Lok Sabha Election 2024: स्वतंत्र भारत में पहले चुनाव की रणनीति किसने बनाई, कौन था वह गुमनाम हीरो

Lok Sabha Election 2024: सुकुमार सेन को जानना ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि बिना ऑफिस के निर्वाचन आयोग को काम करना पड़ा था एक , दो व तीन सासंदों वाले निर्वाचन क्षेत्र भी उस समय थे

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Update:2024-03-20 17:39 IST

Lok Sabha Election 2024

Lok Sabha Election 2024: 2024 के लोकसभा चुनावों का एलान हो चुका है। वर्ष 2024 इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस साल विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों में चुनाव होने जा रहे हैं। भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए इस चुनाव में मतदान होगा ।वहीं अमेरिका में नये राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान होगा। भारत और अमेरिका की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कई समानताएं हैं। लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह जानना है कि देश का पहला चुनाव कराने वाला हीरो कौन था? और कैसे उसने देश में पहला चुनाव सम्पन्न कराया ? जो बाद के चुनावों के लिए मिसाल बन गया।

1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद पहला काम था देश को चलाने के लिए एक संविधान का निर्माण करना। 1950 में संविधान के जरिये देश का लोकतांत्रिक स्वरूप निर्धारित होने के बाद 1951-52 में चुनाव की प्रक्रिया पर काम शुरू हुआ । इतने बड़े देश में चुनाव कराना आसान नहीं था। जबकि देश में शरणार्थियों की आवाजाही और वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता चल रही थी। देश की जनता अपनी सरकार चुनने के लिए बेचैन थी। ऐसे में पहले चुनाव की रणनीति बनाने का जिम्मा सुकुमार सेन को सौंपा गया।देश में पहले लोकसभा चुनाव 25 अक्टूबर, 1951 से 21 फरवरी, 1952 के बीच कराए गए। इस चुनाव में 17 करोड़ 32 लाख पंजीकृत मतदाता थे। इनमें से दस करोड़ से अधिक ने अपने नये मिले मताधिकार का प्रयोग किया था। देश में व्यापक स्तर पर अशिक्षित जनता के बीच यह चुनाव कराना आसान काम न था।सुकुमार सेन आईसीएस अधिकारी थे। वह उस समय पं. बंगाल के मुख्य सचिव थे, जब उन्हें देश का पहला मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के लिए बुलाया गया। सुकुमार को मार्च 1950 में नियुक्त किया गया। इसके एक महीने बाद जनप्रतिनिधित्व अधिनियम संसद में पारित किया गया। जिसने चुनाव का खाका स्पष्ट कर दिया। उस समय इतने बड़े देश में चुनाव कराना एक बहुत बड़ी चुनौती थी, जिसे सुकुमार सेन ने स्पष्ट किया।


देश के पहले चुनाव में यह प्रावधान किया गया कि वोट देने वाले नागरिक का 21 वर्ष का होना अनिवार्य है। और वह निर्वाचन वाले क्षेत्र में कम से कम 180 दिन से रह रहा हो। यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि उस समय अधिकांश जनता गरीब और पिछड़ी हुई थी। चुनाव में महिलाओं और पुरुषों को समान रूप से मत देने का अधिकार दिया गया। यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है कि दो बड़े लोकतंत्रों अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में चुनाव दो या तीन बड़े दलों को लेकर होते थे । जबकि भारत में पहले चुनाव में संसद के निचले सदन की 489 सीटों के लिए 53 राजनीतिक दल पंजीकृत हुए जिसमें 14 राष्ट्रीय पार्टियां थीं।ब्रिटिश भारत में 17 प्रांत थे । विभाजन के बाद भारत में 14 नये राज्य और छह केंद्रशासित प्रदेश बने। ऐसे में जबकि देश के विभाजन के बाद हर दिन शरणार्थी आ रहे हों और चुनाव आयोग बने भी दो साल हुए हों तो देश में चुनाव कराना बड़ी चुनौती थी, जिसे सुकुमार सेन ने आसान बनाया।स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के बारे में यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि जब चुनाव कराए गए उस समय चुनाव आयोग के पास न तो कोई आफिस था न ही स्थाई या अस्थाई कोई स्टाफ था। 1944 में विधानसभा चुनाव कराने वाला अधिकांश स्टाफ या तो विस्थापित हो गया था या फिर दंगों में मारा गया था। सुकुमार सेन ने नये सिरे से चुनाव की प्रक्रिया की इबारत लिखी।

देश का पहला चुनाव 533 निर्दलीय सहित कुल 1874 उम्मीदवारों ने लड़ा था। 489 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में 314 एकल सीट वाले निर्वाचन क्षेत्र थे। 172 दोहरी सीटों वाले क्षेत्र एसे थे जिनमें एक सामान्य श्रेणी का उम्मीदवार और एक एससी या एसटी उम्मीदवार था। तीन तिहरी सीटों वाले निर्वाचन क्षेत्र में हर कैटेगरी से एक उम्मीद्वार था।स्वतंत्र भारत के इस पहले चुनाव में एक लाख 96 हजार 84 मतदान केंद्र बनाए गए थे, जिनमें से 27 हजार 527 विशेष रूप से महिला मतदाताओं के लिए थे। प्रत्येक उम्मीदवार को एक रंगीन बक्सा मिला था जिस पर उसका नाम और चुनाव चिह्न अंकित था। मतदान 45.7 फीसदी हुआ था, जो मौजूदा परिस्थितियों में काफी अच्छा माना गया था। हालाँकि, केरल के कोट्टायम जिले में 80.5 फ़ीसदी मतदान दर्ज किया गया था, जो अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए भारतीय लोगों के उत्साह का बड़ा प्रमाण था।

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