-04-23 07:59 GMT

Mulayam singh yadav Akhilesh yadav  (photo: social media ) 

Lok Sabha Election 2024: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने इस बार उत्तर प्रदेश में हो रहे लोकसभा चुनाव के अखाड़े में न उतरने का फैसला किया है। अखिलेश यादव के कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरने की अटकलें लगाई जा रही थीं मगर सोमवार को उन्होंने इस सीट से अपने भतीजे और पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को चुनाव मैदान में उतार दिया। इसी के साथ यह साफ हो गया है कि अखिलेश यादव इस बार लोकसभा चुनाव न लड़कर अपने प्रत्याशियों को जिताने में ताकत लगाएंगे।

वैसे इस मामले में सपा मुखिया अखिलेश यादव की रणनीति अपने पिता और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से बिल्कुल अलग है। 2014 के बाद यह दूसरा मौका है जब उन्होंने लोकसभा चुनाव की जंग से दूरी बना ली है। दूसरी ओर उनके पिता और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव हर लोकसभा चुनाव में ताल ठोकते हुए नजर आते थे।

मुलायम ने हर चुनाव में दिखाई ताकत

पहले यदि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की रणनीति को देखा जाए तो चुनाव को लेकर नेताजी की अलग सोच थी। 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना के बाद उन्होंने हर लोकसभा चुनाव लड़कर अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत बनाने की कोशिश की। उस समय समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की प्रचार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मुलायम सिंह के कंधों पर ही हुआ करती थी मगर इसके बावजूद वे हर चुनाव लड़ा करते थे और मजे की बात यह है कि वे हर बार अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रहे

1996 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मैनपुरी से जीत हासिल की थी जबकि 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में वे संभल से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे। इसके बाद 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने मैनपुरी लोकसभा सीट से जीत हासिल की।

2014 में उन्होंने लोकसभा में आजमगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। इस चुनाव में उन्होंने मैनपुरी से भी जीत हासिल की थी। हालांकि बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ दी थी। 2019 में उन्होंने एक बार फिर मैनपुरी सीट पर जीत हासिल की। 1999 और 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम ने दो-दो सीटों पर जीत हासिल करते हुए अपनी ताकत दिखाई थी।


सीएम रहते हुए लोस चुनाव लड़ने का फैसला

2004 के लोकसभा चुनाव में तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए चुनाव लड़ने का फैसला किया था। इस चुनाव में उन्हें जीत भी हासिल हुई थी। हालांकि जीत के बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। बाद में इस सीट पर हुए उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव ने जीत हासिल की थी।

इस बार के लोकसभा चुनाव में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि मुलायम की पीढ़ी का सैफई परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इस बार बदायूं सीट से अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा था मगर बाद में चाचा ने अपने बेटे आदित्य यादव को बदायूं से प्रत्याशी बनवा दिया।


सपा मुखिया का ऐसा रहा सियासी सफर

अब यदि सपा मुखिया अखिलेश यादव के सियासी सफर को देखा जाए तो उन्होंने साल 2000 में सियासी मैदान में उतरने का फैसला किया था। इस साल वे कन्नौज से पहली बार सांसद बने थे। इस सीट से मुलायम सिंह यादव के इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव कराया गया था जिसमें जीत हासिल करके अखिलेश संसद पहुंचे थे। इसके बाद 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से जीत हासिल की। 2009 में अखिलेश ने कन्नौज और फिरोजाबाद दोनों सीटों से जीत हासिल की थी।

बाद में उन्होंने फिरोजाबाद सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद हुए उपचुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव को करारा झटका लगा था क्योंकि उनकी पत्नी डिंपल यादव को कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर ने हरा दिया था। 2012 में अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद कन्नौज सीट खाली हुई तो डिंपल यादव यहां से निर्विरोध सांसद बन गई थीं।


2014 के बाद 2024 में भी काटी कन्नी

2014 के लोकसभा चुनाव के समय अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने लोकसभा चुनाव से दूरी बना ली थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें आजमगढ़ लोकसभा सीट से जीत हासिल हुई थी। 2022 में करहल से विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने आजमगढ़ लोकसभा सीट छोड़ दी थी। इस सीट पर कराए गए उपचुनाव में अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ से हार का सामना करना पड़ा था। अब अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव से भी दूरी बना ली है।

मुलायम और अखिलेश की रणनीति में बड़ा अंतर

ऐसे में अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव को लेकर मुलायम और अखिलेश की रणनीति अलग-अलग रही है। जहां एक और मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया, वहीं अखिलेश यादव सियासी मैदान में उतरने के बाद दूसरी बार लोकसभा के सियासी जंग से दूरी बना ली है। सियासी जानकारों का मानना है कि पार्टी के सबसे बड़े चेहरे के चुनाव मैदान में उतरने से पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में मदद मिलती है और यही कारण था कि मुलायम सिंह ने कभी लोकसभा चुनाव लड़ने से कन्नी नहीं काटी।

वे पार्टी की ओर से चुनाव प्रचार का जिम्मा संभालने के साथ ही खुद भी अखाड़े में अपनी ताकत दिखाया करते थे। हालांकि इस बार अखिलेश यादव के चुनाव न लड़ने के कई और कारण भी माने जा रहे हैं मगर इतना तो सच है कि पिता और बेटे का राजनीति करने का अलग-अलग अंदाज है। जहां एक ओर मुलायम सिंह की लोकसभा चुनाव को लेकर अलग सोच थी वहीं अखिलेश यादव अलग रणनीति अपनाते हुए दिख रहे हैं।

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