Election 2024: पूर्वांचल और अवध में मुस्लिम वोट बैंक पर मायावती की निगाहें, जानिए क्या है समीकरण और किसका बिगड़ेगा खेल
Lok Sabha Election 2024: बसपा ने पिछले चुनाव में इनमें से छह सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार बसपा के जौनपुर के प्रत्याशी को छोड़कर सभी सांसदों ने पाला बदल लिया है।
Lok Sabha Election 2024: उत्तर प्रदेश में अब सबकी निगाहें पूर्वांचल और अवध की लोकसभा सीटों पर लगी हुई हैं। प्रदेश में चार चरणों के मतदान के बाद अब बाकी बची 41 सीटों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जबर्दस्त घमासान दिख रहा है। इनमें अधिकांश सीटें पूर्वांचल और अवध की है और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन सीटों पर बड़ी जीत हासिल की थी। बसपा ने पिछले चुनाव में इनमें से छह सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार बसपा के जौनपुर के प्रत्याशी को छोड़कर सभी सांसदों ने पाला बदल लिया है।
एक और उल्लेखनीय बात यह है कि पूर्वाचल और अवध में मुसलमानों को सबसे अधिक टिकट देने वाली सपा ने इस बार पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को तरजीह दी है जबकि बसपा ने नौ सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर विपक्ष का समीकरण बिगाड़ने का बड़ा दांव चला है। बसपा मुखिया मायावती का यह कदम समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है जिनकी निगाहें मुस्लिम वोट बैंक पर लगी हुई हैं।
मायावती का दलित-मुस्लिम समीकरण
दलित मतदाताओं को बसपा का कोर वाटर माना जाता रहा है और इसके साथ ही अन्य जातियों का समर्थन हासिल करके बसपा अभी तक अपनी ताकत दिखती रही है। वैसे पिछले कुछ चुनाव नतीजों से साफ है कि बसपा अपने कोर मतदाताओं को भी सहेजने में कामयाब नहीं रही है जिसकी वजह से चुनाव में पार्टी को भारी झटका लगा है। बसपा मुखिया मायावती ने इसीलिए इस बार दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने की कोशिश की है। इसके साथ ही उन्होंने दलित-ब्राह्मण समीकरण बनाने का भी प्रयास किया है।
2007 के विधानसभा चुनाव में भी मायावती ने दलितों के साथ सवर्ण और विशेष रूप से ब्राह्मणों का समर्थन हासिल करके प्रदेश की सत्ता पर कब्जा किया था। मायावती ने इस बार नौ सीटों पर दलित-मुस्लिम और सात सीटों पर दलित-ब्राह्मण समीकरण के जरिए अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है। इससे साफ है कि मायावती सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष का समीकरण बिगाड़ने की कोशिश में जुटी हुई हैं।
बहन जी इन सीटों पर कर सकती हैं बड़ा खेल
मजे की बात है कि मायावती ने जिन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, उन सीटों पर दलित-मुस्लिम समीकरण काफी मजबूत स्थिति में नजर आ रहा है। इन लोकसभा क्षेत्रों में दलितों के अलावा मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है और यही कारण है कि माना जा रहा है कि मायावती ने बड़ा सियासी खेल कर दिया है।
लखनऊ, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, संतकबीरनगर, आजमगढ़, वाराणसी, महाराजगंज और गोरखपुर ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां दलित-मुस्लिम समीकरण दूसरे दलों के लिए भारी मुसीबत बन सकता है।
अब सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई हैं कि बसपा मुखिया मायावती दलितों और मुसलमानों का समर्थन पाने में कहां तक कामयाब हो पाती हैं। अपनी चुनावी सभाओं के दौरान वे भाजपा से ज्यादा सपा और कांग्रेस पर हमले कर रही हैं। इसके साथ ही मुस्लिम मतदाताओं को सचेत भी कर रही हैं। इससे यह बात समझ में आती है कि वे दलित और मुस्लिम वोट बैंक को सहेजने की कोशिश में जुटी हुई है।
सपा और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी
वैसे यह भी सच्चाई है कि हाल के चुनावों में अधिकांश सीटों पर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन समाजवादी पार्टी को हासिल होता रहा है। समाजवादी पार्टी इस बार भी मुस्लिम वोट बैंक में की जा रही सेंधमारी की कोशिशों को लेकर सतर्क है। सपा मुखिया अखिलेश यादव प्रदेश का धुआंधार दौरा करने में जुटे हुए हैं और इस दौरान वे अपने पार्टी के पदाधिकारियों और प्रत्याशियों को मुस्लिम वोट बैंक को लेकर सतर्क रहने का निर्देश भी दे रहे हैं।
सियासी जानकारों का मानना है कि यदि बसपा मुखिया मायावती मुस्लिम बैंक वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हुईं तो निश्चित रूप से सपा और कांग्रेस को बड़ा झटका लग सकता है। मायावती के इस कदम से भाजपा की चुनावी संभावनाएं मजबूत होने की उम्मीद जताई जा रही है।