Loksabha Election 2024: गोंडा लोकसभा सीट पर रियासत का होगा दबदबा या काबिज होगी विरासत'? जानें समीकरण
Gonda Loksabha Seats Details: भाजपा ने कीर्तिवर्द्धन सिंह पर तीसरी बार दांव लगाया है। जबकि सपा ने कद्दावर नेता स्व. बेनी प्रसाद वर्मा की पोती और सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे राकेश वर्मा की बेटी श्रेया वर्मा को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने सौरभ कुमार मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है।
Gonda Loksabha Seats Details: यूपी के गोंडा लोकसभा सीट का अपनी अलग महत्ता है। गोंडा में अंग्रेजों के खिलाफ कभी 1857 के पहले विद्रोह में राजा देवी बख्श सिंह की क्रांति का गवाह रहे मनकापुर राजघराने का सिक्का हमेशा से चलता आया है। इस स्टेट के वंशज कीर्तिवर्धन सिंह यहां के वर्तमान सांसद हैं। भाजपा ने कीर्तिवर्द्धन सिंह पर तीसरी बार दांव लगाया है। जबकि सपा ने कद्दावर नेता स्व. बेनी प्रसाद वर्मा की पोती और सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे राकेश वर्मा की बेटी श्रेया वर्मा को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने सौरभ कुमार मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है। पक्ष-विपक्ष दोनों ही अपने कोर वोटरों के साथ लहर व समीकरण के भरोसे हैं।
अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा के कीर्तिवर्द्धन सिंह ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह को 1,66,360 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में कीर्तिवर्द्धन सिंह को 5,08,190 और विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह को 3,41,830 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस की कृष्णा पटेल को 25,686 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान बसपाई कीर्तिवर्द्धन सिंह पाला बदलकर भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरें और सपा की नंदिता शुक्ला को 1,60,416 वोट से हराकर जीत दर्ज की। इस चुनाव में कीर्तिवर्द्धन सिंह को 3,59,643 और नंदिता शुक्ला को 1,99,227 वोट मिले थे। जबकि बसपा के अकबर अहमद डम्पी को 1,16,178 और कांग्रेस के दिग्गज नेता बेनी प्रसाद वर्मा को 1,02,254 वोट मिले थे।
Gonda Vidhan Sabha Chunav 2022 Details
Gonda Lok Sabha Chunav 2014 Details
यहां जानें गोंडा लोकसभा क्षेत्र के बारे में (Gonda Loksabha Seats Details in Hindi)
- गोंडा लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 59 है।
- यह लोकसभा क्षेत्र 1957 में अस्तित्व में आया था।
- इस लोकसभा क्षेत्र का गठन गोंडा जिले के मेहनौन, गोंडा, मनकापुर व गौरा और बलरामपुर जिले के उतरौला विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
- गोंडा लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है।
- यहां कुल 17,70,248 मतदाता हैं। जिनमें से 8,07,663 पुरुष और 9,62,513 महिला मतदाता हैं।
- गोंडा लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 9,24,123 यानी 52.20 प्रतिशत मतदान हुआ था।
गोंडा लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास (Gonda Loksabha Seats Political History)
अयोध्या से सरयू नदी पार करने के बाद ही गोंडा लोकसभा क्षेत्र की सीमा शुरू हो जाती है। रामायण काल में भगवान राम की गायें यहां चरने आती थीं, इसलिए इस क्षेत्र को 'गोनर्द' कहा जाता था, जो बाद में अपभ्रंश के रूप में 'गोंडा' हो गया। गावः नर्दन्ति यत्र तत्र गोनर्दम का उल्लेख कई जगहों पर मिलता है। पाणिनी की अष्टाध्यायी पर महाभाष्य लिखने वाले महर्षि पतांजलि ने खुद को गोनार्दीय बताया है। ‘कामसूत्र’ में भी गोनार्दीय मत का जिक्र किया गया है। यह क्षेत्र वनों से अच्छादित है। इक्ष्वाकुवंशीय राजा दिलीप ने इसी क्षेत्र में नन्दिनी गाय की सेवा की थी। अयोध्या के करीब होने की वजह से इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में ऋषि-मुनियों का आना-जाना रहा था। देवीपाटन मंडल में स्थित गोंडा जिले के उत्तर में बलरामपुर, पश्चिम में बहराइच, पूर्व में बस्ती तथा दक्षिण में बाराबंकी और फैजाबाद से घिरा हुआ है। फिलहाल, दशकों से इस सीट की नुमाइंदगी रियासत और विरासत के बीच ही घूमती रही है। आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव में गोंडा उत्तर और पश्चिम के रूप में अलग-अलग सीटों में बंटा हुआ था। उत्तर से कांग्रेस जीती और पश्चिम से हिंदू महासभा। 1957 में गोंडा सीट बनी। पहला ही चुनाव यहां कांटे का हुआ। कांग्रेस के दिनेश प्रताप सिंह जीते तो जरूर लेकिन निर्दल लड़े श्याम बिहारी लाल पर उनकी बढ़त महज 898 वोटों की ही थी।
1962 का चुनाव परिमाण का मामला पहुंचा कोर्ट
गोंडा की सियासत में मनकापुर के राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह का असर था। 1952 में वह कांग्रेस से विधायक बने, लेकिन 1957 में उन्होंने स्वतंत्र पार्टी से हाथ मिलाया। 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां व्यापारी रामरतन गुप्ता को उतारा। वह यूपी के तत्कालीन सीएम चंद्रभानु गुप्ता के करीबी थे। स्वतंत्र पार्टी से महाराष्ट्र से आकर नारायण दांडेकर ने पर्चा भरा। राघवेंद्र ने पूरी ताकत लगा दी। मुकाबला इतना नजदीकी था कि जीत का अनुमान लगाना मुश्किल था। नतीजों के दिन दोपहर बाद पहले दांडेकर की जीत की खबर आई। कुछ घंटे बाद बताया गया कि यहां से 498 वोटों से कांग्रेस जीती है। हंगामा होने लगा। मतदान में धांधली के आरोप लगने लगे। दांडेकर ने यह लड़ाई कोर्ट में लड़ने का फैसला किया। दो साल तक चली कानूनी लड़ाई के बाद फैसला दांडेकर के हक में आया। वोटों की दोबारा गिनती हुई और दांडेकर विजेता घोषित किए गए। 1967 में यहां यूपी की सीएम सुचेता कृपलानी खुद लोकसभा चुनाव लड़ने आई और उन्होंने कांग्रेस को सीट वापस दिलाई।
जब चाचा और भतीजा हुए आमने-सामने
कांग्रेस में 1971 के चुनाव के पहले दो फाड़ हो गए। मोरारजी देसाई सहित दूसरे नेताओं की अगुआई में कांग्रेस (ओ) बनी और दूसरा धड़ा इंदिरा की अगुआई का था। गोंडा से कांग्रेस (ओ) जिसे इंडियन नैशनल कांग्रेस ऑर्गनाइजेशन कहा जाता था, उसके उम्मीदवार बने राघवेंद्र के बेटे कुंवर आनंद सिंह। इंदिरा गुट ने उनके सामने आनंद के चाचा देवेंद्र प्रताप सिंह को उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस पर कब्जे की लड़ाई तो इंदिरा गुट जीत गया, लेकिन गोंडा की सियासी जमीन पर भतीजा चाचा पर महज 631 वोट से भारी पड़ गया। हालांकि, 1977 में इंदिरा विरोधी लहर में जनता ने रियासत को किनारे कर दिया और आनंद सिंह की जगह जनता पार्टी से सत्यदेव को संसद भेजा। यह सिलसिला लंबा नहीं चल सका। अगले तीन चुनाव में आनंद सिंह ने कांग्रेस को लगातार जीत दिलाई और गोंडा में हैट्रिक लगाने वाले पहले सांसद बने।
राजा के विजय रथ को ब्रजभूषण शरण सिंह ने रोका
देश में 90 के दशक में चल रहे रामलहर के दौरान गोंडा की सियासत में चर्चा, ताकत और रसूख का एक नया चेहरा उभर रहा था। नाम था ब्रजभूषण शरण सिंह। शुरुआती दौर में उनकी गिनती यहां के सांसद आनंद सिंह के करीबियों में हुआ करती थी। लेकिन, पहचान व महत्वाकांक्षा की राजनीति ने दूरियां पैदा कर दीं। पहलवानी व राममंदिर आंदोलन में सक्रिय भागीदारी ने ब्रजभूषण की जमीन का विस्तार किया। 1991 में भाजपा के टिकट पर राजा आनंद सिंह के सामने उनकी 'प्रजा' रहे ब्रजभूषण ने पर्चा भर दिया। रामलहर और अपने असर की बदौलत ब्रजभूषण ने 1 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल कर राजा का रथ रोक दिया। सांसद बनने के बाद बाहुबली बन चुके ब्रजभूषण पर दाऊद की मदद का आरोप लगा और वह टाडा (टेररिस्ट ऐंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट) के तहत गिरफ्तार कर लिए गए। 1996 में जेल में बंद ब्रजभूषण की पत्नी केतकी सिंह को भाजपा ने टिकट दिया और जीत का सिलसिला कायम रहा। अगले चुनाव में आनंद सिंह ने सपा का दामन थामा और सियासी विरासत संभालने की जिम्मेदारी बेटे कीर्तिवर्धन सिंह को दे दी। अपने पहले ही चुनाव में कीर्तिवर्धन ने ब्रजभूषण को 25 हजार वोटों से हरा दिया। लेकिन 1999 में ब्रजभूषण सिंह ने फिर हिसाब बराबर कर लिया। हालांकि, 2004 में ब्रजभूषण ने बलरामपुर से पर्चा भरा और दोनों परिवारों की सीधी सियासी लड़ाई पर विराम लगा। कीर्तिवर्धन को गोंडा से दूसरी बार जीत मिली। लेकिन 2009 के चुनाव में बसपा के जरिए तीसरी पारी की उनकी उम्मीद को बेनी प्रसाद वर्मा ने कांग्रेस को जीत दिलाकर तोड़ दिया।
गोंडा लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण (Gonda Loksabha Seats Caste Equation)
गोंडा लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां ब्राह्मण, ठाकुर, मुस्लिम व कुर्मी मतदाताओं का प्रभावी असर है। एक अनुमान के मुताबिक यहां मुस्लिम मतदाता करीब 23 फीसदी हैं। ब्राह्मण 21 फीसदी और क्षत्रिय 16 फीसदी हैं। इसके अलावा ओबीसी 16 फीसदी, दलित 11 फीसदी और अन्य बिरादरी के 13 फीसदी मतदाता हैं।
गोंडा लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद (Gonda Loksabha Seats MP List)
- कांग्रेस से दिनेश प्रताप सिंह 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से राम रतन गुप्ता 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- स्वतंत्र पार्टी से नारायण दांडेकर 1964 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से सुचेता कृपलानी 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
- कांग्रेस से आनंद सिंह 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- जनता पार्टी से सत्यदेव सिंह 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से आनंद सिंह 1980, 1984 और 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से बृजभूषण शरण सिंह 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से केतकी देवी सिंह 1996 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
- सपा से कीर्ति वर्धन सिंह 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से बृजभूषण शरण सिंह 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- सपा से कीर्ति वर्धन सिंह 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से बेनी प्रसाद वर्मा 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से कीर्ति वर्धन सिंह 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।