UP Lok Sabha Election: बलिया में कड़े मुकाबले में फंसे नीरज शेखर, ब्राह्मण मतदाताओं की गोलबंदी बनी भाजपा के लिए मुसीबत
UP Lok Sabha Election: पिछले लोकसभा चुनाव में सनातन पांडेय को करीब 15 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था, इस बार भाजपा प्रत्याशी नीरज शेखर की सियासी राह मुश्किल बना दी।
UP Lok Sabha Election 2024: पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सियासी जमीन रही बलिया की देश में अलग पहचान रही है। इस बार के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर सपा और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला हो रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की विरासत के साथ उनके बेटे नीरज शेखर बलिया में एक बार फिर कमल खिलाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने पूर्व विधायक सनातन पांडेय पर एक बार फिर भरोसा जताया है। पिछले चुनाव में सनातन पांडेय ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी थी।
पिछले लोकसभा चुनाव में सनातन पांडेय को करीब 15 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था मगर इस बार उन्होंने भाजपा प्रत्याशी नीरज शेखर की सियासी राह मुश्किल बना दी है। दरअसल ब्राह्मण मतदाताओं की गोलबंदी नीरज शेखर के लिए बड़ी मुसीबत बनती दिख रही है। बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट पर लल्लन सिंह यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है और वे पार्टी के कोर वोट बैंक के दम पर अपनी स्थिति मजबूत बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। हालांकि इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच ही मुख्य रूप से मुकाबला माना जा रहा है।
बलिया संसदीय सीट का इतिहास
बलिया संसदीय सीट गई इतिहास की बात की जाए तो इस सीट पर नीरज शेखर के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 1977 में पहली बार जीत हासिल की थी। इसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर 2004 के चुनाव तक वे लगातार इस सीट पर जीत हासिल करते रहे। उनके निधन के बाद इस लोकसभा सीट पर 2007 में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने नीरज शेखर को चुनाव मैदान में उतारा था और उन्होंने जीत हासिल की थी।
2009 के लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी के टिकट पर नीरज शेखर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे। 2014 में इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी भरत सिंह ने जीत हासिल की थी। 2019 में भाजपा ने भरत सिंह का टिकट काटते हुए वीरेंद्र सिंह मस्त को चुनाव मैदान में उतारा था और मस्त इस लोकसभा सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हुए थे। इस तरह 2014 और 2019 की जीत के बाद भाजपा की ओर से इस सीट पर इस बार हैट्रिक लगाने की कोशिश की जा रही है।
मिथक तोड़ने की कोशिश कर रहे सनातन पांडेय
ब्राह्मण बहुल इस सीट पर आजादी के बाद अभी तक एक बार भी ब्राह्मण प्रत्याशी को कामयाबी नहीं मिल सकी है। समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव मैदान में उतरे सनातन पांडेय इस मिथक को तोड़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं। दूसरी ओर भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में उतारे गए नीरज शेखर पार्टी का इस सीट पर कब्जा बनाए रखने के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं। इस कारण मिथक तोड़ने और विरासत बचाने की यह जंग अब काफी तीखी हो गई है।
इलाके के जानकारों का कहना है कि इस बार ब्राह्मण समाज अपनी जाति की ओर देख रहा है। जानकारों के मुताबिक ब्राह्मण समाज के बीच यह भी चर्चा हो रही है कि पिछले लोकसभा चुनाव में सनातन पांडेय को जबर्दस्ती हरा दिया गया था। इसलिए इस बार उन्हें समर्थन दिया जाना चाहिए।
ब्राह्मण मतदाताओं में दिख रही सहानुभूति
ब्राह्मण समाज के बीच यह बात भी काफी तेजी से फैल गई है कि इस बार का लोकसभा चुनाव सनातन पांडेय का आखिरी चुनाव हो सकता है। दरअसल सनातन पांडेय अब उम्रदराज हो चुके हैं और इस कारण ब्राह्मण मतदाताओं के बीच उनके प्रति सहानुभूति की भावना भी देखी जा रही है।
इलाके के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस बात को कह रहे हैं कि दिल्ली में तो वे मोदी सरकार को ही देखना चाहते हैं मगर चूंकि सनातन पांडेय का यह आखिरी चुनाव है। इसलिए बलिया से उन्हें जीत दिलाई जानी चाहिए। सनातन पांडेय के पक्ष में ब्राह्मण मतदाताओं की यह गोलबंदी भाजपा प्रत्याशी नीरज शेखर के लिए बड़ी मुसीबत मानी जा रही है।
बलिया लोकसभा सीट का स्वरूप
यदि बलिया लोकसभा सीट के स्वरूप की बात की जाए तो इसमें बलिया नगर, बैरिया, फेफना और गाजीपुर के दो विधानसभा क्षेत्र मोहम्मदाबाद व जहूराबाद शामिल हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सिर्फ बलिया सदर सीट पर जीत हासिल की थी जबकि बैरिया, फेफना और गाजीपुर की। मोहम्मदाबाद सीट पर सपा विधायक विजयी हुए थे जबकि जहूराबाद विधानसभा सीट पर सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने जीत हासिल की थी।
जातीय समीकरण बढ़ा रहा नीरज की मुश्किलें
यदि बलिया लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात की जाए तो इस लोकसभा क्षेत्र में दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा साढ़े15 फ़ीसदी है। ब्राह्मण मतदाता भी बलिया में काफी असर रखते हैं और उनकी संख्या करीब 15 फ़ीसदी है। क्षत्रिय मतदाता करीब 13 फ़ीसदी और यादव मतदाता करीब 12 फ़ीसदी हैं। मुस्लिम और भूमिहार आबादी करीब आठ-आठ फीसदी है जबकि ढाई फ़ीसदी मतदाता अनुसूचित जनजाति के हैं। समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी होने के कारण सनातन पांडेय को यादव और मुस्लिम वोटरों का समर्थन मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके साथ ब्राह्मण मतदाताओं का समर्थन उन्हें काफी ताकतवर बनाता हुआ दिख रहा है।
दूसरी ओर क्षत्रिय मतदाता नीरज शेखर के पक्ष में गोलबंद दिख रहे हैं जबकि भूमिहार और अन्य ओबीसी जाति के मतदाताओं में भी भाजपा ने मजबूत पैठ बना रखी है। बसपा की ओर से उतारे गए प्रत्याशी लल्लन सिंह यादव के मजबूत न होने के कारण यादव मतदाताओं के बीच बंटवारे की उम्मीद कम दिख रही है। ऐसे में सपा और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है मगर नीरज शेखर ज्यादा मुसीबत में दिख रहे हैं।