Saharanpur Seat: धर्म सिंह सैनी की BJP में एंट्री से बदलेगा समीकरण, मुस्लिम मतों के बंटवारे पर निगाहें

UP Lok Sabha Election 2024: प्रदेश के पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी ने भाजपा का दामन थाम लिया है और सैनी की एंट्री भाजपा की चुनावी संभावनाओं को मजबूत बना सकती है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-04-17 10:24 IST

Dharam Singh Saini   (photo: social media )

UP Lok Sabha Election 2024: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिन आठ लोकसभा सीटों पर पहले चरण में मतदान होना है, उनमें नक्काशीदार लकड़ी के लिए मशहूर सहारनपुर की लोकसभा सीट भी शामिल है। इस लोकसभा सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल को नजदीकी हार का सामना करना पड़ा था और इस बार वे 2019 का हिसाब बराबर करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इस बीच प्रदेश के पूर्व मंत्री धर्म सिंह सैनी ने भाजपा का दामन थाम लिया है और सैनी की एंट्री भाजपा की चुनावी संभावनाओं को मजबूत बना सकती है।

करीब साढ़े छह लाख मुस्लिम मतदाताओं वाले इस लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने इमरान मसूद को चुनाव मैदान में उतारा है जबकि बसपा की ओर से माजिद अली मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हुए हैं। बसपा को इस सीट पर पिछले चुनाव में जीत मिली थी। माजिद अली के चुनाव मैदान में उतरने से मुस्लिम मतों के बंटवारे की संभावना जताई जा रही है और इस समीकरण ने भाजपा के लिए जीत की आस जगा दी है। इस लोकसभा सीट पर कभी किसी खास पार्टी का प्रभुत्व नहीं रहा है और इस कारण अब सबकी निगाहें मतदाताओं के फैसले पर लगी हुई हैं।

बदलता रहा है मतदाताओं का मिजाज

सहारनपुर लोकसभा सीट का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। यदि शुरुआती चुनावों को छोड़ दिया जाए तो इस सीट पर मतदाता अलग-अलग पार्टियों को समर्थन देते रहे हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के रशीद मसूद ने जीत हासिल की थी तो 2009 के चुनाव में बसपा ने यह सीट जीत कर अपनी ताकत दिखाई थी।

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राघव लखनपाल जहां जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे तो 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें इस सीट पर नजदीकी हार का सामना करना पड़ा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से बहुजन समाज पार्टी के हाजी फजलुर्रहमान ने जीत दर्ज की थी।

इस तरह देखा जाए तो सहारनपुर लोकसभा सीट पर कभी किसी एक खास दल का प्रभुत्व नहीं रहा और मतदाताओं का मिजाज यहां बदलता रहा है। सहारनपुर हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति की एकता का प्रतीक माना जाता रहा है। एक तरफ यहां हिन्दुओं का प्राचीन मां शाकुम्भरी देवी सिद्धपीठ मंदिर आस्था का स्थान है तो वहीं दूसरी ओर देवबंद दारुल उलूम की पूरी दुनिया में अलग पहचान है।

पिछली हार का बदला लेने में जुटे राघव

2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल ने इस सीट पर बसपा प्रत्याशी हाजी फजलुर्रहमान को कड़ी चुनौती दी थी। कांटे के मुकाबले में राघव लखन पाल को करीब 22,000 वोटों से हार का सामना पकड़ना पड़ा था। बीएसपी प्रत्याशी को 5,14,139 वोट मिले थे जबकि लखनपाल 4,91,722 वोटों पर ही सिमट गए थे।

भाजपा ने एक बार फिर राघव लखनपाल पर भरोसा जताते हुए उन्हें सहारनपुर के सियासी अखाड़े में उतार दिया है। चुनावी मैदान में उतरने के बाद राघव 2019 में मिली हार का हिसाब चुकाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उनके समर्थन में भाजपा के दिग्गज नेताओं की सभाएं हो रही हैं और उन्होंने जोरदार प्रचार अभियान छेड़ रखा है।

इमरान मसूद ने भी लगा रखी है ताकत

सपा-कांग्रेस गठबंधन में सहारनपुर की सीट कांग्रेस के खाते में गई है और पार्टी में यहां से इमरान मसूद को चुनावी अखाड़े में उतारा है। इमरान मसूद पहली बार लोकसभा पहुंचने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इमरान मसूद 2014 में पहली बार पूरे देश में उस समय चर्चा का विषय बन गए थे जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोटी-बोटी वाला बयान दिया था। इस बयान के कारण वे भाजपा के निशाने पर आ गए थे।

2014 के लोकसभा चुनाव में भी इमरान मसूद और भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल की टक्कर हुई थी और इसमें भाजपा ने बाजी मार ली थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में इमरान मसूद को 4,07,909 वोट मिले थे जबकि राघव लखनपाल को 4,72,999 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ था। बसपा प्रत्याशी जगदीश सिंह राणा करीब 2.35 लाख वोट लेकर उस समय तीसरे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद इस बार फिर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

बसपा के माजिद अली कर सकते हैं खेल

सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा होने के कारण इमरान मसूद मजबूत स्थिति में नजर आ रहे थे मगर बसपा की मुखिया मायावती ने इस लोकसभा क्षेत्र में बड़ा सियासी खेल कर दिया। बसपा की ओर से माजिद अली के चुनाव मैदान में उतरने के कारण मुस्लिम मतों के बंटवारे का बड़ा खतरा पैदा हो गया है और इससे इमरान मसूद को झटका लग सकता है।

बसपा प्रत्याशी माजिद अली की पहचान एक जमीनी नेता के रूप में रही है और वे मौजूदा समय में जिला पंचायत सदस्य हैं। बसपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान माजिद अली को देवबंद विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया था। ऐसे में ले भी क्षेत्र के लिए अनजान नहीं है और अपनी दावेदारी को मजबूत बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

मुस्लिम और दलित मतदाता निर्णायक

सहारनपुर लोकसभा सीट के चुनाव नतीजा का फैसला करने में मुस्लिम और दलित मतदाताओं की भूमिका निर्णायक मानी जाती रही है। इस क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा करीब साढ़े छह लाख है जबकि करीब साढ़े तीन लाख दलित मतदाता हैं। अन्य जातियों की बात की जाए तो क्षत्रिय 1.5 लाख, सैनी 1.25 लाख, गुर्जर 1.2 लाख, जाट 1 लाख, ब्राह्मण 80 हजार और वैश्य मतदाताओं की संख्या 70 हजार हैं।

भाजपा, सपा और बसपा तीनों दलों के प्रत्याशी क्षेत्र में जातीय समीकरण साधने की कोशिश में जुटे हुए हैं। भाजपा की निगाहें मुस्लिम मतों के बंटवारे पर टिकी हुई हैं और बसपा की ओर से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने के बाद पार्टी को यहां अच्छी चुनावी संभावनाएं नजर आने लगी हैं।

क्या धर्म सिंह सैनी बदलेंगे समीकरण

सहारनपुर में चल रही इस सियासी उठापटक के बीच प्रदेश के पूर्व मंत्री और कद्दावर नेता माने जाने वाले डॉक्टर धर्म सिंह सैनी ने भाजपा का दामन थाम लिया है। सैनी को मजबूत पकड़ वाला नेता माना जाता रहा है और वे चार बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने भाजपा से इस्तीफा देकर सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। सपा के टिकट पर वे नकुड़ विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे मगर उन्हें 315 मतों से हार का सामना करना पड़ा था।

सैनी के भाजपा में शामिल होने से पार्टी को बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। सैनी के अलावा बसपा के दो बार विधायक रहे रविंद्र कुमार मोल्हू ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है। अब यह देखने वाली बात होगी कि ये दोनों नेता भाजपा की चुनावी संभावनाओं को मजबूत बनाने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं।

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