Gorakhpur: योगी के गढ़ में भाजपा को सीटें तो मिलीं लेकिन नोटा का बटन दबाने वाले बढ़ गए, इस बार किसका खेल बिगड़ेगा ?
Gorakhpur News: बीते दो चुनावों में सबसे अधिक नोटा का प्रयोग 2019 में महराजगंज लोकसभा क्षेत्र में हुआ। यहां 23404 वोट नोटा के पक्ष में पड़े।
Gorakhpur News: गोरखपुर-बस्ती मंडल के 9 लोकसभा सीटों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सीधा प्रभाव है। आकड़े बताते हैं कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी नौ सीटों पर भाजपा को जीत मिली। लेकिन चौंकाने वाला आकड़ा नोटा को लेकर है। योगी के गढ़ में नोटा का प्रयोग करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2014 में दोनों मण्डलों में 63 हजार वोटरों ने नोटा का बटन दबाया था, जो 2019 में बढ़कर 88 हजार के पार पहुंच गया।
2014 में शुरू हुए नोटा (इनमे से कोई नहीं) के विकल्प का इस्तेमाल लगातार बढ़ने से राजनीतिक दल बेचैन है। नोटा से यह पता करना तो मुश्किल है कि इन वोटरों की नाराजगी किसके प्रति है लेकिन माना जाता है कि नोटा का ज्यादातर प्रयोग सत्ता के विरोध में ही होता है। हालांकि कई बार पसंद का उम्मीदवार नहीं होने से भी लोग नोटा का बटन दबाना पसंद करते हैं। बीते दो चुनावों में सबसे अधिक नोटा का प्रयोग 2019 में महराजगंज लोकसभा क्षेत्र में हुआ। यहां 23404 वोट नोटा के पक्ष में पड़े। बता दें कि यहां से केन्द्रीय वित्त मंत्री पंकज चौधरी भारी मतों के अंतर से जीतते आ रहे हैं। हालांकि गोरखपुर और कुशीनगर की बात करें तो 2014 की तुलना में 2019 में नोटा वोटों की संख्या कुछ कम थी। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह थी कि जितने वोट नोटा को मिले उतने वोट मैदान में खड़े कई प्रत्याशियों को भी नहीं मिले। गोरखपुर में 2019 के चुनाव में पांच प्रत्याशी ऐसे थे, जिन्हें नोटा से कम वोट मिले।
2019 में गोरखपुर में सबसे कम नोटा
2019 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में सबसे कम 7688 जबकि महराजगंज में सबसे अधिक 23404 नोट के पक्ष में वोट पड़े थे। देखना दिलचस्प है कि 2014 में गोरखपुर सीट से योगी आदित्यनाथ को जीत मिली थी। वहीं 2018 में हुए उपचुनाव में सपा ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 2019 में भाजपा के टिकट पर रवि किशन को बड़ी जीत मिली। एक बार फिर भाजपा ने रवि किशन पर ही दांव लगाया है। 2014 में सबसे कम 4747 संतकबीरनगर में जबकि सबसे अधिक देवरिया में 12405 वोट नोटा के पक्ष में पड़े थे।
2014 से प्रभावी हुआ नोटा का प्रयोग
2014 में आया नोटा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव से वोटर्स को नोटा का विकल्प दिया। जिसके माध्यम से कोई भी मतदाता किसी प्रत्याशी को वोट नहीं देकर नोटा का बटन दबा सकता है। नोटा नागरिकों को किसी किसी भी क्षेत्र से चुनाव मैदान में खड़े उम्मीदवारों के प्रति अपना असंतोष व्यक्त करने की अनुमति देता है। नोटा को सभी के विरुद्ध या इनमें से कोई उम्मीदवार नहीं, विकल्प के रूप में भी जाना जाता है। ईवीएम में नोटा का बटन सबसे नीचे होता है।