Chhindwara Seat: कमलनाथ के अपने हुए बेगाने, छिंदवाड़ा में भाजपा की किलेबंदी से बेटे नकुलनाथ की मुश्किलें बढ़ीं
Lok Sabha Election: कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में नौ बार जीत हासिल की है और पिछली बार उन्होंने अपने बेटे को आसानी से जीत दिला दी थी । लेकिन इस बार नकुलनाथ मुश्किलों में घिरे दिख रहे हैं।
Lok Sabha Election 2024: मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है मगर इस बार कमलनाथ के लिए अपने गढ़ में ही बेटे नकुलनाथ को जीत दिलाना मुश्किल हो गया है। कमलनाथ तो अपने बेटे के समर्थन में पूरी मजबूती के साथ डटे हैं मगर उन्हें लगातार जीत दिलाने वाले इलाके के कई असरदार नेताओं के साथ छोड़ने के कारण नकुलनाथ की सियासी राह मुश्किल हो गई है।
कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में नौ बार जीत हासिल की है और पिछली बार उन्होंने अपने बेटे को आसानी से जीत दिला दी थी मगर इस बार भाजपा की मजबूत किलेबंदी के चलते नकुलनाथ मुश्किलों में घिरे दिख रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा छोड़कर 28 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा ने इस बार 29-0 का स्कोर खड़ा करने का मंसूबा पाल रखा है। पार्टी ने इस बार कमलनाथ को उनके घर में ही पटखनी देने के लिए पूरी ताकत लगा दी है।
छिंदवाड़ा को क्यों माना जाता है कमलनाथ का गढ़
छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को कमलनाथ का गढ़ यूं ही नहीं कहा जाता। बीच के संक्षिप्त समय को छोड़ दिया जाए तो पिछले 45 साल से इस लोकसभा सीट पर लगातार नाथ परिवार ने कब्जा बना रखा है। कमलनाथ ने इस लोकसभा सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय 1980 में पहली बार जीत हासिल की थी। इसके बाद उन्हें सिर्फ एक बार 1997 के उपचुनाव में इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। उस चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को 37,000 से अधिक मतों से हरा दिया था।
हालांकि वे अपनी इस जीत का ज्यादा दिनों तक आनंद नहीं ले सके क्योंकि अगले साल ही चुनाव के दौरान कमलनाथ ने पटवा को पटखनी देते हुए अपनी हार का बदला ले लिया था। इस एक हार के अलावा 1980 से लेकर 2019 तक कमलनाथ ने लगातार सीट पर अपना कब्जा बनाए रखा है। इस दौरान वे नौ बार यहां से लोकसभा का चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
2019 में बेटे को सौंपी विरासत
2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कमलनाथ ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी। इसलिए उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला किया था और छिंदवाड़ा सीट की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बेटे नकुलनाथ को सौंप दी। नकुलनाथ ने भी अपने पिता की इस विरासत को बचाए रखा और छिंदवाड़ा सीट पर जीत हासिल करके भाजपा के अरमानों पर पानी फेर दिया।
2019 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी मगर छिंदवाड़ा सीट पर हार के कारण भाजपा मध्य प्रदेश से कांग्रेस का पूरी तरह सफाया करने में कामयाब नहीं हो सकी थी।
भाजपा प्रत्याशी विवेक बंटी की कड़ी चुनौती
वैसे इस बार भाजपा कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ से अपना हिसाब बराबर करने की कोशिश में जुटी हुई है। भाजपा ने इस बार अपने जिला अध्यक्ष विवेक बंटी साहू को चुनावी अखाड़े में उतार दिया है जो इस क्षेत्र में बराबर सक्रिय बने रहते हैं। साहू को 2019 के उपचुनाव और 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था।
वैसे इस बार वे पूरी मजबूती के साथ चुनाव मैदान में डटे हुए हैं और कमलनाथ के बेटे को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा उनके समर्थन में चुनाव प्रचार कर चुके हैं जबकि पार्टी के अन्य शीर्ष नेताओं की ओर से भी साहू की चुनावी संभावनाओं को मजबूत बनाने की तैयारी है।
अपनों के बेगाने होने से मुश्किल में कमलनाथ
दरअसल इस बार के लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा में कांग्रेस की मुश्किलें इसलिए बढ़ गई हैं क्योंकि क्षेत्र में कांग्रेस का स्तंभ माने जाने वाले कई प्रमुख नेताओं ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। कांग्रेस नेताओं के इस दलबदल पर हैरानी भी जताई जा रही है क्योंकि इनमें से अधिकांश नेताओं को कमलनाथ का काफी करीबी माना जाता रहा है। पार्टी से इस्तीफा देने वालों में मौजूदा विधायक, पूर्व विधायक, मेयर, पंचायत सदस्य, पार्षद और काफी संख्या में कार्यकर्ता भी शामिल हैं।
अमरवारा से विधायक कमलेश शाह का कांग्रेस से इस्तीफा कमलनाथ कुनबे के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान इस विधानसभा क्षेत्र में नकुलनाथ को निर्णायक बढ़त हासिल हुई थी जिससे उन्हें चुनाव जीतने में कामयाबी मिली थी। शाह के इस्तीफू के बाद नकुल नाथ ने उन्हें गद्दार तक बता डाला नकुलनाथ की इस प्रतिक्रिया से साफ है कि उन्हें शाह का साथ छोड़ना कितना नागवार गुजारा है।
कमलनाथ के एक और करीबी और दो बार विधायक चुने जा चुके दीपक सक्सेना भी कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। सक्सेना ने ही कमलनाथ के मुख्यमंत्री चुने जाने पर अपनी सीट उनके लिए खाली की थी।
छिंदवाड़ा का जातीय समीकरण
छिंदवाड़ा लोकसभा सीट का फैसला करने में अनुसूचित जनजाति की भूमिका निर्णायक मानी जाती रही है इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 37 फ़ीसदी अनुसूचित जनजाति के मतदाता हैं। क्षेत्र में अनुसूचित जाति के करीब 12 फ़ीसदी मतदाता है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब पांच फीसदी है।
क्षेत्र में करीब 75 फ़ीसदी ग्रामीण और 25 फ़ीसदी शहरी वोटर हैं। अनुसूचित जनजाति से जुड़े मतदाताओं के बीच पैठ बनाने के लिए भाजपा ने जोरदार मुहिम छेड़ रखी है और भाजपा की इस मुहिम ने भी कांग्रेस प्रत्याशी नकुलनाथ की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं।
भाजपा की मजबूत किलेबंदी
छिंदवाड़ा में कमलनाथ का किला ध्वस्त करने के लिए भाजपा ने इस बार पूरी ताकत झोंक रखी है। मुख्यमंत्री मोहन यादव और राज्य के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय हर विधानसभा क्षेत्र के लिए अलग-अलग रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। मुख्यमंत्री ने इस क्षेत्र का दौरा करके भाजपा प्रत्याशी के लिए समर्थन भी मांगा है।
भाजपा ने कमलनाथ के कई सेनापतियों को पहले ही तोड़ लिया है और इनके जरिए पार्टी ने इस बार ऐसी मजबूत किलेबंदी की है कि कमलनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है।
कमलनाथ का इमोशनल कार्ड
भाजपा के इस किलेबंदी से निपटने के लिए कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में ही डेरा डाल रखा है और वे रात-दिन चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए वे इमोशनल कार्ड भी खेल रहे हैं। अपनी चुनावी सभाओं के दौरान वे इस बात को जोर-शोर से कह रहे हैं कि मैं छिंदवाड़ा को अपनी जवानी समर्पित की है और मेरी आखिरी सांस भी छिंदवाड़ा के लिए है।
बेटे नकुल नाथ भी भावनात्मक अपील करने में जुटे हुए हैं तो उनकी पत्नी ग्रामीणों में पैठ बनाने के लिए गेहूं की फसल तक काटने का काम कर रही हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि छिंदवाड़ा में इस बार कमलनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है और यह देखने वाली बात होगी की वह अपने प्रतिष्ठा को बचा पाते हैं या नहीं।