Parliamentary Elections: सीपीएम के लिए राष्ट्रीय अस्तित्व बचाने की लड़ाई

Parliamentary Elections: पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में पारंपरिक किले ध्वस्त हो जाने के बाद सीपीएम के सामने अब अपनी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने का खतरा है और ये लोकसभा चुनाव उसके लिए अस्तित्व की परीक्षा हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2024-03-20 14:44 GMT

सीपीएम के सामने अब अपनी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने का खतरा है: Photo- Social Media

Parliamentary Elections: पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में पारंपरिक किले ध्वस्त हो जाने के बाद सीपीएम के सामने अब अपनी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने का खतरा है और ये लोकसभा चुनाव उसके लिए अस्तित्व की परीक्षा हैं। पार्टी इस बार तीन राज्यों से कम से कम 11 लोकसभा सीटें हासिल करने का टारगेट बनाये हुए है।

भरपूर कोशिश कर रही पार्टी

सीपीएम नेतृत्व राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता बनाए रखने के अपने प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। सीपीएम का एकमात्र गढ़ अब केरल बचा है। इसके अलावा पार्टी को तमिलनाडु से उम्मीदें हैं कि वह अपने सहयोगी द्रमुक के बल पर कुछ हासिल कर लेगी। इसके अलावा, सीपीएम के लिए किसी अन्य राज्य से अपने उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कराना मुश्किल है, हालांकि वह बंगाल से कम से कम एक सीट पर जीत की उम्मीद कर रही है।

केरल में पूरी ताकत झोंकी

अपनी नाजुक हालत को ध्यान में रखते हुए सीपीएम ने केरल में अपना वोट शेयर बढ़ाने के लिए पूरी ताकत लगा दी है और अपने सभी उम्मीदवारों को आधिकारिक पार्टी प्रतीक - दरांती, हथौड़ा और स्टार के तहत मैदान में उतारा है, जिसमें उसका समर्थन करने वाले निर्दलीय भी शामिल हैं।

वोट शेयर बढ़ाने की जुगत

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, केरल एकमात्र राज्य है जहां पार्टी अब सत्ता में है, सीपीएम का लक्ष्य यहां अधिकतम सीटें जीतना और वोट शेयर बढ़ाना है। वर्तमान लोकसभा में सीपीएम के सिर्फ तीन सदस्य हैं। पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्तर पर केवल 1.75 फीसदी वोट हासिल किए थे।राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बनाए रखने के लिए वोट शेयर में बढ़ोतरी महत्वपूर्ण है। इसलिए सीपीएम अपने आधिकारिक प्रतीक पर अधिक उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर अपना वोट शेयर बढ़ाने का प्रयास कर रही है।

राज्य पार्टी की मान्यता

वर्तमान में सीपीएम को केरल, तमिलनाडु, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में एक राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त है। हालाँकि, पश्चिम बंगाल में जहाँ वह तीन दशकों से अधिक समय तक सत्ता में थी, पार्टी का राज्य विधानसभा और संसद में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। बता दें कि चुनाव आयोग ने पिछले साल सीपीआई और कुछ अन्य पार्टियों का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रद्द कर दिया था।

क्या है राष्ट्रीय पार्टी का विशेषाधिकार

- लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए सभी राज्यों में एक समान पार्टी चिन्ह।

- सार्वजनिक प्रसारकों पर चुनावों के दौरान मुफ्त प्रसारण समय।

- नई दिल्ली में पार्टी कार्यालय के लिए जगह का आवंटन।

- चुनाव के लिए अधिक संख्या में स्टार प्रचारकों को तैनात करने की अनुमति।

सीपीएम का पतन

2004: 43 सीटें (पश्चिम बंगाल से 26, केरल से 12, तमिलनाडु से 2, त्रिपुरा से 2, आंध्र प्रदेश से 1) वोट शेयर-5.66 फीसदी।

2009: 16 सीटें (पश्चिम बंगाल से 9, केरल से 4, त्रिपुरा से 2, टीएन से 1) वोट शेयर 5.33 फीसदी।

2014: 9 सीटें (केरल से 5, पश्चिम बंगाल से 2 और त्रिपुरा से 2) वोट शेयर 3.6 फीसदी।

2019: 3 सीटें (तमिलनाडु से 2, केरल से 1) वोट शेयर 1.75 फीसदी।

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